Uddhav Thackeray को अशोक गहलोत जैसा अंजाम क्यों नजर आ रहा है?
उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) भी ऐसा लगता है जैसे अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) जैसा व्यवहार करने लगे हैं जबकि राजस्थान के मौजूदा राजनीतिक हालात की वजह महाराष्ट्र जैसी तो कतई नहीं है- आखिर बीजेपी (BJP) को सरकार गिराने की चुनौती देकर उद्धव ठाकरे कहना क्या चाहते हैं?
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उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) का अपनी सरकार के गिर जाने का खतरा महसूस होना स्वाभाविक है, लेकिन सरकार गिराये जाने की अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) की तरह आशंका जताना थोड़ा अजीब लगता है. उद्धव ठाकरे भी अपनी गठबंधन सरकार को लेकर बीजेपी (BJP) पर वैसे ही हमला बोल रहे हैं जैसे अशोक गहलोत ने शुरुआत की थी. बीजेपी का राजस्थान के मामले में भी पहले वैसा ही रूख रहा जैसा अभी महाराष्ट्र को लेकर है. महाराष्ट्र के बारे में बीजेपी की तरफ से तो यही कहा जा रहा है कि महाविकास अघाड़ी सरकार अपने ही गिर जाएगी, फिर कुछ करने की जरूरत ही क्या है. राजस्थान को लेकर भी बीजेपी तब आक्रामक हुई है जब केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के खिलाफ केस दर्ज हुआ है.
जैसे कोरोना वायरस को लेकर लॉकडाउन के मामले में गैर-बीजेपी दलों की सरकारें आगे हुआ करती थीं - क्या सरकार गिराने के नाम पर बीजेपी को घेरने की ये भी कोई विपक्ष की कॉमन रणनीति है?
ठाकरे का चैलेंज
उद्धव ठाकरे की सरकार तो छह महीने पूरे होते ही गिर गयी होती, अगर वो राज्य के दोनों सदनों में से किसी एक के सदस्य नहीं बने होते. अगर उद्धव ठाकरे की सरकार छह महीने बाद भी वैसे ही चलती रही है तो उनको तो बीजेपी का ही शुक्रगुजार होना चाहिये. उद्धव ठाकरे ने खुद ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फोन किया था और उसके बाद ही सारे घटनाक्रम उनके पक्ष में होते गये.
अशोक गहलोत को अपनी सरकार पर खतरा और साजिश क्यों लग रहा था, सब कुछ तो साफ हो चुका है. जो थोड़ा बहुत काम बचा है उसमें वो जुटे हुए हैं और हो सकता है उसमें भी कामयाब हो जायें, लेकिन उद्धव ठाकरे के सामने सचिन पायलट जैसी कोई चुनौती तो लग नहीं रही है. उनके बेटे आदित्य ठाकरे तो विधानसभा चुनाव लड़कर विधायक बने हैं और अब तो उनके कैबिनेट साथी भी हैं. अशोक गहलोत की तरह उनको तो बेटे की जरा भी चिंता नहीं होनी चाहिये. फिर उद्धव ठाकरे के अपनी सरकार पर अचानक खतरा महसूस होने की आखिर क्या वजह हो सकती है?
सामना के साथ एक इंटरव्यू में उद्धव ठाकरे ने कहा है - सरकार का भविष्य विपक्ष के नेता पर निर्भर नहीं है, इसलिए मैं कहता हूं कि सरकार गिराना है तो अवश्य गिराओ. सामना शिवसेना का ही मुखपत्र है - और उद्धव ठाकरे की पत्नी रश्मि ठाकरे फिलहाल उसकी संपादक हैं. शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत सामना के एग्जिक्यूटिव एडीटर हैं. व्यवस्था अपनी जगह है और जो बातें कही गयी हैं वे अलग हैं और उनका खास मतलब भी है.
बीच बीच में बीजेपी नेता उद्धव सरकार को तीन टांगों वाली या तिपहिया सरकार बता कर तंज कसते रहे हैं, उद्धव ठाकरे को वो बात लगता है काफी बुरी लगी है. जैसे राहुल गांधी के 'चौकीदार चोर है' स्लोगन के काउंटर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नाम के पहले चुनावों के दौरान चौकीदार लगा लिया था, उद्धव ठाकरे ने भी उसी स्टाइल में जवाब दिया है.
उद्धव ठाकरे पहले संपादकीय में बीजेपी को चैलेंज करते रहे, इस बार इंटरव्यू देकर किया है.
उद्धव ठाकरे गठबंधन के तीन दलों को रिक्शे के तीन पहियों के तौर पर समझा रहे हैं. महाराष्ट्र में शिवसेना की अगुवाई में कांग्रेस और एनसीपी की सरकार है.
शिवसेना नेता ने कहा कि रिक्शा गरीबों का वाहन है. फिर प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी को आड़े हाथों लेते हुए बोले, 'बुलेट ट्रेन या रिक्शा में चुनाव करना पड़ा तो मैं रिक्शा ही चुनूंगा... मैं गरीबों के साथ खड़ा रहूंगा. मेरी यह भूमिका मैं बदलता नहीं... कोई ऐसी सोच न बनाये कि अब मैं मुख्यमंत्री बन गया हूं - मतलब बुलेट ट्रेन के पीछे खड़ा रहूंगा... नहीं, मैंने इतना ही कहा कि मैं मुख्यमंत्री होने के नाते सर्वांगीण विकास करूंगा.'
ये पूछे जाने पर कि क्या वो चैलेंज कर रहे हैं, उद्धव ठाकरे का कहना रहा - 'नहीं... ये मेरा स्वभाव है,' फिर बोले, 'कुछ लोगों को बनाने में आनंद मिलता है. कुछ लोगों को बिगाड़ने में आनंद मिलता है... बिगाड़ने में होगा तो बिगाड़ो... मुझे परवाह नहीं है - गिराओ सरकार.'
अजीत पवार की मदद से देवेंद्र फडणवीस के अचानक मुख्यमंत्री बन जाने से बीजेपी की जो फजीहत हुई उसी का नतीजा है कि वो अब कर्नाटक की तरह एक्टिव नहीं हो रही है. मध्य प्रदेश में भी हालात ऐसे बन गये कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी ज्वाइन करने के कारण कमलनाथ सरकार गिर गयी और शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बन गयी. राजस्थान में तो वसुंधरा राजे ने कोई दिलचस्पी दिखायी नहीं और बीजेपी नेतृत्व चुपचाप तमाशा देख रहा था. कम से कम सार्वजनिक तौर पर तो हाल यही था.
राजस्थान में चल रहे राजनीतिक बवाल के बीच महाराष्ट्र और झारखंड जैसे राज्यों के मुख्यमंत्रियों का चिंतित होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है, लेकिन ऐसे मुद्दे पर सामने आकर या कहें कि आगे बढ़कर रिएक्ट करना तो एक तरीके से ललकारने जैसा ही है. राजस्थान में अशोक गहलोत तो यही कर रहे हैं - और उद्धव ठाकरे भी उसी रास्ते पर नजर आ रहे हैं.
सरकार गिराने का आरोप लगा कर बीजेपी के खिलाफ गैर-बीजेपी दलों की ये कोई नयी रणनीति है क्या? अशोक गहलोत की पहल और उद्धव ठाकरे का बयान तो यही इशारा कर रहा है. वैसे उद्धव ठाकरे बीजेपी को सरकार गिराने के लिए चैलेंज क्यों कर रहे हैं?
उद्धव सरकार पर खतरा तो पहले दिन से ही है
उद्धव ठाकरे भले ही तीन पहियों वाली गरीबों की सरकार बतायें. भले ही उद्धव सरकार गरीबों को सस्ता भोजन उपलब्ध करा रही है. भले ही उद्धव ठाकरे किसानों के लिए तत्परता दिखा रहे हों, लेकिन हकीकत तो ये है ही कि गठबंधन की सरकार चलाना बहुत ही मुश्किल काम होता है.
कुछ दिन पहले रिपब्लिकन पार्टी वाले रामदास अठावले ने कहा जरूर था कि दो-तीन महीने में उद्धव सरकार गिर जाएगी. साथ ही ये दावा भी किया था कि एनडीए की सरकार बन जाएगी. बीजेपी के भी कोई न कोई नेता ऐसे दावे करते रहते हैं, लेकिन विपक्ष के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ऐसी बात नहीं करते.
सवाल है कि उद्धव ठाकरे रामदास अठावले जैसे नेताओं के बयान पर रिएक्ट कर रहे हैं या फिर कांग्रेस की किसी खास रणनीति के तहत ये बयान दे रहे हैं. धारा 370 और सीएए तो नहीं लेकिन कई मुद्दों पर उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस वाली ही लाइन ली है. हाल ही में सोनिया गांधी के बुलावे पर विपक्षी दलों की एक वर्चुअल मीटिंग में भी उद्धव ठाकरे शामिल हुए थे.
हाल ही में देवेंद्र फडणवीस ने अमित शाह से मुलाकात की थी - और जाहिर है ये मुलाकात ऐसी रही कि कयास लगाने तो शुरू हो ही जाएंगे, लेकिन फडणवीस ने फौरन ही ये सब खारिज भी कर दिया था.
देवेंद्र फडणवीस ने साफ साफ कह दिया था कि महाराष्ट्र में 'आपरेशन लोटस' नहीं हो रहा है - क्योंकि महा विकास आघाड़ी सरकार अपने ही अंतर्विरोधों के कारण गिर जाएगी.
देवेंद्र फडणवीस ने जोर देकर कहा कि बीजेपी की ऐसी कोई मंशा नहीं है कि सरकार को अस्थिर किया जाये क्योंकि ये वक्त कोरोना वायरस से संघर्ष का है.
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