UP Election 2022: पहले चरण के मतदान में इन 7 सीटों पर होगी सबकी नजर
यूपी चुनाव 2022 (UP Election 2022) के पहले चरण के मतदान में किसान आंदोलन की तपिश से भाजपा (BJP) झुलसेगी या सपा-आरएलडी (SP-RLD Alliance) गठबंधन को ध्रुवीकरण की राजनीति से झटका लगेगा या कांग्रेस और बसपा कुछ कमाल करेंगी? ऐसे कई सवालों के बीच पहले चरण के मतदान में इन 7 सीटों (Hot Seats of Western UP) पर सबकी नजर रहेगी.
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लोग जितनी बेसब्री से भारत-पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच का इंतजार करते हैं. ठीक वैसा ही इंतजार यूपी चुनाव 2022 को लेकर भी किया जा रहा था. पहले चरण के लिए होने वाले मतदान से पहले चुनाव प्रचार में जितनी आग उगली गई है, उसने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाड़े के बीच भी सियासी पारा चढ़ा दिया है. यूपी चुनाव 2022 के पहले चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 11 जिलों की 58 सीटों पर मतदान होना है. माना जा रहा है कि इन सीटों पर मतदाताओं का रुझान ही आने 10 मार्च के नतीजे तय करेगा. इन सीटों पर कहने को तो 615 उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं. लेकिन, मुख्य मुकाबला भाजपा और समाजवादी पार्टी-आरएलडी गठबंधन के बीच ही माना जा रहा है. हालांकि, कुछ सीटों पर होने वाली सियासी जंग में कांग्रेस और बसपा के चेहरे भी चर्चा में हैं. वैसे, 2017 के चुनावी नतीजों की बात की जाए, तो इन 58 सीटों में से 53 पर भाजपा को जीत हासिल हुई थी. लेकिन, किसान आंदोलन और सपा-आरएलडी गठबंधन की वजह से हालात बदलने की संभावनाएं जताई जा रही हैं. जाटलैंड कहलाने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इस बार सपा-आरएलडी गठबंधन जाट-मुस्लिम एकता की इबारत लिखने की कोशिश कर रहा है. हालांकि, सपा-आरएलडी गठबंधन के टिकट बंटवारे के बाद जाटों और मुस्लिमों के बीच ताल-मेल गड़बड़ाया दिख रहा है. खैर, इन तमाम सियासी समीकरणों के बीच आइए बात करते हैं उन 7 सीटों की जिन पर पहले चरण के मतदान में सबकी नजर होगी...
पश्चिमी यूपी के पहले चरण के चुनाव में भाजपा बनाम सपा-आरएलडी गठबंधन में किसे होगा फायदा, देखना दिलचस्प होगा.
कैराना सीट पर नाहिद हसन बनाम मृगांका सिंह
शामली जिले की कैराना विधानसभा सीट पर हिंदुओं के पलायन का मुद्दा हमेशा से हावी रहा है. 2012 में भाजपा के वरिष्ठ नेता हुकुम सिंह ने यहां से जीत दर्ज की थी. 2017 के चुनाव में हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को भाजपा ने यहां से प्रत्याशी बनाया था. लेकिन, वह समाजवादी पार्टी के विधायक नाहिद हसन से हार गई थीं. समाजवादी पार्टी और आरएलडी गठबंधन ने नाहिद हसन को फिर से कैराना सीट पर उम्मीदवार बनाया है. बता दें कि गैंगस्टर एक्ट में एक साल से फरार चल रहे नाहिद हसन को बीते महीने पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. भाजपा की ओर से कैराना से हिंदुओं के पलायन के आरोप भी नाहिद हसन पर लगाए जाते रहे हैं. वैसे, नाहिद हसन पर धोखाधड़ी और जबरन वसूली से संबंधित कई आपराधिक मामले दर्ज हैं. आपराधिक छवि के बावजूद नाहिद हसन को प्रत्याशी बनाने के लिए समाजवादी पार्टी की आलोचना हुई थी. भाजपा ने कैराना से एक बार फिर मृगांका सिंह पर भरोसा जताया है. बसपा से राजेंद्र सिंह उपाध्याय को, तो कांग्रेस ने यहां मुस्लिम कार्ड खेलते हुए अखलाक को उम्मीदवार बनाया है.
नोएडा सीट पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की प्रतिष्ठा दांव पर
गौतमबुद्धनगर जिले की नोएडा विधानसभा सीट भाजपा के लिए इस बार प्रतिष्ठा का विषय मानी जा रही है. भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने परिवार को बढ़ावा देने से इनकार करते हुए कईयों के टिकट काटे हैं. लेकिन, रक्षा मंत्री और यूपी के पूर्व सीएम राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह को नोएडा विधानसभा सीट से दोबारा टिकट दिया गया है. समाजवादी पार्टी ने यहां से सुनील चौधरी को उम्मीदवार बनाया है. 2017 के चुनाव में पंकज सिंह ने सुनील चौधरी को 1 लाख से ज्यादा वोटों से हराया था. हालांकि, इस सीट पर समाजवादी पार्टी के लिए एक बड़ा पेंच कांग्रेस की प्रत्याशी पंखुड़ी पाठक के रूप में फंसा है. दरअसल, पंखुड़ी पाठक पहले समाजवादी पार्टी की प्रवक्ता थीं. उन्होंने समाजवादी पार्टी पर जाति, धर्म, लिंग को लेकर अभद्र टिप्पणियों का आरोप लगाते हुए पार्टी से किनारा कर लिया था. पंकज सिंह, पंखुड़ी पाठक, सुनील चौधरी के चलते नोएडा एक हॉट सीट बनी हुई है. बसपा ने यहां कृपा राम शर्मा और आम आदमी पार्टी ने पंकज अवाना को टिकट दिया है.
आगरा ग्रामीण सीट पर पूर्व राज्यपाल लड़ रहीं चुनाव
दलितों का गढ़ कहे जाने वाले आगरा जिले की आगरा ग्रामीण सीट पर भाजपा ने उत्तराखंड की पूर्व राज्यपाल बेबी रानी मौर्य को चुनावी मैदान में उतारा है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दलित मतदाताओं को साधने के लिए भाजपा ने बेबी रानी मौर्य के सहारे एक बड़ा दांव खेला है. हालांकि, यह सीट जाट बहुल है. बेबी रानी मौर्य 1995 से 2000 तक आगरा की मेयर रही हैं. 2018 में बेबी रानी मौर्य को उत्तराखंड का राज्यपाल बनाया गया था. 2017 में आगरा ग्रामीण सीट से जीतीं भाजपा विधायक हेमलता दिवाकर का इलाके में भरपूर विरोध हो रहा था. आरएलडी ने यहां से महेश कुमार जाटव, बसपा ने किरणप्रभा केसरी और कांग्रेस ने उपेंद्र सिंह को मैदान में उतारा है. परिसीमन से पहले यह सीट दयालबाग के नाम से जानी जाती थी. माना जा रहा है कि इस सीट पर भाजपा बनाम बसपा की लड़ाई हो सकती है.
थाना भवन पर योगी सरकार के मंत्री साधेंगे गन्ना किसान
शामली जिले की ही थाना भवन विधानसभा सीट भी यूपी चुनाव 2022 में काफी चर्चा में है. दरअसल, थाना भवन विधानसभा सीट गन्ना उत्पादन के लिए जानी जाती है. भाजपा की ओर से लगातार दो बार जीतने वाले यूपी के मंत्री सुरेश कुमार राणा यहां से तीसरी बार चुनावी ताल ठोंक रहे हैं. योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार में गन्ना विकास और चीनी मिल मंत्री के रूप में सुरेश राणा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सबसे अहम मुद्दे गन्ना का बकाया पर रिकॉर्ड पेमेंट के सहारे किसानों को साधने का दांव चला है. इस सीट पर 2017 में आरएलडी के उम्मीदवार तीसरे स्थान पर रहे थे. जबकि, बसपा उम्मीदवार दूसरे नंबर पर थे. इस बार समाजवादी पार्टी और आरएलडी गठबंधन ने यहां से अशरफ अली को प्रत्याशी बनाया है. कांग्रेस ने सत्यम सैनी को टिकट दिया है, जबकि बसपा ने समाजवादी पार्टी के बागी जहीर मलिक उम्मीदवार बनाया है.
एशिया की सबसे बड़ी गुड़ मंडी मुजफ्फरनगर पर किसे मिलेगी मिठास
मुजफ्फरनगर में हुए जाट-मुस्लिम दंगों का असर अब तक महसूस किया जा सकता है. हालांकि, किसान आंदोलन के बाद इस सीट पर भाजपा के लिए मुश्किलें बढ़ी हैं. भाजपा ने चुनाव प्रचार के दौरान जमकर मुजफ्फरनगर दंगों की याद ताजा कराई है. योगी आदित्यनाथ ने दो जाट युवकों की हत्या को लेकर आरएलडी नेता जयंत चौधरी पर निशाना भी साधा था. मुजफ्फरनगर सदर सीट पर किसान आंदोलन का माहौल भुनाया जाएगा या भाजपा पर भरोसा जताया जाएगा, ये तय हो जाएगा. इस सीट पर भाजपा की ओर से योगी सरकार के मंत्री कपिल देव अग्रवाल प्रत्याशी हैं. 2017 में मुजफ्फरनगर विधानसभा सीट पर कपिल देव अग्रवाल ने समाजवादी पार्टी के गौरव स्वरूप बंसल को 10 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था. बसपा के राकेश शर्मा तीसरे स्थान पर रहे थे. मुजफ्फरनगर सदर सीट पर भाजपा ने फिर से कपिल देव अग्रवाल पर भरोसा जताया है. सपा-आरएलडी गठबंधन ने सौरभ, बसपा ने पुष्पाकर पाल और कांग्रेस ने सुबोध शर्मा को प्रत्याशी बनाया है. एशिया की सबसे बड़ी गुड़ मंडी से मिठास किसके खाते में आएगी, ये देखना दिलचस्प होगा.
मथुरा में योगी सरकार के मंत्री श्रीकांत शर्मा की राह कितनी आसान
भगवान कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा बीते दिनों यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के एक ट्वीट से खूब चर्चा में रही थी. 'मथुरा की तैयारी है' वाले इस ट्वीट ने कई कयासों को जन्म दे दिया था. माना जा रहा था कि भाजपा के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के एजेंडे में अयोध्या और काशी के बाद अब मथुरा का नंबर आ सकता है. लेकिन, केशव प्रसाद मौर्य ने ही इस पर स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा था कि भाजपा तीर्थक्षेत्र के रूप में ही मथुरा का विकास करेगी. मथुरा सीट से योगी सरकार के मंत्री श्रीकांत शर्मा विधायक हैं और दोबारा भाजपा प्रत्याशी बनाए गए हैं. 2017 से पहले 15 सालों तक इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा है. माना जा रहा है कि इस बार भी चुनावी लड़ाई कांग्रेस और भाजपा के बीच ही हो सकती है. कांग्रेस ने मथुरा से प्रदीप माथुर, बसपा ने जगजीत चौधरी और सपा-आरएलडी गठबंधन ने सदाबाद के पूर्व विधायक देवेंद्र अग्रवाल को अपना उम्मीदवार बनाया है. 2017 के चुनाव में श्रीकांत शर्मा ने प्रदीप माथुर को 1 लाख से ज्यादा वोटों से मात दी थी. तीसरे स्थान पर रहे बसपा प्रत्याशी रहे थे. इस सीट पर किसान आंदोलन का असर होगा या कांग्रेस कोई उलटफेर करेगी. इन तमाम हालातों के मद्देनजर मथुरा हॉट सीट में शुमार है.
सरधना में भाजपा और सपा-आरएलडी गठबंधन की जंग
2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद से ही सरधना सीट ने खूब सुर्खियां बटोरी थीं. भाजपा के फायर ब्रैंड नेता संगीत सोम सरधना से दो बार चुनावी फतह हासिल कर चुके हैं. किसान आंदोलन के बाद इस सीट से संगीत सोम हैट्रिक लगा पाएंगे या नहीं, ये बड़ा अहम सवाल बन चुका है? समाजवादी पार्टी और आरएलडी गठबंधन ने अतुल प्रधान को टिकट दिया है. अतुल प्रधान पर उनकी उम्र के हिसाब से 38 केस दर्ज हैं. इनमें से कई गंभीर आपराधिक मामले हैं. वहीं, भाजपा के प्रत्याशी संगीत सोम मुजफ्फरनगर दंगों के आरोपी हैं. बसपा ने यहां से संजीव धामा और कांग्रेस ने पुराने कांग्रेसी रहे सैयद जकीउद्दीन के बेटे रेहान उद्दीन को टिकट दिया है. ध्रुवीकरण की राजनीति के इर्द-गिर्द घूमती सरधना विधानसभा सीट पर किसान आंदोलन के चलते इस बार संगीत सोम को कई जगह विरोध का सामना करना पड़ा है. हालांकि, समाजवादी पार्टी को इस सीट पर कभी जीत नसीब नही हुई है. भाजपा के बड़े जाट नेता कहे जाने वाले संजीव कुमार बालियान मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से सांसद हैं. इस बार के चुनाव से हाजी याकूब कुरैशी के परिवार ने दूरी बना रखी है. 2012 और 2017 में इस परिवार के कारण यहां मुस्लिम वोटों में बिखराव हुआ था. हाजी याकूब कुरैशी सपा सरकार में मंत्री रह चुके हैं.
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