SP-RLD के समर्थन से यू-टर्न लेकर टिकैतों ने बीजेपी की मदद तो नहीं कर दी?
भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष नरेश टिकैत (Naresh Tikait) के सपा-आरएलडी गठबंधन (SP-RLD Alliance) को समर्थन देने और फिर यू-टर्न लेने से टिकैत बंधुओं (Rakesh Tikait) के गैर-राजनीतिक होने के दावे पर प्रश्न चिन्ह लग गया है. इतना ही नहीं, इस वजह से उन पर संयुक्त किसान मोर्चा की कार्रवाई की तलवार भी लटक रही है.
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यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के लिए तारीखों के ऐलान के साथ ही राजनीतिक दांव-पेंच खेले जाने लगे हैं. क्योंकि, यूपी चुनाव 2022 के पहले दो चरणों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सीटों पर चुनाव होना है. तो, सबकी नजरें टिकैत बंधुओं (नरेश टिकैत और राकेश टिकैत) पर टिकी हुई हैं. दरअसल, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी-आरएलडी गठबंधन से इतर किसान आंदोलन के जरिये भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने भाजपा के खिलाफ माहौल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. इस बीच भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष नरेश टिकैत ने यूपी चुनाव में समाजवादी पार्टी और आरएलडी गठबंधन को समर्थन देने का ऐलान कर दिया. हालांकि, नरेश टिकैत ने बयान पर विवाद होते ही अपनी बात से यू टर्न ले लिया. और, उन्होंने कहा कि 'हम कुछ ज्यादा बोल गए. संयुक्त किसान मोर्चा ही सर्वोपरि है.' लेकिन, इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि कहीं SP-RLD के समर्थन से यू-टर्न लेकर टिकैतों ने बीजेपी की मदद तो नहीं कर दी?
टिकैत बंधुओं के गैर-राजनीतिक होने के दावे पर प्रश्न चिन्ह लग गया है.
क्या टिकैत भाई गैर-राजनीतिक हैं?
दिल्ली की सीमा पर एक साल से भी ज्यादा चले किसान आंदोलन के गैर-राजनीतिक होने पर पहले से ही सवाल खड़े होने लगे थे. यही वजह रही थी कि किसी समय में किसान आंदोलन के मंच पर नजर आने वाले कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बसपा समेत तमाम सियासी दलों के चेहरों से संयुक्त किसान मोर्चा ने धीरे से किनारा कर लिया. हालांकि, मुजफ्फरनगर में हुई किसान रैली हो या पश्चिम बंगाल में जाकर टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी के लिए माहौल बनाना, संयुक्त किसान मोर्चा ने भाजपा के खिलाफ प्रचार करने का हर संभव परोक्ष तरीका अपनाया था. किसान आंदोलन में शामिल कुछ किसान संगठनों को लेकर कहा जाता रहा कि ये सभी किसानों की आड़ में अपने राजनीतिक हित साध रहे हैं. और, भारतीय किसान यूनियन के राकेश टिकैत इस मामले में सबसे आगे नजर आए हैं.
वैसे, नरेश टिकैत ने सपा-आरएलडी का समर्थन कर अपने बयान से जरूर यू-टर्न ले लिया है. लेकिन, राकेश टिकैत अभी भी खुद को गैर-राजनीतिक बताते हुए कह रहे हैं कि 'हम किसी का समर्थन नहीं कर रहे हैं. सीएम योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर से चुनाव जीतना चाहिए. क्योंकि, हमें उत्तर प्रदेश में एक मजबूत विपक्ष की जरूरत है.' किसी से छिपा नही है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन का चेहरा बन चुके भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत न्यूज चैनलों पर पुरजोर तरीके से भाजपा का विरोध करते नजर आते हैं. भारतीय किसान यूनियन भले ही खुद को गैर-राजनीतिक संगठन बताता हो. लेकिन, नरेश टिकैत और राकेश टिकैत ने पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पंचायत कर सपा-आरएलडी गठबंधन के पक्ष में किसानों को एकजुट करने में अपनी जान लड़ा दी थी. और, कुछ दिनों पहले राकेश टिकैत आरएलडी अध्यक्ष जयंत चौधरी के साथ भी देखे गए थे.
Noida, Uttar Pradesh | We're not supporting anyone. Yogi ji (CM Yogi Adityanath) must win election from (Gorakhpur) as we need strong opposition in the State: Rakesh Tikait, leader, Bharatiya Kisan Union pic.twitter.com/8pCdKku8ig
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) January 17, 2022
टिकैत ने SP-RLD का समर्थन करने का रिस्क क्यों लिया?
यूपी चुनाव 2022 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश इस बार एक अलग तरह की राजनीति की प्रयोगशाला बन गया है. किसान आंदोलन और सपा-आरएलडी का गठबंधन यहां भाजपा के सामने कड़ी चुनौती पेश कर रहा है. लेकिन, इन तमाम दुश्वारियों के बावजूद भाजपा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनी जीत को लेकर आश्वस्त नजर आ रही है. इसके पीछे सबसे बड़ा कारण ये है कि किसान आंदोलन की वजह से भले ही भाजपा के खिलाफ माहौल बना हो. लेकिन, कृषि कानूनों की वापसी और संयुक्त किसान मोर्चा की अन्य मांगों को लेकर कमेटी बनाने के ऐलान के बाद से भारतीय किसान यूनियन के पास भाजपा के खिलाफ कोई बड़ा मुद्दा नहीं रह गया है. भारतीय किसान यूनियन के टिकैत बंधुओं के सामने एक समस्या ये भी है कि किसान आंदोलन में शामिल मुस्लिम किसानों के वोट तो सपा-आरएलडी गठबंधन में जाने की संभावना तो दिख रही है. क्योंकि, ऐसा माना जाता है कि मुस्लिम वोट भाजपा को हराने वाली पार्टी के साथ ही जाएगा. लेकिन, भाजपा को चुनौती देने के लिए यहां कांग्रेस, बसपा और एआईएमआईएम भी ताल ठोंक रहे हैं. जो इन मुस्लिम वोटों में हिस्सेदारी ले सकते हैं.
वहीं, जाट मतदाताओं की बात की जाए, तो 2013 में हुए जाट-मुस्लिम दंगों ने पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के राजनीतिक समीकरण को बदल दिया था. जिसकी वजह से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा का जादू 2014 से 2019 तक के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में चला था. किसान आंदोलन में साथ नजर आ रहे जाट और मुस्लिम किसानों में अभी भी मुजफ्फरनगर दंगों का घाव नजर आ ही जाता है. वैसे, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान भले ही भाजपा के खिलाफ माने जा रहे हों. लेकिन, इन किसानों में आने वाले जाट मतदाता खाप पंचायतों के हिसाब से चलते हैं. दर्जनों खापों से जुड़े जाट मतदाताओं पर केवल भारतीय किसान यूनियन के टिकैत बंधुओं का प्रभाव नही है. इन खापों से निकले भाजपा के नेताओं के वर्चस्व को भी कम नहीं आंका जा सकता है. केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता संजीव बालियान भी बालियान खाप से आते हैं. और, नरेश टिकैत के इस बयान के बाद वह भी उनसे मिलने पहुंचे थे.
वोटों के इस बिखराव को रोकने का टिकैत बंधुओं के पास एक ही तरीका था, जो उन्होंने अपना लिया है. लेकिन, नरेश टिकैत के सपा-आरएलडी गठबंधन को समर्थन करने के बयान और फिर उस पर यू-टर्न के बाद टिकैत बंधुओं के गैर-राजनीतिक होने के दावे पर प्रश्न चिन्ह लग गया है. वहीं, इस ऐलान और यू-टर्न के बाद अगर संयुक्त किसान मोर्चा ने टिकैत बंधुओं पर कार्रवाई नहीं की, जैसी पंजाब के किसान संगठनों पर की गई है. तो, इसकी वजह से अब पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों पर भी सवालिया निशान लग जाएंगे. आसान शब्दों में कहा जाए, तो सपा-आरएलडी गठबंधन के समर्थन से यू-टर्न लेकर टिकैतों ने भाजपा की ही मदद कर दी है. क्योंकि, केंद्र और राज्य में भाजपा सरकार के सामने खड़े किसान टिकैत बंधुओं के कारण खुद को किसी पार्टी का एजेंट या पिट्ठू कहलाना पसंद नहीं करेंगे.
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