उफ ये सियासत... कहीं शराब बंद तो कहीं कबाब !
देखा जाये तो शराब और कबाब के दूसरे के पूरक हैं या कहें तो दोनों का चोली दामन का साथ है. ऐसे में यह उतर प्रदेश और बिहार के शराब प्रेमियों का लगभग एक ही हाल है.
-
Total Shares
तुम मुझे शराब दो मैं तुम्हे कबाब दूंगा. बिहार में ये चुटकुला काफी चल रहा है. उत्तर प्रदेश में बूचड़खानों पर गाज गिर रही है तो बिहार में शराबबंदी के अब एक साल पूरे होने जा रहे है. शराब के बिना बिहार में कबाब वाले बेकार हैं तो उत्तर प्रदेश में कबाब के बिना शराब का नशा नहीं चढ़ रहा है.
ऐसे देखा जाये तो शराब और कबाब के दूसरे के पूरक हैं या कहें तो दोनों का चोली दामन का साथ है. ऐसे में यह उतर प्रदेश और बिहार के शराब प्रेमियों का लगभग एक ही हाल है. लेकिन एक बात तो ध्यान देने वाली है कि उत्तर प्रदेश में खुलेआम शराब बिकती है और बिहार में खुले आम खुले में मांस बेचा जाता है. शराब अगर स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है तो खुले में मांस बेचना भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, लेकिन ये बात और है कि जाति और धर्म की राजनीती करने वालो को समझ में नहीं आएगा.
अगर बिहार में बूचड़खानों पर कार्रवाई होगी तो मुस्लिम वोट बैंक पर असर पड़ेगा और जो यहाँ की महागठंबधन सरकार कभी नहीं करेगा. हालांकि, बीजेपी की तरफ से उतर प्रदेश की तरह बिहार में भी अवैध बूचड़खानों पर प्रतिबन्ध लगाने की मांग की है बीजेपी ने अपनी मांगों को लेकर विधानसभा का बहिष्कार भी किया. बीजेपी का कहना है कि बिहार में अवैध बूचड़खानों की भरमार है. उनका कहना है कि मांस की खरीद बिक्री पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है. पशुओं की तस्करी हो रही है. गायों को तस्करी कर बिहार के रास्ते बांग्लादेश ले जाया जाता है. लेकिन इस पर रोक लगाने की कोशिश प्रशासनिक स्तर पर नहीं होती.
बिहार के पशुपालन मंत्री अवधेश कुमार सिंह कहते हैं कि बीजेपी बूचड़खाने के नाम पर राजनीति कर रही है. उन्होंने कहा कि राज्य में अवैध बूचड़खाने पर डीएम की अनुशंसा पर कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया है बीजेपी बूचड़खाने के नाम पर बिहार की जनता को गुमराह कर रही है और असहिष्णुता का वातावरण बना रही है. मंत्री ने बताया कि राज्य सरकार ने 2012 में ही राज्य और जिला स्तर पर कमिटी बनाई थी जिसका काम बूचड़ खानों की जाँच करना है. मंत्री ने कहा कि केंद्र की 1955 की गाइडलाइन में कहा गया है कि गाय, भैंस, बैल जिनकी उम्र 15 वर्ष पूरी हो जाती है उनका सुरक्षित स्थानों पर वध किया जाये. लेकिन बिहार में ये नियम कहीं दिखाई नहीं देते.
जानवरों का वध तो होता है लेकिन वो सुरक्षित स्थान हो ये जरुरी नहीं. बिहार में कितने बूचड़खाने है उन में से कितने अवैध हैं इसकी कोई जानकारी राज्य सरकार के पास नहीं है. राज्य सरकार ने जो बूचड़खानों की जाँच के लिए कमेटी बनाई क्या उसने कभी कोई अनुशंसा की, किसी बूचड़खाने पर कार्रवाई के लिए कहा? ये तमाम सवाल हैं जिससे पता चलता है कि राज्य सरकार स्वास्थ्य से जुड़े मामले में कितना गंभीर है.
उतर प्रदेश में केवल बूचड़खानों से समाज दूषित हो रहा है. क्या प्रदेश का परिवार, समाज शराब से परेशान नहीं है फिर शराब पर प्रतिबन्ध क्यों नहीं.
ये बात सही है कि देश में हर चीज राजनीति से जुड़ी हुई है. चाहें वो शराब पर प्रतिबन्ध का मामला है या फिर अवैध बूचड़खानों पर कार्रवाई. नीतीश कुमार शराब पर रोक लगाने का वायदा चुनाव से पहले किया था और सरकार में आते ही उसे पूरा किया. यही बात बीजेपी पर भी लागू होती है कि अवैध बूचड़खानों पर प्रतिबन्ध लगाने का उनका चुनावी वादा है जिसे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पूरा कर रहे हैं. नीतीश कुमार को इसमें आधी आबादी का वोट बैंक नज़र आता है तो योगी आदित्यनाथ की नज़र हिन्दू वोट बैंक को और मजबूत करने के लिए है.
ये भी पढ़ें-
आपकी राय