आख़िर क्यों बरकरार रहा यूपी निकाय चुनावों में योगी का मैजिक?
2024 के लोकसभा चुनावों से पहले हरेक विधनासभा और नगर निगम चुनावों पर सारे देश की निगाहें रहने वाली हैं. सही भी है. इस परिप्रेक्ष्य में कर्नाटक विधानसभा और यूपी नगर निकाय चुनावों के नतीजों को देखना होगा.
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आगामी 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले हरेक विधनासभा और नगर निगम चुनावों पर सारे देश की निगाहें रहने वाली हैं. इस परिप्रेक्ष्य में कर्नाटक विधानसभा और यूपी नगर निकाय चुनावों के नतीजों को देखना होगा. कर्नाटक में बीजेपी को निराशा हाथ लगी लेकिन यूपी निकाय चुनाव परिणामों ने पार्टी को जश्न मनाने का पूरा मौका दिया है. अभी देश में सिर्फ़ और सिर्फ़ कर्नाटक चुनावों की ही चर्चा हो रही है. जबकि, यूपी नगर चुनाव में कर्नाटक में जितने मतदाताओं ने भाग लिया उससे कहीं ज़्यादा मतदाताओं ने यूपी के चुनावों में अपने मताधिकार का उपयोग किया. अतः मैं तो आज यू पी निकाय चुनावों की ही चर्चा करूंगा. भारतीय जनता पार्टी ने यू पी में अभूतपूर्व जीत हासिल करते हुए सभी 17 नगर निगमों में अपना परचम लहराया है. नगर निगमों के अतिरिक्त भी सभी अन्य निकायों में भाजपा का प्रदर्शन अत्यंत ही प्रभावशाली रहा है. सपा, कांग्रेस और बसपा का सूपड़ा साफ़ हो गया, ऐसा कहैं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. बेशक, इन चुनाव परिणामों से बीजेपी के कार्यकर्ताओं का तो हौंसला बढेगा ही, ताज्जुब नहीं की लोकसभा चुनाव प्रचार में योगी के 'यूपी मॉडल' की गूंज सुनाई दे.
यूपी में निकाय चुनाव में यदि भाजपा ने बढ़त बनाई तो वजह सीएम योगी ही हैं
सर्वाधिक लोकसभा सीटों वाले प्रदेश यूपी के निकाय चुनाव को लोकसभा चुनाव की तैयारियों के तौर पर देखा जा रहा था. चाहे सत्तारूढ़ बीजेपी और उसके सहयोगी दल हों, विपक्षी दल समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी या कांग्रेस हो. प्रत्येक राजनीतिक दल के लिए यह निकाय चुनाव चुनाव उतना ही मायने रखता था. सभी दल अपने-अपने हिसाब से जोर भी खूब लगा रहे थे.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए निकाय चुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं था. क्योंकि यह पहला चुनाव था, जो ‘अकेले’ योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बीजेपी लड़ रही थी. योगी के ऊपर पूरे चुनाव का दारोमदार था. ऐसे में जीत का श्रेय भी योगी आदित्यनाथ को ही मिलना लाजमी है. यूपी नगर चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने अभूतपूर्व जीत हासिल करते हुए सभी 17 नगर निगमों में अपना परचम लहराया है.
2017 के विधानसभा चुनावों से लेकर यूपी में हुए अब तक के हर चुनाव पर नजर डालें तो योगी की छवि कद्दावर नेता के तौर पर उभरती नजर आती है. 2017 में योगी आदित्यनाथ जब बीजेपी की प्रचंड जीत के बाद मुख्यमंत्री बनाए गए तो उनकी अगुवाई में बीजेपी ने पहला चुनाव, नगर निकाय का ही लड़ा था. उस चुनाव में बीजेपी ने कुल 14 नगर निगमों में जीत हासिल की थी, यही नहीं 70 नगर पालिका अध्यक्ष और नगर पंचायतों में 100 सीटों पर जीत के साथ बढ़िया प्रदर्शन किया था.
भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद इस परिणाम के बाद योगी आदित्यनाथ और उनकी टीम की प्रशंसा की थी लेकिन चुनावी पंडितों ने जीत की वजह ‘मोदी मैजिक’ को ही बताया था. इसके पांच साल बाद 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज करते हुए दोबारा यूपी की सत्ता हासिल की. इस प्रचंड जीत से योगी की बेहतर प्रशासक की छवि पुष्ट हुई. लेकिन राजनीतिक पंडित अभी भी इस सवाल से जूझ रहे थे कि क्या योगी अकेले पार्टी की चुनावी नैया पार लगा सकते हैं?
कर्नाटक विधानसभा और यूपी निकाय चुनाव एक साथ हुए. चुनाव के दौरान बीजेपी की पूरी केंद्रीय टीम ने कर्नाटक में ताकत झोंक रखी थी. योगी आदित्यनाथ निकाय चुनाव में अकेले ही मोर्चे पर डटे रहे. वह अपने मंत्रियों, विधायकों के साथ राज्य बीजेपी टीम की अगुवाई कर रहे थे. निकाय चुनाव की योगी के लिए क्या अहमियत थी इसका अंदाजा चुनावी रैलियों से लगाया जा सकता है.
योगी आदित्यनाथ ने महज 13 दिन में ‘संवाद का अर्धशतक’ लगाया, 50 रैलियां की. सपा मुखिया अखिलेश यादव से लेकर तमाम दूसरी पार्टियों की तुलना में योगी ने चुनाव प्रचार में कहीं ज्यादा पसीना बहाया. हर दिन वो अलग अलग जिलों के दौरे पर रहे. इतना ही नहीं निकाय चुनाव के बीच में 3 दिन कर्नाटक में भी चुनाव प्रचार किया. मुख्यमंत्री ने प्रत्येक चुनावी रैली में यूपी ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट की सफलता, यूपी में नए मेडिकल कॉलेज, हाईवे समेत इंफ्रास्ट्रक्चर एवं चौतरफा विकास पर खूब बोला.
लेकिन , सबसे ज्यादा जोर अपराधियों के खिलाफ एक्शन पर दिया. पूरे चुनाव में ‘माफियाओं को मिट्टी में मिला देंगे’ वाला बयान सर्वाधिक चर्चा में रहा. उमेश पाल हत्याकांड के बाद यूपी सरकार का बुलडोजर एक्शन से लेकर शूटर्स का एनकाउंटर हो या माफिया अतीक अहमद और उसके भाई की पुलिस कस्टडी में हत्या. बीजेपी हाल के इन घटनाक्रमों को इस तरह से पेश किया जैसे योगी सरकार में ही यह संभव था.
अतीक-अशरफ की हत्या के बाद प्रयागराज पहुंचे योगी आदित्यनाथ ने किसी का नाम लिए बिना कहा भी था कि यहां की धरती अत्याचार बर्दाश्त नहीं करती. प्रकृति न्याय जरूर करती है. जो जैसा करेगा, उसको वैसा ही फल मिलता है. जिन लोगों ने अन्याय किया था प्रकृति ने उनके साथ न्याय कर दिया. इसी निकाय चुनाव के दौरान पश्चिम उत्तर प्रदेश में यूपी एसटीएफ ने दुर्दांत गैंगस्टर अनिल दुजाना को एनकाउंटर में मार गिराया, जिसकी खूब चर्चा हुई.
अपनी रैलियों में योगी ने 'नो कर्फ्यू, नो दंगा, यूपी में सब चंगा.' और 'रंगदारी न फिरौती, अब यूपी नहीं है किसी की बपौती', जैसे लोकप्रिय नारे गढे.योगी आदित्यनाथ ने तो नगर निकाय चुनावों को देवासुर संग्राम तक कह डाला था. सहारनपुर में जनसभा को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा था कि यह चुनाव देवासुर संग्राम से कम नहीं है. चुनाव में दानव के रूप में भ्रष्टाचारी हैं, दुराचारी हैं और अपराधी प्रवृत्ति के लोग हैं.
जनता की मदद से निकाय चुनाव में ऐसी ताकतों को किनारे लगा देना है. सहारनपुर में बसपा उम्मीदवार इमरान मसूद चुनाव को हिंदू-मुसलमान में बांटने की कोशिश करते रहे. पर वे नाकाम रहे. वे हारे, बीजेपी जीती. योगी सरकार एक तरफ चौतरफा विकास पर ध्यान दे रही है तो वहीं दूसरी तरफ कानून व्यवस्था की बेहतरी पर प्राथमिकता से ध्यान दे रही है. दुर्दांत माफियाओं पर नकेल कसने के साथ सतत पुलिस सुधारों की प्रक्रिया भी शुरू की गई है.
इसके सकारात्मक परिणाम अब दिखने लगे है. कानून व्यवस्था की स्थिति सुधरने की वजह से निवेश बढा है. कभी बीमारू राज्यों में गिना जाने वाला यूपी आज न केवल घरेलू बल्कि विदेशी निवेशकों को भी आकर्षित कर रहा है. ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट 2023 में मुकेश अंबानी, कुमार मंगलम बिडला, टाटा समूह के एन चंद्रशेखर से लेकर ज्यूरिख एयरपोर्ट एशिया के सीईओ डेनियल बिचर समेत उद्योगजगत के दिग्गजों की उपस्थिति इसका प्रमाण था.
कुल 33 लाख करोड रुपये के निवेश समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए. बीजेपी को पता है कि यूपी बदलाव के दौर से गुजर रहा है. मैं मानता हूं कि जनता विकास और तरक्की चाहती है, न कि जातपात का जहर. माफियाओं से पूरा यूपी मुक्ति चाहता है. इसलिए कुछ राजनीतिक दल भले ही बुलडोजर कार्रवाई की निंदा करें लेकिन योगी अपने पथ पर अडिग चले जा रहे हैं.
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