उदित राज को रामदास अठावले से कुछ सीख लेनी चाहिए...
भले ही उदित राज दलित मुद्दों को लेकर राजनीति कर रहे हों मगर राजनीति की असली सीख उन्हें महाराष्ट्र से राज्यसभा सांसद रामदास अठावले ही दे सकते हैं. यदि उदित राज ने इस सीख को मान लिया तो उनका आने वाला राजनीतिक भविष्य अच्छा होगा.
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देश नई सरकार चुनने वाला है इसलिए चारों तरफ राजनीति और नेताओं का बोलबाला है. अपनी बगावत के चलते बीते कुछ से सुर्खियों में रहने वाले उदित राज पर चर्चाओं का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है. दिल्ली की उत्तर पश्चिम लोकसभा सीट से टिकट न मिलने से नाराज भाजपा सांसद उदित राज ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है. पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी की उपस्थिति में उदित राज ने कांग्रेस का हाथ थामा है. पार्टी ज्वाइन करने के बाद उदित राज ने पत्रकार वार्ता की और भाजपा पर तीखे हमले कर कई गंभीर आरोप लगाए.
बीजेपी से अंतिम समय तक टिकट की याचना करते रहे उदित राज के पास आखिर कांग्रेस के खेमे में जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था.
मीडिया से बात करते हुए उदित राज ने कहा कि वो वो 2014 में ही कांग्रेस ज्वाइन करना चाहते थे. इसके अलावा उदित राज ने ये भी कहा कि, मैं उन लोगों में से नहीं हूं जो झूठ बोलूं. अगर बीजेपी टिकट वहां से देती तो मैं वहां से लड़ता. लेकिन इसकी वजह से एक बहुत बड़ी चीज निकलकर देश में आई कि बीजेपी कितना दलित विरोधी है. पत्रकार वार्ता के दौरान जहां एक तरफ उदित राज ने भाजपा की न्याय प्रणाली को जमकर घेरा तो वहीं उन्होंने पार्टी के इंटरनल सर्वे को भी आड़े हाथों लिया.
आज मैं कांग्रेस @INCIndia में शामिल हुआ , श्री @RahulGandhi जी का धन्यवाद। pic.twitter.com/j117b1cq9m
— Dr. Udit Raj, MP (@Dr_Uditraj) April 24, 2019
उन्होंने कहा कि बीजेपी में एक प्रचार है कि यहां सबको न्याय मिलता है. कार्यकर्ताओं पर उस हथियार से बड़ा धौंस जमाते हैं कि इंटरनल सर्वे जो कहेगा वो होगा. इस इंटरनल सर्वे के लिए इन्होंने 4 -5 एजेंसियां हायर की हैं उसमें भी दिल्ली में मोस्ट पॉपुलर और विनिंग दिल्ली वही निकला कर आई जिसपर वो चुनाव लड़ना चाहते थे.
भले ही उदित राज भाजपा के खेमे से कांग्रेस के पाले में आ गए हों. लेकिन प्रेस कांफ्रेंस के दौरान जो दर्द उनकी आंखों में था, वो ये साफ बता रहा था कि, उनके दिल में हमेशा ही ये मलाल रहेगा कि काबिलियत के बावजूद भाजपा ने आखिर किस आधार पर दिल्ली की उत्तर पश्चिम लोकसभा सीट से उनका टिकट काटा और उसे हंसराज हंस को देकर उनके साथ छल किया.
प्रेस कांफ्रेंस में भाजपा के प्रति सहानुभूति दिखाकर खुद उदित राज ने इस बात की तस्दीख कर दी कि वो एक मौका परस्त राजनेता हैं जिसकी राजनीति का उद्देश्य किसी भी बड़ी पार्टी से टिकट पाना और अपनी राजनीति को अंजाम देना है.
कह सकते हैं कि जिन दलितों की बात उदित राज ने अपनी राजनीति के शुरूआती दिनों में की, वो दलित उनके लिए ऐसे टूल साबित हुए जिनके नाम का सहारा तो इन्होंने लिया. मगर जब उनके लिए काम करने की बारी आई तो उन्होंने उन दलितों को अपने से अलग कर उन्हें वापस हाशिये पर डाल दिया.
खुद को दलितों का शुभचिंतक कहने वाले उदित राज को अभी राजनीति में बहुत कुछ सीखना है और यदि वो चाहे तो केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले को अपना राजनीतिक गुरु बना सकते हैं. अठावले में ऐसे तमाम गुण हैं जो यदि उदित राज ने सीख लिए तो वो न सिर्फ उन्हें राजनीतिक रूप से परिपक्व करेगा. बल्कि इससे उन्हें वो इज्जत भी हासिल हो जाएगी जो वो खो चुके हैं.
गौरतलब है कि वर्तमान में खुद को दलितों और पिछड़ों का मसीहा बताने वाल उदित राज ने नवम्बर 2003 में अपनी सरकारी नौकरी से इस्तीफ़ा दिया था. नौकरी से हटने के बाद इन्होंने इंडियन जस्टिस पार्टी नाम की एक पॉलिटिकल पार्टी स्थापित की. 2014 में मोदी लहर से प्रभावित होकर उदित राज भाजपा से जुड़ गए. चूंकि उदित राज की तमन्ना दलितों और पिछड़ों की आड़ में अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकना था इसलिए इन्होंने अपने मूल को दरकिनार कर अपनी पूरी पार्टी का विलय भाजपा में कर लिया.
ये तो बात हो गई उदित राज की अब आते हैं रामदास अठावले पर जिनका जिक्र हमें उपरोक्त पंक्तियों में किया. ऊपर हमने कहा था कि अगर उदित राज चाहे तो उन्हें अपना राजनीतिक गुरु बना सकते हैं. इस कथन की पुष्टि के लिए हमारे पास भरपूर तर्क हैं. भले ही रामदास अठावले अपने बडबोलेपन और बेतुकी कविताओं के लिए आए दिन सुर्खियां बटोरते हों. मगर जब इनकी राजनीति का अवलोकन किया जाए तो मिलता है कि ये एक समझदार नेता हैं जो अपना अच्छा और बुरा दोनों जानता है.
माना जाता है कि किसी मजबूरी में नहीं बल्कि अपनी शर्तों के साथ रामदासअठावले ने भाजपा से हाथ मिलाया है
1974 में दलित पैंथर आंदोलन से जुड़कर दलित राजनीति को अंजाम देने वाले रामदास अब भी रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष हैं. पार्टी ने भले ही 2011 में भाजपा से हाथ मिला लिया हो और एनडीए में शामिल हो गई हो लेकिन रामदास ने अपनी पार्टी का विलय भाजपा में नहीं किया. रामदास अठावले के इस निर्णय को देखकर कहा जा सकता है कि यदि कल भाजपा से बात नहीं बनी या कोई ऊंच नीच हो गई तो रामदास बड़ी ही आसानी के साथ दलित मुद्दों को लेकर खुद को पार्टी से अलग कर अपनी राजनीति की शुरुआत कर सकते हैं.
क्योंकि इनके पास आधार के रूप में इनकी पार्टी है ही. इसलिए इन्हें अपने मुद्दों को भुनाने में बिल्कुल भी परेशानी नहीं होगी और इन्हें उन लोगों का साथ मिलता रहेगा जो इनकी राजनीति का आधार हैं. वहीं रामदास अठावले के विपरीत उदित राज वो व्यक्ति हैं जिन्होंने अपनी राजनीति के लिए दलितों को मुद्दा तो बनाया लेकिन उनके लिए कुछ विशेष किया नहीं.
उदित राज लम्बे समय तक भाजपा में रहने के बाद सिर्फ टिकट के लिए पार्टी छोड़ चुके हैं. सोचने वाली बात ये है कि अगर कल इनकी कांग्रेस में नहीं जमी या फिर कोई ऊंच नीच हो गई तब ये क्या करेंगे. उदित राज पहले ही अपनी पूरी पार्टी का विलय भाजपा में कर चुके हैं इसलिए अब दलित समुदाय भी शायद ही इनपर भरोसा करे. ऐसी स्थिति में ये बात खुद ब खुद साफ हो जाती है कि एक गलत फैसले और टिकट के मोह ने उदित राज की राजनीति पर सवालिया निशान लगा दिए हैं.
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