विपक्ष को बैलेट पेपर वाले चुनाव की नहीं बल्कि आत्ममंथन की जरुरत है
आमतौर पर निकाय चुनाव में पार्टी अपने चिन्ह तक जारी नहीं करती थी. क्योंकि निकाय चुनाव हमेशा से ही स्थानीय मुद्दों पर लड़े जाते और व्यक्तिगत पहचान पर जीत लिए जाते थे. लेकिन इस बार सभी पार्टियों ने चुनाव अपने चिन्ह पर लड़ा.
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उत्तर प्रदेश में सिर्फ 16 नगर निगमों में मेयर और पार्षद का चुनाव ईवीएम के जरिए हुआ. बाकी पूरे प्रदेश में बैलेट पेपर से चुनाव हुआ. नगर निगम में बीजेपी ने जबरदस्त जीत हासिल की, तो वहीं ग्रामीण इलाकों में BJP अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई. यही वजह है कि अब एक बार फिर से विपक्ष ईवीएम पर सवाल खड़े कर रहा है. लेकिन हमारी यह रिपोर्ट आपको एक दूसरे पहलू से अवगत कराएगी.
आमतौर पर निकाय चुनाव में पार्टी अपने चिन्ह तक जारी नहीं करती थी. क्योंकि निकाय चुनाव हमेशा से ही स्थानीय मुद्दों पर लड़े जाते थे और व्यक्तिगत पहचान पर जीत लिए जाते थे. इसके बाद जीते हुए कैंडिडेट सत्ता पक्ष में शामिल हो जाते थे. लेकिन इस बार सभी पार्टियों ने चुनाव अपने चिन्ह पर लड़ा. पर इस बार भी जीत निर्दलियों की ही हुई.
समाजवादी पार्टी के मुखिया और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने चुनावी नतीजों के बाद अपनी चुप्पी तोड़ते हुए ट्वीट किया. अपने ट्वीट में उन्होंने ईवीएम पर निशाना साधा
BJP has only won 15% seats in Ballot paper areas and 46% in EVM areas.
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) December 2, 2017
अपने घर में पिटी समाजवादी पार्टी
कन्नौज समाजवादी पार्टी का गढ़ माना जाता है. डिंपल यादव से पहले वहां से अखिलेश यादव सांसद थे. अखिलेश यादव ने एक बार भी नहीं सोचा कि जिस जिले से वह आते हैं और जहां से उनकी पत्नी सांसद हैं, वहां की आठ सीटों में समाजवादी पार्टी खाता भी नहीं खोल पाई. इस जिले में दो नगरपालिका की सीटें हैं और छह नगर पंचायत की सीट. लेकिन समाजवादी पार्टी के खाते में एक भी सीट नहीं गई. भाजपा और बसपा ने दो दो सीटें जरूरी जीती लेकिन बाकी चार निर्दलीय के खाते में गई.
वहीं मुलायम सिंह के पैतृक जिले इटावा में 6 नगर पालिका और नगर परिषद की सीटों में समाजवादी पार्टी केवल दो सीटें ही अपने नाम कर पाई. हालांकि बाकी चार निर्दलीय के खाते में गई. सपा का प्रदर्शन बैलेट पेपर पर भी कुछ खास अच्छा नहीं रहा. फिरोजाबाद आजमगढ़ जैसे इलाकों में भी सपा का प्रदर्शन बुरा रहा.
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समाजवादी पार्टी का प्रदर्शन वोट प्रतिशत में :
नगर पालिका महापौर - 00% (ईवीएम)
नगर निगम पार्षद - 15.54% (ईवीएम)
नगर परिषद अध्यक्ष - 22.73% (बैलेट)
नगर परिषद सदस्य - 9.07% (बैलेट)
नगर पंचायत अध्यक्ष - 18.95% (बैलेट)
नगर पंचायत सदस्य - 8.34% (बैलेट)
शहर में बढ़ी बसपा, लेकिन ग्रामीण इलाकों में ढेर
बहुजन समाजवादी पार्टी की ग्रामीण इलाकों में भी जबरदस्त पकड़ मानी जाती थी. लेकिन विधानसभा चुनाव में बुरी हार झेल चुकी बसपा के लिए यह प्रदर्शन राहत देने वाला कहा जा सकता है. हालांकि बैलट पेपर की मांग कर रही बसपा को अपने बैलेट पेपर वाले रिजल्ट देखकर आत्ममंथन करना चाहिए.
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बसपा को मिला वोट प्रतिशत में :
नगर पालिका महापौर - 12.5% (ईवीएम)
नगर निगम पार्षद - 11.31% (ईवीएम)
नगर परिषद अध्यक्ष - 14.65% (बैलेट)
नगर परिषद सदस्य - 4.98% (बैलेट)
नगर पंचायत अध्यक्ष - 10.27% (बैलेट)
नगर पंचायत सदस्य - 4.01% (बैलेट)
ऐसा लगता है जैसे कांग्रेस ने तो हाथ ही खड़े कर दिए हैं. शहर हो या ग्रामीण क्षेत्र, कांग्रेस अपना पुराना वोट बैंक बचा पाने की स्थिति में नहीं है.
कांग्रेस को मिला वोट प्रतिशत :
राहुल बाबा अब नहीं जागे तो कहीं देर न हो जाए
नगर पालिका महापौर - 00% (ईवीएम)
नगर निगम पार्षद - 8.46% (ईवीएम)
नगर परिषद अध्यक्ष - 4.55% (बैलेट)
नगर परिषद सदस्य - 3.00% (बैलेट)
नगर पंचायत अध्यक्ष - 3.88% (बैलेट)
नगर पंचायत सदस्य - 2.32% (बैलेट)
कांग्रेस अमेठी में अपना खाता भी नहीं खोल पाई दो नगर पालिका और दो नगर पंचायत में सभी पर कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा.
हालांकि भाजपा ने शहरी इलाकों में जबरदस्त जीत हासिल की. लेकिन ग्रामीण इलाकों में भाजपा इतनी मजबूत नहीं दिखी. लेकिन अगर बीते चुनावों से तुलना करें तो बीजेपी अच्छा चुनाव लड़ी.
BJP का वोट प्रतिशत :
बीजेपी ने एक बार फिर अपना दम दिखा ही दिया
नगर पालिका महापौर - 87.5% (ईवीएम)
नगर निगम पार्षद - 45.85% (ईवीएम)
नगर परिषद अध्यक्ष - 35.35% (बैलेट)
नगर परिषद सदस्य - 17.53% (बैलेट)
नगर पंचायत अध्यक्ष - 22.83% (बैलेट)
नगर पंचायत सदस्य - 12.22% (बैलेट)
ऐसा नहीं है कि हार केवल विपक्ष के नेताओं को ही मिली है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर के जिस बूथ पर वोट डाला था वहां बीजेपी बुरी तरह हारी है. डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या के गृह जिले में BJP की बुरी हार हुई है. लेकिन इसके बावजूद बीजेपी ने अपने पुराने रिकॉर्ड के मुकाबले बढ़िया बढ़त हासिल की. ऐसे में अब विपक्ष को बैलेट पेपर के बदले आत्ममंथन की जरूरत ज्यादा नजर आती है.
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