जानिए इस बार क्यों अहम है जी20 सम्मलेन
जहाँ चीन का फोकस सिर्फ आर्थिक चुनौतियों पर होगा वही भारत-अमेरिका उठा सकते हैं आतंकवाद का मुद्दा. एक ओर दक्षिण चीन सागर होगा तो दूसरी तरफ भारत की एनएसजी ग्रुप में सदस्यता का मुद्दा.
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जी20 समिट 4 से 5 सितंबर 2016 को पूर्वी चीन के हैंगझाऊ में होना है. शिखर वार्ता ऐसे समय पर हो रही है जब एक तरफ चीन दक्षिण चीन सागर मामले में चारों ओर से घिरा हुआ है और भारत से मदद चाहता है, तो वहीं भारत भी चीन से ‘पाकिस्तान फैक्टर', जिसमें 46 अरब डॉलर के चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे, एनएसजी ग्रुप की सदस्यता को लेकर चीन से नाराज है. .भारत के अलावा चीन का जापान, ब्रिटेन और अमेरिका, वियतनाम के साथ संबंधों में तनाव भी चल रहा है.
चीन की नज़रें मोदी की विएतनाम यात्रा पर लगीं हैं जिसके साथ चीन के दक्षिण चीन सागर पर अधिपत्य को लेकर विवाद है.
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हांगझोउ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से द्विपक्षीय मुलाकात होगी. मोदी और शी जिनपिंग पहले भी आपस में मिलते रहें हैं और अगले महीने (अक्टूबर) में गोवा में ब्रिक्स सम्मेलन में भी मिलने वाले हैं. मोदी और जिनपिंग अंतिम बार शंघाई सहयोग परिषद (एससीओ) ताशकंद की बैठक मिले थे . लेकिन मुलाकात का नतीजा सर्वविदित है. भारत के प्रस्ताव को चीन ने ख़ारिज कर दिया था. और भारत की एंट्री एनएसजी ग्रुप में नहीं हो पाई.
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लेकिन इस बार मुलाकात ऐसे समय में होगी जब चीन-भारत संबंधों पर ‘पाकिस्तान फैक्टर' हावी रहेगा. आतंकवाद से लेकर 46 अरब डॉलर के चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे और बलूचिस्तान तक द्विपक्षीय संबंधों पर असर पडा है. एक और जहाँ भारत आंतकवाद को आर्थिक मदद और करों की चोरी और जरूरी दवाओं तक पहुंच का मुद्दा उठा सकता है, तो दूसरी तरफ अमेरिका NSG में भारत की एंट्री को लेकर इस बारे में चीन से जी20 सम्मेलन में बात कर सकता है .दक्षिण चीन सागर पर अमेरिका ने कहा था कि फैसल कानून सम्मत है और इस पर अमल होना चाहिए.
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