केजरीवाल सरकार के दो साल: थोड़ा है, बहुत की जरूरत है
केजरीवाल सरकार अपने दो साल पूरे कर चुकी है तो यह सवाल उठना लाजिमी है कि जिन वादों इरादों के साथ आम आदमी पार्टी की सरकार दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुई थी, उन वादों को 2 सालों में कितने दूर तक ला सकी है.
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14 फरवरी 2015 को जब अरविंद केजरीवाल ने दूसरी बार दिल्ली की सत्ता संभाली थी तो पूरे दिल्ली वालों को उनसे यही उम्मीद थी कि दिल्ली में क्रांतिकारी बदलाव देखने को मिलेंगे. अरविंद केजरीवाल से दिल्ली के लोगों की उम्मीदों का अंदाजा केजरीवाल को मिलने वाले सीटों से ही लगाया जा सकता है, आम आदमी पार्टी को 70 में 67 सीटों पर जीत मिली थी. अब जबकि केजरीवाल सरकार अपने दो साल पूरे कर चुकी है तो यह सवाल उठना लाजिमी है कि जिन वादों इरादों के साथ आम आदमी पार्टी की सरकार दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुई थी, उन वादों को 2 सालों में कितने दूर तक ला सकी है.
अगर देखा जाय तो केजरीवाल सरकार का दूसरा साल काफी विवादों से भरा रहा, केजरीवाल सरकार जहां कई मुद्दों पर केंद्र सरकार और दिल्ली के उप राज्यपाल से जंग करती रही तो वहीं केजरीवाल सरकार के दर्जन भर से ज्यादा मंत्री विधायकों पर कई तरह के आरोप लगे. पिछले एक साल में केजरीवाल सरकार पर दिल्ली से ज्यादा पंजाब की सत्ता पर ज्यादा ध्यान लगाने के आरोप भी लगे.
अरविंद केजरीवाल की सरकार ने पूरे साल केंद्र सरकार पर काम न करने देने का आरोप लगाते भी नजर आये. केजरीवाल सरकार आरोप प्रत्यारोप को कितना पसंद करती है उसकी एक झलकी केजरीवाल सरकार के दो साल की उपलब्धियों को बताते हुए एक पोस्टर में भी दिख सकती है. 'साल तो केवल दो हुए हैं, काम मगर ढेरों हुए हैं' हालांकि कहने को यह पोस्टर सरकार की उपलब्धियों को बताता है मगर यह पोस्टर ज्यादातर पूर्व की सरकारों को कोसता ही नजर आ रहा है.
किए ये सब काम-
ऐसा नहीं है की केजरीवाल सरकार ने दो सालों में कुछ काम नहीं किया है, केजरीवाल सरकार ने शिक्षा, स्वास्थ्य और जलापूर्ति के क्षेत्र में कुछ बेहतर कदम उठाये हैं जो बेहतर परिणाम भी दे रहे हैं. सरकार ने शिक्षा को अपने टॉप प्रायोरिटी में रखा इसके लिए सरकार ने पहले जहां एजुकेशन बजट को दोगुना किया, वहीं पिछली बार बजट का 25 पर्सेंट हिस्सा एजुकेशन पर खर्च करने का बड़ा फैसला भी लिया. इस दौरान सरकार ने 8 हजार नये क्लासरूम का निर्माण कर करीब 200 नये स्कूलों के बराबर इंफ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध कराया है. इस दौरान सरकार प्राइवेट स्कूलों की मनमानी पर भी लगाम लगाने में भी कामयाब रही है 2016-17 सेशन में केवल चार प्राइवेट स्कूलों को ही फीस बढ़ाने की इजाजत दी गई जो आम लोगों को राहत देने वाली रही. सरकार के प्रयासों से निश्चित रूप से शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार आया है. स्वास्थ्य में भी सरकार ने मोहल्ला क्लिनिक बनाकर अपने वादों को पूरा करने दिशा में कदम उठाये हैं, हालांकि सरकार अभी भी 1000 मोहल्ला क्लिनिक के लक्ष्य से काफी पीछे है, फिर भी सरकार इस दिशा में प्रयास करती दिख रही है. इन दो सालों में दिल्ली के भ्रष्टाचार में कमी आयी है जो केजरीवाल सरकार की उपलब्धि कही जा सकती है.
हालांकि, केजरीवाल सरकार ने इस दौरान कई अहम मुद्दों को नजरअंदाज कर दिया है, प्रदूषण जो दिल्ली वालों की बहुत बड़ी समस्या है को कम करने की दिशा में कुछ एक कदम तो उठाये मगर वो कदम दिल्ली की विकराल प्रदूषण के सामने काफी नाकाफी है. सरकार ने नारी सुरक्षा की दिशा में कई कदम उठाने की बातें कही थी मगर इनमें से ज्यादातर अभी भी वायदों के रूप में ही हैं. इस दिशा में अभी भी कोई ठोस कदम नहीं उठाये गए हैं. दिल्ली की पब्लिक ट्रांसपोर्ट को सुधारने की बातें तो बहुत की गयी मगर आकंड़े बताते हैं कि पिछले दो सालों के दौरान एक भी नयी बस डीटीसी को नहीं मिली है. दिल्ली वासियों को अभी तक फ्री wifi का इंतजार है, वहीं सरकार ने कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों को भी रेगुलर करने का वायदा किया था मगर सरकार अभी तक इस वायदे को पूरा नहीं कर सकी है.
कुल मिलाकर केजरीवाल सरकार के दो सालों पर यह कहा जा सकता है कि थोड़ा है, बहुत की जरुरत है.
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