स्वामी प्रसाद मौर्य के सामने हैं यही तीन रास्ते
बहुजन समाज पार्टी में बगावत करके स्वामी प्रसाद मौर्य सडक पर तो आ गए हैं. लेकिन आगे का रास्ता तय करना उनके लिए आसान नहीं है. तीन विकल्प हैं, लेकिन सबकी अपनी समय सीमा है.
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उत्तर प्रदेश में विपक्ष के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य अपनी जोरदार आवाज के लिए मशहूर हैं. विधानसभा में बहस के दौरान जब वो अपनी तेज आवाज में चीखते हुए समाजवादी पार्टी की बखिया उधेडते थे तो सबको सुनने के लिए मजबूर होना पडता था. लेकिन मायावती के बाद, बीएसपी के सबसे जाने पहचाने चेहरे स्वामी प्रसाद मौर्य ने जब अपने जिन्दगी की सबसे बडी चाल चली - तो इतनी खामोशी से - कि किसी को कानों कान खबर तक नहीं हुई.
मायावती को आज तक इतना बडा झटका किसी ने नहीं दिया है. चुनाव के ऐन वक्त पर मिले इस झटके से उनके पांव तले जमीन खिसक गई है. बीएसपी छोडने वाले और निकाले जाने वालों की लिस्ट काफी लंबी है और उसमें से कई नेता ऐसे थे तो कभी मायावती के विश्वासपात्र रहे हैं. कुछ तो उत्तर प्रदेश में बीएसपी के पार्टी अध्यक्ष भी रहे हैं.
आर के चौधरी, बरखू राम वर्मा, राजबहादुर, जंग बहादुर पटेल, राम लखन वर्मा, बाबू सिंह कुशवाहा से लेकर जितने भी नेता बीएसपी से गए मायावती की शान में कोई गुस्ताखी नहीं कर पाए. लेकिन उंची आवाज वाले स्वामी प्रसाद मौर्य इतनी महीन चाल चलेंगे - ये मायावती जैसी अनुभवी और पार्टी को प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह चलाने वाली नेता भी नहीं भांप पायीं. मौर्य ने अपनी बगावत की चाल को किस कदर छिपा कर रखा था उसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि बुधवार को जब उन्होंने विधानसभा भवन में पार्टी छोडने का ऐलान करने के लिए अपनी प्रेस क्रांफेस में बोलना शुरू किया तो बहुजन समाज पार्टी के कई कार्यकर्ता, कैमरों कि निगाहों में उनके पीछे खडे थे. जब मौर्य ने प्रेस कांप्रेस में बगावत का झंडा लहराया तो घबराकर पार्टी के लोग वहां से भाग खड़े हुए.
स्वामी प्रसाद मौर्य, बागी बीएसपी नेता |
बहुजन समाज पार्टी में बगावत करके स्वामी प्रसाद मौर्य सडक पर तो आ गए हैं. लेकिन आगे का रास्ता तय करना उनके लिए आसान नहीं है. ऐसी ही बगावत करने वाले आर के चौधरी, बरखू राम वर्मा का हस्र वो देख चुके हैं जिन्हें दर-दर भटकने के बाद मायावती की ही शरण में लौटना पडा था. बाबू सिंह कुशवाह की हालत भी उनके सामने है जो जेल से बाहर आकर राजनैतिक पहचान के लिए भटक रहे हैं. इसलिए मौर्य जल्दबाजी में कोई पछताने वाला कदम नहीं उठाना चाहते हैं. सारे विकल्पों को टटोलने के लिए वो शुक्रवार को दिल्ली रवाना हो गए.
फिलहाल उनका सारा ध्यान एक जुलाई को लखनऊ के सीएमएस स्कूल में होने वाले अपनी समर्थकों की बैठक पर है जिसे उनका शक्ति प्रदर्शन भी माना जा रहा है. कहा जा रहा है कि इस बैठक का रूख देखने के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य अपने आगले कदम का ऐलान करेंगें.
स्वामी प्रसाद मौर्य के सामने मोटे तौर पर तीन विकल्प मौजूद हैं:
1. समाजवादी पार्टी में शामिल होना
स्वामी प्रसाद मौर्य ने मायावती की नींद उडा दी तो जाहिर है इससे सबसे ज्यादा खुश समाजवादी पार्टी हुई है. जब मौर्य ने मायावती के खिलाफ जंग का ऐलान किया तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और शिवपाल यादव से लेकर आजम खान तक ने उनकी तारीफ मे कसीदे पढ़ना शुरू कर दिया. अखिलेश यादव ने तो यहां तक कहा कि वो अच्छे नेता हैं लेकिन गलत पार्टी में थे. जाहिर है, ऐसे बयानों के बाद उनके समाजवादी पार्टी में शामिल होने की और यहां तक कि मंत्री मिलने की भी चर्चा को जोर पकडना ही था लिया. यहां तक कहा जाने लगा कि यादवों की पार्टी मानी जाने वाली समाजवादी पार्टी के लिए स्वामी प्रसाद मौर्य बड़े काम के नेता साबित हो सकते हैं. उनके इस कदम से अति पिछडी जातियों - जैसे मौर्य, कुशवाहा, कोयरी, शाक्य, माली जैसी जातियों के बीच समाजवादी पार्टी की पैठ बढेगी. इन जातियों का आबादी उत्तर प्रदेश में करीब आठ फीसदी है.
लेकिन मौर्य के समाजवादी पार्टी में जाने की खबर परवान चढ़ पाती उससे पहले ही मौर्य ने समाजवादी पार्टी को गुडों की पार्टी कहकर खुद अटकलों को विराम दे दिया. गुरूवार को उनके इस बयान पर समाजवादी पार्टी के नेता भडक उठे. अब आजम खान उन्हें वापस बीएसपी में जाने की सलाह दे रहें है तो शिवपाल यादव ने शुक्रवार को यहां तक कह दिया कि उनका मानसिक संतुलन बिगड गया है और उन्हें इलाज की सख्त जरूरत है.
समाजवादी पार्टी के नेताओं का कहना है कि स्वामी प्रसाद मौर्य को लेकर उन्हें कोई परहेज नहीं है लेकिन वो फिलहाल चाहते हैं कि मौर्य जमीनी हकीकत से वाकिफ हो जाएं और फालतू की बयानबाजी बंद करें. समाजवादी पार्टी के एक बडे नेता याद दिलाने से नहीं चूके कि स्वामी प्रसाद मौर्य अपने बेटे और बेटी को भी चुनाव नहीं जिता पाए थे. खुद भी चुनाव हारने के बाद उपचुनाव में ही जीत सके. इसलिए फिलहाल उनके समाजवादी पार्टी में जाने का रास्ता बंद नजर आ रहा है.
2. क्या बीजेपी में खेल सकते हैं बड़ी पारी
स्वामी प्रसाद मौर्य ने बीएसपी में बगावत करने से पहले भी बीजेपी की नब्ज टटोली थी. बीजेपी इस समय जोर- शोर से पिछडी जातियों को उतर प्रदेश में साथ जोडने में जुटी है जिससे वो मोदी के जादू को विधानसभा चुनावों में भी भुना सके. इसी रणनीति के तहत, तमाम बडे चेहरों को छोडकर प्रदेश में बीजेपी की कमान केशव प्रसाद मौर्य को सौंपी गयी. लेकिन स्वामी प्रसाद मौर्य की महत्वाकांक्षा देखकर बीजेपी ने उन्हें ज्यादा घास नहीं डाली. कहा जाता है कि वो बीजेपी से यहां तक मांग कर रहे थे कि उन्हें मख्यमंत्री पद का दावेदार बनाकर पेश किया जाए.
मौर्य बीजेपी में न सिर्फ अपने लिए बल्कि अपने बेटे, बेटी और समर्थकों के लिए ठोस इंतजाम चाहते हैं. बीजेपी उनकी इतनी ज्यादा कीमत लगाने को भी तैयार नहीं है. मौर्य के बीजेपी में आने का अटकलों से बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य भी बहुत ज्यादा उत्साहित नहीं हैं, डाहिर हैं, होंगे कैसे दोनों एक ही वोट बैंक के दावेदार हैं. बहरहाल, मौर्य दिल्ली में बीजेपी के नेताओं से लगातार संपर्क में हैं. फिलहाल बात बनती नहीं दिखती - कम से कम उन शर्तों पर तो बिलकुल नहीं जो स्वामी प्रसाद मौर्य ने सामने रखी है.
3. खुद की पार्टी खड़ा करना
अपनी पार्टी बनाने का रास्ता ही फिलहाल स्वामी प्रसाद मौर्य के लिए सबसे आसान दिखता है. उनकी कोशिश होगी कि मायावती से नाराज पार्टी के भीतर और बाहर सभी नेताओं को लामबंद किया जाए. मायावती अपने छह विधायकों को पहले ही पार्टी से निकाल चुकी है. मौर्य उन सब के संपर्क में हैं. उनकी नजर उन नेताओं पर भी है जो हैं तो बीएसपी में लेकिन जिनको विधानसभा चुनावों में टिकट मिलने की उम्मीद नहीं है. एक तारीख की बैठक में मौर्य को इस बात का भी अंदाजा हो जाएगा कि कितने लोग उनकी तरह खुली बगावत करके उनके साथ आने की हिम्मत दिखाते हैं.
अपनी पार्टी बनाना तो आसान है - चलाना बेहद मुश्किल. उत्तर प्रदेश में पिछले विधानसभा चुनाव में पीस पार्टी की बडी धूम थी और माना जा रहा था कि वो चुनावों में बड़ा उलट फेर कर सकते हैं. लेकिन इतनी हवा बनाने के बाद भी पीस पार्टी के सिर्फ चार विधायक ही जीत सके.
स्वामी प्रसाद मौर्य का वोट बैंक किसी बडी पार्टी के साथ जुडकर तो हार को जीत में बदल सकता है लेकिन महज अपने दम पर चुनावी खेल में मौर्य कोई बडे खिलाडी नहीं साबित हो सकते. जानकारों का ये भी मानना है कि अपनी पार्टी बनाकर स्वामी प्रसाद मौर्य की कोशिश होगी कि चुनावों के ऐन पहले वो किसी बडी पार्टी का दामन थाम लें.
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