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Updated: 19 जुलाई, 2017 07:02 PM
रमा सोलंकी
रमा सोलंकी
  @rama.solanki.7
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'बहुत पढ़ाई कर रही हो इतना पढ़कर क्या करोगी ?'

'मैं आईएएस बनना चाहती हूं, ताकि अपने समाज के लोगों का भला कर सकूं.'

'तुम गलत सोच रही हो. कलेक्टर बनकर नहीं, तुम राजनीति मे आकर भी यह सब कर सकती हो, मैं  तुम्हें नेता बनाना चाहता हूं ताकि इस समाज की सूरत बदल सको.'

कांशीराम के इस जवाब ने मायावती की जिंदगी पलट दी. उस शाम घर का दरवाजा नहीं खुला था बल्कि बहनजी की किस्मत का दरवाजा खुला था. और दरवाजे के उस पार सामने सिलवट पड़े कपड़े पहने और गले में मफलर लपेटे खड़े थे कांशीराम.

दिसम्बर 1977 शाम का वक्त, बहनजी बनने के सफर की नींव रख दी थी और मायावती को पता भी नहीं चला कि उनका सपना बदल रहा था मकसद नहीं. मगर आज मकसद बदल रहा है...और सपना गहरी नींद में गुम है. हालांकि सफर भी बहुत लम्बा तय किया पर संघर्ष के साथ गलतियां भी बहुत हुईं, कहीं अहंकार तो कहीं तुनकमिजाज़ी का सामना कभी मायावती से तो कभी उनकी खुद की सत्ता मे गलत फैसलों से हुआ.

mayawati, kanshiramकांशीराम का आशीर्वाद लेतीं मायावती

जिस मायावती पर लोग, टिप्पणीकार, आलोचक और सवाल उठाने वाले चेहरे बात कर रहे हैं उनको नहीं भूलना चाहिए कि यही मायावती 21 साल की उम्र में उस दिन बड़ी हो गई जब उन्होंने राजनारायण जैसे बड़े कद के नेता जिसने 1977 चुनावों में रायबरेली से करीब 55,000 हजार वोटों से इंदिरा गांधी को धूल चटा दी थी, उनकी बोलती बंद कर दी थी. उनसे चूक यही हुई थी कि वो बार-बार अपने भाषण मे दलितों के हित की बात करते करते हरिजन शब्द प्रयोग करते रहे और मायावती ने इसी एक चूक को पकड़ लिया. उन्होंने राजनारायण, कांग्रेस और जनता पार्टी की धज्जियां उड़ा दीं और उस दिन मंच से मायावती बहनजी बनकर उतरीं. राजनारायण जिनसे गलती की उम्मीद तक नहीं की जाती थी और जिनके आगे बोलने के लिए जुबान को तर्क और हिम्मत के सहारे की जरूरत पड़ती थी, उनसे एक चूक हो गई जिसको मायावती ने पकड़ लिया और उस दिन मंच पर दो तस्वीरें बदलीं.

- पहला, दलितों को अपना एक चेहरा दिखने लगा, जिसके तेवर 'आम में खास' थे.

- दूसरा, उत्तर प्रदेश में कांशीराम को अपना दलितों का चेहरा दिख रहा था.

बहनजी, आज आपने सत्ता, सुख और सियासत के कई दशक देख लिए और तुनकमिजाज़ी से नुकसान भी. अब वक्त संयम और समझदारी का है, आप तीखा बोलने वाली, अंबेडकरवादी चेतना से लेस, सवर्णों को ठेंगा दिखाने वाली तेज तर्रार तेवरों की शख्सियत रही हैं पर आज न बोलने देने पर यह हल्का बोल देना और भारी फैसले की धमकी देना आपकी बड़ी भूल बन सकती है.

mayawati

अब बचपना छोड़िए बहनजी !!

'तूने मेरी बारी नहीं दी, जा अब मैं बात नही करूंगी, नहीं खेलूंगी...चल कट्टी !!' यह बातें आपके लिए शोभनीय नहीं हैं. बचपन में अक्सर ये बातें आपने सुनी होंगी और की भी होंगी. मगर आज जो आपने कहा वो महज एक बचकानी हरकत है, क्योंकि आप एक समाज का मजबूत चेहरा हैं. तीन बार लोकसभा हारीं पर अपने मिशन की लड़ाई से कभी नहीं डगमगाईं. लम्बे अरसे से सबसे बड़े सूबे की मुख्यमंत्री रही हैं, आप देश की ताकतवर महिलाओं में गिनी जाती हैं. और महज छोटी सी बात पर इतनी बड़ी बात बोलना कि- 'मैं आज ही इस्तीफा दूंगी?'

राज्य सभा का समय लगभग पूरा हो रहा है. फिर से राज्यसभा में जाने का रास्ता लगभग बंद है और विधानसभा में आपकी कोई कुर्सी नहीं. आप शायद भूल गईं कि आप IAS क्यों बनना चाहती थीं, किसी की सूरत बदलना चाहती थीं मगर आप अपना सूरत-ए-हाल बदलती रह गईं और वो शख्स जिसके लिये आप मंच पर चढ़कर राजनारायण से लड़ी थीं वो आज भी वहीं खड़ा है, बस फर्क इतना है कि वामसेफ बहुजन समाजवादी पार्टी हो गई और आप मायावती से बहनजी.

आपको खुद ही एहसास नहीं हुआ आप कब दलित की बेटी से दौलत की बेटी हो गईं.आज आपको बहुत शिकायत है मगर आपको आत्मचिंतन की जरूरत है. पर राजनीति में गुंजाइश कभी खत्म नहीं होती है, और आपका गुस्सा एक दिन आपके खिलाफ ही प्रयोग किया जाएगा, इसलिए जरा संभलकर. आज आपको कोई बोलने और रोकने-टोकने वाला नहीं है. 1977 से आज 2017 यानि 40 साल बाद आपको कौन बोलेगा-

'तुम गलत सोच रही हो मायावती !'

आज कांशीराम नहीं, पर वो सवाल आज भी आपके आगे फिर से खड़ा है.

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लेखक

रमा सोलंकी रमा सोलंकी @rama.solanki.7

लेखिका Hallabole.com की मैनेजिंग एडिटर हैं

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