खुद ही हुए कोतवाल तो फिर मुकदमा काहे का
सही और गलत का पैमाना अपना एवं अपने नेताओं का व्यक्तिगत हित है. अगर इससे आपका भला होता है या आपकी पार्टी का भला होता है, तो फैसला सही है. वहीं अगर इससे आपके विरोधी या विरोधी दल का भला होता है तो गलत है. इन फैसलों का कानून की भावना से कुछ भी लेना देना नहीं है.
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कहावत है 'जब सैयां भये कोतवाल तो डर काहे का'. पर यहां तो खुद ही कोतवाल हो गए, तो फिर मुकदमा काहे का. कुछ यही ख्याल आया जब आज के अख़बार में यह खबर पढ़ने को मिला की "योगी सरकार ने जारी किया ऑर्डर- योगी आदित्य नाथ के खिलाफ नहीं चलेगा केस".
इस खबर के अनुसार उत्तर प्रदेश सरकार ने मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ और केंद्रीय मंत्री शिव प्रताप शुक्ला के खिलाफ एक केस को वापस लेने का फैसला लिया है. यह 1995 का केस है. तब इन दोनों के अलावा इनके 11 अन्य समर्थकों पर धारा-144 (निषेधाज्ञा) का उल्लंघन करने के आरोप में केस दर्ज किया गया था. इस मामले में लोकल कोर्ट ने आरोपियों के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया था. इसके बावजूद आरोपी कोर्ट में पेश नहीं हुए थे. एक सप्ताह पहले योगी आदित्यनाथ की सरकार ने गोरखपुर जिला मजिस्ट्रेट को एक पत्र लिख कर निर्देश दिया कि अदालत के सामने मामला वापस लेने के लिए एक आवेदन दायर किया जाए. सरकार के अनुसार मामले के तथ्यों की छानबीन के बाद सरकार ने इस मामले को वापस लेने का निर्णय लिया है.
ये इस तरह का दूसरा मामला है. योगी आदित्यनाथ पर साल 2007 में गोरखपुर में नफरत फैलाने वाला भाषण देने का आरोप था. अगस्त में योगी के सरकार ने मुख्यमंत्री पर मुकदमा चलाने की इजाजत देने से इनकार कर दिया था. सरकारी वकील ने इस कदम का बचाव करते हुए कहा था कि आरोपी राज्य का सीएम बन चुके हैं, इसलिए अब उस पर केस नहीं चलाया जा सकता.
खुद करें तो सही और दूसरा करे तो गलत!
सरकारी वकील के तर्क को खारिज करते हुए इलाहावाद हाई कोर्ट ने यूपी सरकार से पूछा कि जब सरकार ने मुख्यमंत्री के खिलाफ मुकदमा चलाने की इजाजत देने से इनकार कर दिया है, तो याचिककर्ता के पास और क्या विकल्प रह जाता है?
पिछले साल कुछ इसी तरह का वाकया उत्तर प्रदेश के पड़ोसी राज्य बिहार में हुआ था. नीतीश कुमार की सरकार ने आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव और उनके दोनों बेटों के खिलाफ दर्ज एक केस वापस लेने का फैसला लिया था. यह मामला 2015 का था. तब लालू की पार्टी की तरफ से बुलाए गए एक बंद के दौरान तोड़फोड़ करने और सरकारी अधिकारियों को रोकने के मामले में इनके खिलाफ केस दर्ज किया गया था. भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील मोदी तब के नीतीश कुमार सरकार पर इस कदम के खिलाफ जबर्दस्त हमला बोला था. उन्होंने पूछा था कि- 'क्या यह कदम पटना हाई कोर्ट की अवमानना नहीं है जो इस मामले की सुनवाई कर रहा है? इसके साथ ही मोदी ने नीतीश सरकार से यह भी पूछा, 'क्या राज्य सरकार इसी तरह के वैसे हजारों मामलों को वापस लेगी जो कर्मचारी संगठनों और आम लोगों के विरोध प्रदर्शन और सड़क जाम करने से जुड़े हुए हैं?'
मतलब की योगी आदित्यनाथ की पार्टी भारतीय जनता पार्टी के लिए पड़ोसी राज्य बिहार में जो किया जा रहा था वो गलत था. पर वही कदम उत्तर प्रदेश में सही है. सही और गलत का पैमाना अपना एवं अपने नेताओं का व्यक्तिगत हित है. अगर इससे आपका भला होता है या आपकी पार्टी का भला होता है, तो फैसला सही है. वहीं अगर इससे आपके विरोधी या विरोधी दल का भला होता है तो गलत है. इन फैसलों का कानून की भावना से कुछ भी लेना देना नहीं है.
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