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Updated: 18 सितम्बर, 2019 04:10 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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इस महीने की शुरुआत के साथ ही सड़कों की तस्वीर बदल गई. दरअसल, 1 सितंबर 2019 से नया मोटर व्हीकल्स एक्ट (Motor Vehicle Act 2019) लागू हो गया था. सख्त फैसलों के लिए जानी जाने वाली मोदी सरकार का ये फैसला भी बेहद सख्त रहा, जिसके तहत भारी-भरकम जुर्माने का प्रावधान किया गया. फिर क्या था, कुछ सौ रुपए के चालन हजार से लाख-डेढ़ लाख तक पड़ने लगे. कई राज्‍यों ने इसे लागू करने से ही मना कर दिया. भारी-भरकम जुर्माने को ही इसे लागू नहीं करने की वजह बताया. शुरुआत की विपक्षी सरकारों ने. राजस्थान, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल ने नए मोटर व्हीकल एक्ट को ये कहते हुए लागू करने से मना कर दिया कि इसके तहत जुर्माना बहुत अधिक लगाया जा रहा है. लेकिन अब विरोधियों की लिस्ट में भाजपा शासित प्रदेश भी शामिल हो चुके हैं और ये लिस्ट हर बीतते दिन के साथ लंबी ही होती जा रही है.

जब तक कांग्रेस शासित या अन्य विपक्षी सरकारों वाले राज्य नए मोटर व्हीकल्स एक्ट का विरोध कर रहे थे, तब तक तो मोदी सरकार के फैसले पर सवाल नहीं उठ रहे थे. यही कहा जा रहा था कि विपक्षी तो विरोध ही करेंगे, उनका तो काम ही यही है. लेकिन तब मोदी सरकार की ओर उंगलियां उठने लगीं, जब पीएम मोदी और अमित शाह का गृहराज्य गुजरात भाजपा शासित प्रदेशों में से विरोध करने वाला पहला राज्य बना. नए नियम का गुजरात ने ना सिर्फ विरोध किया, बल्कि उसमें बदलाव कर के उसे लागू किया. इसके बाद तो जैसे विरोध करने वाले राज्यों की झड़ी ही लग गई. अब सवाल ये उठता है कि आखिर मोदी सरकार से ऐसी कौन सी चूक हो गई कि भाजपा शासित राज्य ही उसके विरोध में खड़े हो गए हैं?

मोटर वेहिकल एक्ट, नितिन गडकरी, मोदी सरकार, भाजपानए मोटहर व्हीकल एक्ट की बात करें तो गडकरी तो मोर्चे पर खड़े दिख रहे हैं, लेकिन उनके पीछे ना तो पीएम मोदी हैं, ना ही अमित शाह.

कहां गलती कर दी मोदी सरकार ने?

बात भले ही ट्रिपल तलाक की हो, जीएसटी की हो या फिर धारा 370 की क्यों ना हो. किसी भी मुद्दे पर बिल लाने से पहले भाजपा ने उस पर पूरा फोकस किया, अपना एक नैरेटिव सेट किया, मुद्दे को एक आंदोलन का रूप दे दिया और खूब वाहवाही लूटी. इतना सब करने के बाद मोदी सरकार जब भी कोई बिल लेकर आई तो पूरे देश का समर्थन मिला. लेकिन मोटर व्हीकल्स एक्ट के साथ ऐसा क्यों नहीं हुआ? इसकी वजह यही है कि इस पर ना तो मोदी सरकार ने पूरा फोकस किया, ना ही इस मुद्दे को एक आंदोलन की शक्ल दी. यहां तक कि सरकार ने जीएसटी को भी लागू करने से पहले एक जागरुकता फैलाई, सबको भरोसे में ले लिया, विपक्षी सरकारों तक को इस बात पर राजी कर लिया कि वह अपने यहां जीएसटी को लागू कर दें.

वहीं दूसरी ओर, ट्रैफिक रूल्स जैसे जनहित के इतने बड़े मुद्दे को मोदी सरकार ने काफी हल्के में डील किया. ना तो नए मोटर व्हीकल्स एक्ट के लागू होने से पहले मोदी सरकार ने इसे लेकर जागरुकता फैलाई, ना ही लागू करने के बाद लोगों को इसके बारे में जागरुक करने की जहमत उठाई. आखिर रोड सेफ्टी भी तो लोगों के भले की बात है, तो फिर इसे क्यों प्रचारित नहीं किया गया? अब नए नियमों को एक के बाद एक भारत के राज्य लागू करने से मना कर रहे हैं या फिर बदलाव के साथ लागू कर रहे हैं. लेकिन क्या जागरुकता नहीं फैलाना ही असली वजह है या मामला कुछ और है? और अगर जागरुकता नहीं फैलाना ही असली वजह है तो इसे चूक कहें या किसी रणनीति का हिस्सा?

जनता नहीं, बस सरकारें कर रहीं विरोध

एक मजेदार बात ये है कि नए मोटर व्हीकल्स एक्ट का जनता की ओर से सोशल मीडिया पर भले ही छुटपुट विरोध दिख रहा हो, लेकिन सड़कों पर अभी तक कोई प्रदर्शन नहीं दिखा. ना तो गुजरात में, ना ही महाराष्ट्र ना ही किसी अन्य राज्य में. तो फिर ऐसा क्या है, जिसने वहां की सरकारों को नियम के खिलाफ जाने पर मजबूर किया? खासकर भाजपा शासित राज्यों का विरोध सवाल खड़े करता है. जनता ये नहीं कह रही कि चालाना नहीं काटना चाहिए या हेलमेट नहीं लगाना सही है, बल्कि ट्रक-बस ड्राइवर भी मान रहे हैं कि यातायात नियमों का पालन होना चाहिए. कोई भी नियमों के खिलाफ नहीं है, लेकिन सरकारें फिर भी विरोध कर रही हैं.

सरकारों की ओर से हो रहे विरोध में एक और खास बात है कि कोई भी सरकार बड़ा लॉजिक नहीं दे रही है. महाराष्ट्र में मान भी लें कि चुनाव होने वाले हैं तो खुद को जनता का हिमायती दिखाने के लिए देवेंद्र फडणवीस नियम में बदलाव की मांग कर रहे हैं, लेकिन गुजरात की क्या मजबूरी है? वहां तो हाल-फिलहाल में कोई चुनाव भी नहीं है. वहीं दूसरी ओर, पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के गृहराज्य गुजरात में तो जनता मोदी की हर बात मानती है, तो फिर विजय रूपाणी ने नियमों में बदलाव क्यों किया? कहीं पार्टी में अंदरखाने कोई खिचड़ी तो नहीं पक रही? कहीं पहले ही कोई सलाह मशवरा तो नहीं हो गया था रूपाणी के साथ? अब सवाल ये उठता है कि ये सब वाकई राज्यों का विरोध है, या मोदी सरकार की चूक या फिर कोई दूसरा ही खेल खेला जा रहा है?

कौन से राज्य हैं विरोध में?

भाजपा विरोधी राज्य पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल का नए ट्रैफिक रूल्स का विरोध करना तो समझ आता है, लेकिन भाजपा शासित राज्यों ने भी इसका विरोध करना शुरू कर दिया है. नए मोटर व्हीकल्स एक्ट के विरोध की शुरुआत गुजरात ने की, जिसने नियमों में बदलाव कर के उन्हें लागू कर लिया. फिर महाराष्ट्र ने भी कह दिया कि वह नए नियमों पर विचार करेगा, तब लागू करेगा. उत्तराखंड ने ओवर स्पीडिंग से जुड़े नियम का जुर्माना घटाते हुए नए मोटर व्हीकल्स एक्ट को लागू कर लिया. हरियाणा ने भी फिलहाल इसे लागू करने पर रोक लगा दी है और वह जागरूकता फैला रहा है. कर्नाटक और तेलंगाना भी इस पर विचार कर रहे हैं, उसके बाद लागू करेंगे.

भाजपा vs भाजपा की राजनीति !

कांग्रेस जब कभी भाजपा के फैसलों का विरोध करती है तो उसमें कोई बड़ी बात नहीं लगती. वैसे भी, विपक्षी विरोध नहीं करेंगे तो करेंगे क्या? लेकिन इस बार तो भाजपा शासित राज्यों ने भी विरोध करना शुरू कर दिया है. भाजपा की यही तो ताकत है कि वह जो भी करती है, पूरी पार्टी एकजुट होकर खड़ी हो जाती है, सारे मिलकर एक सुर में एक ही बात कहते हैं. आंतरिक सामंजस्य ही तो भाजपा की ताकत के साथ-साथ यूनीकनेस है. सब कुछ पहले से ही मैनेज कर लेने वाली भाजपा मोटर व्हीकल्स एक्ट को लागू करने में कहां चूक गई है? वाकई मोदी सरकार से इस बार कोई चूक हुई है या फिर जानबूझ कर कोई खेल खेला जा रहा है?

गडकरी सर्वेसर्वा या अकेले पड़े योद्धा?

नए मोटर व्हीकल्स एक्ट पर राज्यों की ओर से विरोध के बाद न तो पीएम मोदी राज्यों को समझाने के लिए सामने आ रहे हैं, ना ही गृहमंत्री अमित शाह इस मुद्दे पर राज्यों से कोई अपील कर रहे हैं. कोई इस मुद्दे पर बोल रहा है तो वो हैं नितिन गडकरी. यूं लग रहा है जैसे सारा दारोमदार सिर्फ गडकरी के कंधों पर लाद दिया गया है. लेकिन अगर ऐसा है भी तो क्यों? क्या मोदी-शाह को गडकरी पर इतना भरोसा है कि वह अकेले ही सब कुछ संभाल लेंगे? या गडकरी और मोदी-शाह के बीच कोई दरार आ गई है, जिसके चलते गडकरी अब मैदान में अकेले खड़े लड़ते दिख रहे हैं?

खैर, ये तो कहना गलत होगा कि मोदी-शाह को गडकरी पर इतना भरोसा है कि सब कुछ उन्हीं के भरोसे छोड़ दिया गया है. मोदी सरकार ने कभी भी किसी भी मुद्दे को एक शख्स पर नहीं छोड़ा. पूरी पार्टी ने मिलकर हर मुद्दे पर आवाज उठाई है. अब थोड़ा पीछे चलते हैं, लोकसभा चुनाव से भी पहले, जब गडकरी आए दिन कुछ ना कुछ ऐसा बोल देते थे, जो मोदी सरकार के खिलाफ चला जाता था. पूरी पार्टी फिर खुद को बचाने में जुट जाती थी. बातें तो यहां तक होने लगी थीं कि अगर मोदी नहीं, तो इस बार गडकरी भी पीएम बन सकते हैं. खैर, चुनाव बीत गए, मोदी फिर से पीएम बन चुके हैं और अब यूं लग रहा है मानो गडकरी की मोदी-शाह से नहीं पट रही. वरना भाजपा शासित राज्यों के विरोध के बाद मोदी-शाह को कम से कम उन राज्यों से नए नियम को लागू करने की अपील तो करनी ही चाहिए थी और मोदी सरकार को जागरुकता भी फैलानी चाहिए थी.

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