इसे उमा की पदयात्रा नहीं, वोट यात्रा कहिए!
उमा भारती बीजेपी के अहम पदों पर रहते हुए लोध वोटों का आइकन बनीं. लेकिन फिर वह मध्यप्रदेश चली गईं और लोध वोट पार्टी से कट गए. अब यूपी चुनावों से पहले उन्हें वापस जोड़ने की कवायद की जा रही है.
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गंगा सफाई की राह में असली बाधा कहां है? गंगा किनारे वालों को कैसे जगाया जा सकता है? उपाय कैसे कारगर हों? इन तमाम सवालों के जवाब तलाशने केंद्रीय जल संसाधन और गंगा पुनर्जीवन मंत्री उमा भारती गंगा किनारे दो साल तक पदयात्रा करेंगी. अक्तूबर 2016 से अक्तूबर 2018 तक ये पदयात्रा सप्ताह में दो या तीन दिन होगी. यूपी चुनाव के साथ-साथ 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव की गंगा भी साफ हो जाय बीजेपी के जहाज चल जाएं इसका पूरा इंतजाम है.
यानी इस पदयात्रा का एक पहलू जो बताया जा रहा है, वो है गंगा सफाई के लिए बनाये जाने वाले कानून के मसौदे पर जनभावना का आकलन करना. लेकिन इस यात्रा का एक और पहलू है. राजनीतिक पहलू. यूपी चुनाव का पहलू. लोध वोटों का पहलू. कल्याण सिंह के बाद राजनीतिक विरासत का पहलू.
क्योंकि गंगा पुनरुद्धार के लिए जिस कानून की बात की जा रही है वो जाहिर है पदयात्रा पूरी होने के बाद ही ड्राफ्ट होगा. यानी 2018 के आखिरी चरण में और 2019 के मई में लोकसभा चुनाव होंगे. समझ रहे हैं ना आप!
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यूपी के चुनाव में लोध वोट शुरू से असर डालते रहे हैं. इसका अहसास और अनुभव बीजेपी को सबसे ज्यादा है. कल्याण सिंह की ताजपोशी भी इसी फार्मूले के तहत हुई थी. कल्याण सिंह किसी जमाने में लोधों के सर्वमान्य नेता रहे. जब तक कल्याण बीजेपी में थे तब तक लोध वोट एकजुट बीजेपी के पाले में आते थे और लोध उम्मीदवार जीतते थे. समय बदला और कल्याण सिंह और बीजेपी के रिश्ते भी बदले. कल्याण हटे और लोध वोट बीजेपी से कट गए.
गंगा सफाई के लिए बोट यात्रा करेंगी उमा भारती |
इसके बाद समय आया साध्वी उमा भारती का. सुश्री भारती बीजेपी के अहम पदों पर रहते हुए लोध वोटों का आइकन भी बन गईं. उनकी अगुआई में लोध बीजेपी के वोटर बन गये. लेकिन भारती भी मध्यप्रदेश चली गईं और लोध वोट डगमगाने लगे.
बुंदेलखंड के झांसी से जीतने के बाद पार्टी को एकबार फिर यूपी चुनाव में लोध वोटों की चिंता सताने लगी है. पार्टी सूत्रों की मानें तो सुश्री भारती की दो साल चलने वाली पदयात्रा का पहला निशाना तो लोध वोटों पर है. क्योंकि कल्याण सिंह के अलग होने और साध्वी उमा भारती के मध्यप्रदेश और केंद्र की राजनीति में रहने से लोध वोट थोड़े छिटकने लगे हैं. लिहाजा एक बार फिर उमा भारती पदयात्रा के बहाने अपने इलाके में ज्यादा वक्त दे पाएंगी.
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यात्रा का पहला चरण उत्तराखंड तो एक दो महीने में निपट जाएगा. इधर विधान सभा चुनाव नजदीक आएंगे और उधर उमा भारती भी उत्तराखंड से यूपी में दाखिल हो जाएंगी. फिर गंगा यात्रा और चुनाव यात्रा की दो धाराएं अलग कैसे रह सकती हैं. संगम तो होगा ही.
और संजोग से गंगा पदयात्रा में लोध बहुल इलाके भी कवर हो रहे हैं. कानपुर, फर्रुखाबाद, बुलंदशहर और पूर्वांचल का बड़ा हिस्सा. वैसे भी उत्तर प्रदेश में पिछड़ा वर्ग की जातियों के वोट 42 से 45 फीसदी तक हैं. उसमें भी पूर्वांचल और गंगा के आसपास के इलाकों में लोध कुर्मी और कोइरी वोटों की हिस्सेदारी दस से 15 फीसदी तक है. जाहिर है कोइरी वोट बैंक को बीजेपी के यूपी प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य संभालेंगे तो लोध वोटों का जिम्मा उमा भारती के पास होगा. बौद्ध दलितों पर रामदास आठवले जैसे नेता फोकस करेंगे.
कुल मिलाकर गंगा तो अपनी स्पीड से साफ होगी. चुनावी स्थिति तो समय रहते ही साफ करनी होगी.
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