RSS के दशहरा कार्यक्रम में 'मुस्लिम' अतिथि का सच !
दौर बदल रहे हैं, चीजें परिवर्तित हो रही हैं ऐसे में संघ का अनूठा फैसला इस बात की ओर साफ इशारा कर रहा है कि अब वो भी एक ऐसे भारत की तरफ कूच करने को आतुर है जो सबके साथ और सबके विकास पर बल देता है.
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मेन स्ट्रीम मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक, एक रोचक खबर से चर्चाओं का बाजार गर्म है. साथ ही इस खबर को कुछ इस तरह से पेश किया जा रहा है कि लगता है मानो अब इसके बाद से ही भारत में हिन्दू-मुस्लिम एकता की नई इबारतें लिख दी जाएंगी. खबर कुछ यूं है कि इतिहास में ऐसा पहली बार होगा जब कोई मुस्लिम, संघ के दशहरा कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि अपनी उपस्थिति दर्ज कराएगा. जी हां, बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप. खबर है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इस साल अपने मुख्यालय नागपुर में होने वाली दशहरा पूजा में एक 'मुस्लिम' को बतौर मुख्य अतिथि बुलाए जाने का निर्णय लिया है.
बताया जा रहा है कि, संघ ने जिस मुस्लिम को अपने कार्यक्रम में आने का न्योता दिया है उनका नाम मुनव्वर यूसुफ है जो पेशे से एक होमियोपैथी चिकित्सक हैं और मुसलमानों के एक पंथ 'बोहरा समुदाय' से सम्बन्ध रखते हैं. कहा ये भी जा रहा है कि संघ की इस पहल से संघ और आम मुसलमानों के बीच रिश्ते मधुर होंगे.
ये दशहरा संघ के लिए भी खास है और बोहरा मुसलमानों के लिए भी
बहरहाल, यहां बात मुसलमानों और संघ की हो रही थी. हां वो मुसलमान जिनसे संघ खटास दूर करके अपने सम्बन्ध मधुर करना चाह रहा था. तो जैसा कि हम आपको बता चुके हैं अपने कार्यक्रम में संघ एक बोहरा मुसलमान को आमंत्रित कर आप मुसलमानों के बीच अपनी पैठ स्थापित करने की कोशिश कर रहा है. मगर इस पूरे मामले में सबसे दिलचस्प बात ये है कि खुद न तो बोहरा मुसलमान ही आम मुसलमानों के ज्यादा करीब है और न ही आम मुसलमान बोहरा मुसलमान के.
कह सकते हैं दोनों के बीच भारी अंतर है और दोनों किसी खाई या फिर समुन्द्र के दो अलग छोरों पर रह रहे हैं जिनकी मस्जिदें अलग हैं, जिनके नमाज पढ़ने का तरीका अलग है, और जो एक अलग तरह का प्रोग्रेसिव जीवन जीते हैं जिससे आज भी भारत का आम मुसलमान कोसों दूर हैं.
जी हां बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप. एक आम भारतीय मुसलमान से ठीक विपरीत, मुसलमानों के जिस सब-सेक्ट से संघ, नजदीकी बढ़ा रहा है यदि आप उनको अब भी हल्के में ले रहे हैं तो ये आपकी एक बड़ी भूल है. भारत के गुजरात से सम्बन्ध रखने वाला बोहरा समुदाय न सिर्फ आज से बल्कि प्राचीन काल से व्यापर के क्षेत्र में अपनी गहरी पैठ रखता आया है. स्वाभाव से बेहद इमानदार, वतनपरस्त और पूर्णतः पेशेवर बोहरा समुदाय मुसलमानों का वो सब सेक्ट है जो आर्थिक दृष्टि से बेहद मजबूत है.
संघ जिन मुसलमानों को साथ लेकर जिनकी बात कर रहा है दोनों में एक बड़ा फर्क है
इनके बारे में ये भी मशहूर है कि ये धर्म के लिहाज से हैं तो मुसलमान मगर इनमें आम भारतीय मुसलमानों जैसा कोई भी गुण नहीं है. बात अगर भारत में बोहरा समुदाय की आबादी की हो तो करीब 5 लाख बोहरा मुसलमान भारत के गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और कर्नाटक के अलग-अलग शहरों में वास करते हैं. खैर आइये कुछ चुनिन्दा वजहों से जाननें का प्रयास करें कि कैसे बोहरा मुसलमान को एक आम मुसलमान समझना और इन दोनों को एक ही सांचे में डालना एक भारी भूल है.
पीएम मोदी के दिल के करीब है बोहरा मुसलमान
जी हां संघ द्वारा किसी मुसलमान को अपने कार्यक्रम में शामिल करने के पीछे की एक सबसे बड़ी वजह ये भी है कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन्हें बहुत पसंद करते हैं और इन्हें भी प्रधानमंत्री और उनकी कार्यप्रणाली से खासा लगाव है. देश में कई मौके ऐसे आए हैं जब मोदी और बोहरा दोनों ही एक दूसरे की तारीफों के कसीदे गढ़ चुके हैं.
आम मुसलमानों से बेहद अलग हैं बोहरा मुसलमान
बोहरा मुसलमानों और देश के आम मुसलमानों के बीच बड़ा अंतर है. कह सकते हैं ये दोनों ही एक खाई के दो ऐसे मुहानों पर हैं जो कभी भी एक दूसरे के पास नहीं आ सकते. जहां एक तरफ देश का आम मुसलमान गरीबी का दंश झेल रहा है, अच्छी शिक्षा के लिए जद्दोजहद कर रहा है, नौकरी के अवसर तलाश रहा है, अपनी कुंठाओं से, अपने आप से लड़ रहा है तो वहीं दूसरी तरफ बोहरा मुसलमान हर मामले में आम मुसलमानों से ज्यादा समृद्ध है. इनके पास पैसा भी है और सामाजिक तौर पर भी ये आम मुसलमानों से ज्यादा मजबूत हैं.
यदि आप देखें तो विज्ञान, तकनीक, अर्थजगत समेत लगभग सभी जगहों पर बोहरा मुसलमान बैठे हुए हैं. बोहरा मुसलमानों ने न सिर्फ भारत बल्कि यूरोप, अमेरिका और मिडिल ईस्ट में अपनी गहरी पैठ बना रखी है और ये जहां भी रहते हैं एकजुट रहते हैं और अपनी अलग पहचान बनाए रखते हैं.
ये बात किसी से छुपी नहीं है कि मोदी व्यापारियों को पसंद करते हैं और बोहरा भी व्यापर में समृद्ध हैंमोदी को बिजनेस-मैन भाते हैं
ये बात आपको थोड़ी अटपटी लगेगी मगर ये एक ऐसा सत्य है जिसे नाकारा नहीं जा सकता. ज्ञात हो कि वर्तमान में संघ जो भी करता है उसके पीछे प्रधानमंत्री की मर्जी शामिल होती है. कह सकते हैं कि संघ द्वारा एक बोहरा मुस्लिम को अपने कार्यक्रम में आमंत्रित करने के पीछे की सबसे बड़ी वजह ये भी है कि मोदी उस वर्ग को बड़ा पसंद करते हैं जो व्यापर और अर्थ व्यवस्था में योगदान देकर भारत का नाम विश्व मानचित्र पर ऊपर उठाता है.
इस सम्मान में, मुस्लिम तुष्टिकरण मत खोजिये
हमें इस मुलाकात के बाद ये बिल्कुल नहीं मानना चाहिए कि इससे मुस्लिम तुष्टिकरण को बल मिलेगा. संघ व्यापारी समुदाय के एक सम्मानित व्यक्ति से मुलाकात कर रहा है तो क्यों न इसे एक साधारण मुलाकात की ही तरह देखा जाए और इसको देखकर या सुनकर भावनाओं को काबू में रखा जाए.
अंत में इतना ही कि आम मुसलमान तो यूं भी पस्ताहाली का जीवन जी रहा है और उसे इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा. हां मगर ये मुलाकात बोहरा समुदाय के लिए बहुत खास रहेगी. इस मुलाकात से जहां एक तरफ बोहरा समुदाय और ज्यादा विकसित और समृद्ध होगा तो वहीं दूसरी तरफ इनके ज्यादा विकसित होने से फायदा हमारे देश भारत को ही मिलेगा. अतः ये माना जा सकता है कि ये मुलाकात संघ और संघ प्रमुख मोहन भागवत के लिए जितनी महत्वपूर्ण है उतना ही इस मुलाकात का महत्त्व बोहरा समुदाय और बोहरा प्रमुख सैयदना मुफद्दल सैफ उद्दीन साहब के लिए है.
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