8 सबसे बड़े आरोप, जिन्होने भारतीय राजनीति में तहलका मचा दिया
आजादी के बाद से आजाद भारत में आजादी से घुटाले हुए. उजागर हुए तो चौकाने वाला सच सामने आया. किसी घोटाले में प्रधानमंत्री का नाम आया तो किसी में मुख्यमंत्री का.
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हमारे देश में विकास के नाम पर अभी तक बहुत कुछ हुआ है. आजादी के बाद से देश में सड़क पानी बिजली पर काम किया गया. यहां जैसे-जैसे देश विकसित हो रहा है वैसे-वैसे भ्रष्टाचार भी जवान होता रहा है. घोटालों की लिस्ट और इनसे जुड़ा पैसा इतना अधिक है कि यदि जन उपयोग की किसी योजना के अंतर्गत ये पैसा सारे देश में लगा दिया जाए तब इतना काम होगा कि दुनिया देखेगी.
आजादी के बाद से आजाद भारत में आजादी से घुटाले हुए. उजागर हुए तो चौकाने वाला सच सामने आया. किसी घोटाले में प्रधानमंत्री का नाम आया तो किसी में मुख्यमंत्री का. ये वो घोटाले हैं जिनकी शुरुआत आजादी के बाद से शुरू हो गए थे. आइए जानते हैं...
मारुति घोटाला
मारुति घोटाला 1974 में हुआ था. इस घोटाले में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का नाम खूब उछाला गया. मामल में पेसेंजर कार बनाने का लाइसेंस देने के लिए संजय गांधी की मदद की गई थी. 1973 में सोनिया गांधी को मारुति टेक्निकल सर्विसेज़ प्राइवेट लि. का एमडी बनाया गया.
हालांकि सोनिया के पास इसके लिए ज़रूरी तकनीकी योग्यता नहीं थी. कंपनी को इंदिरा सरकार की ओर से टैक्स, फ़ंड और ज़मीन को लेकर कई छूटें मिलीं. मगर कंपनी बाज़ार में उतारने लायक एक भी कार नहीं बना सकी और 1977 में बंद कर दी गई.
अंतुले ट्रस्ट
अंतुले ट्रस्ट प्रकरण की गूंज 1981 में हुई. यह महाराष्ट में हुए सीमेंट घोटाले से संबंधित था. तत्कालीन महाराष्ट्र मुख्यमंत्री ए आर अंतुले का नाम एक घोटाले में सामने आया. उन पर आरोप यह था कि उन्होंने इंदिरा गांधी प्रतिभा प्रतिष्ठान, संजय गांधी निराधार योजना, स्वावलंबन योजना आदि ट्रस्ट के लिए पैसा जुटाया.
जो लोग, खासकर बड़े व्यापारी या मिल मालिक ट्रस्ट को पैसा देते थे, उन्हें सीमेंट का कोटा दिया जाता था. बॉम्बे हाई कोर्ट ने दोषी ठहराया तो उन्होंने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया. लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट ने उनको सभी दोषों से मुक्त कर दिया.
कुओ ऑयल डील
1976 में तेल के गिरते दामों के मद्देनजर इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन ने हांग कांग की एक फर्जी कंपनी से ऑयल डील की. इसमें भारत सरकार को 13 करोड़ का चूना लगा. माना गया इस घपले में इंदिरा और संजय गांधी का भी हाथ है.
साइकिल आयात
1951 में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के सचिव एस.ए.वेंकटरमण थे. गलत तरीके से एक कंपनी को साइकिल आयात करने का कोटा जारी करने का आरोप लगा. इसके बदले उन्होंने रिश्वत भी ली. इस मामले में उन्हें जेल भी जाना पड़ा था.
बोफोर्स घोटाला
इस घोटाले ने 1980 और 1990 के दशक में गांधी परिवार और ख़ासकर तब प्रधानमंत्री रहे राजीव गांधी की छवि को गहरा धक्का पहुंचाया. आरोप थे कि स्वीडन की तोप बनाने वाली कंपनी बोफ़ोर्स ने कमीशन के बतौर 64 करोड़ रुपए राजीव गांधी समेत कई कांग्रेस नेताओं को दिए थे ताकि वो भारतीय सेना को अपनी 155 एमएम हॉविट्ज़र तोपें बेच सके.
बाद में सोनिया गांधी पर भी बोफ़ोर्स तोप सौदे के मामले में आरोप लगे जब सौदे में बिचौलिया बने इतालवी कारोबारी और गांधी परिवार के क़रीबी ओतावियो क्वात्रोकी अर्जेंटिना चले गए.
एचडीडब्लू दलाली
जमर्नी की पनडुब्बी निर्मित करने वाली कंपनी एचडीडब्ल्यू को काली सूची में डाल दिया गया. मामला था कि उसने 20 करोड़ रुपये बैतोर कमिशन दिए हैं. आखिरकार वर्ष 2005 में इस केस को बंद करने का फैसला लिया गया. यह फैसला एचडीडब्ल्यू के पक्ष में रहा.
सिक्योरिटी स्कैम
इंडियन इकोनॉमी के लिए साल 1990 से 92 का समय बड़े बदलाव का वक्त था. लेकिन इसी दौर में देश के सामने एक ऐसा घोटाला सामने आया, जिसने शेयर खरीद-बिक्री की प्रकिया में ऐतिहासिक परिवर्तन किए. इस तेजी के लिए शेयर ब्रोकर हर्षद मेहता जिम्मेदार माना जाने लगा. एक वक्त ऐसा था जब हर्षद मेहता शेयर मार्केट में लगातार निवेश करता जा रहा था.
जिस कारण शेयर मार्केट में लगातार तेजी बनती चली गई. लेकिन फिर सवाल उठा कि आखिर शेयर मार्केट में निवेश करने के लिए मेहता के पास इतने पैसे कहां से आए. फिर खुलासा हुआ कि मेहता दो बैंकों के बीच बिचौलिया बनकर 15 दिन के नाम पर लोन लेकर बैंकों से पैसा उठाता और फिर मुनाफा कमाकर बैंकों को पैसा लौटा देता. ये बात जब सामने आई तो शेयर मार्केट में तेजी से गिरावट आनी शुरू हो गई. 4,000 करोड़ रुपए से अधिक के इस घोटाले के बाद ही सेबी को शेयर मार्केट में गड़बड़ी रोकने की ताकत दी गई.
तेजा ऋण
1960 में एक बिजनेसमैन धर्म तेजा ने एक शिपिंग कंपनी शुरू करने के लिए सरकार से 22 करोड़ रुपये का लोन लिया. लेकिन बाद में धनराशि को देश से बाहर भेज दिया. उन्हें यूरोप में गिरफ्तार किया गया और छह साल की कैद हुई.
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