5 कारण, अमेरिका से युद्ध करना ईरान के लिए कतई लॉजिकल नहीं है
इराक में Iranian General Qassem Soleimani की मौत के बाद Iran, America से बदले की बात कर रहा है. यदि ईरान और अमेरिका के बीच युद्ध (US-Iran war) हुआ तो इससे अमेरिका को तो जो हानि होगी सो होगी मगर ईरान के पास संभालने के लिए कुछ नहीं बचेगा.
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3 जनवरी 2020. दुनिया अभी न्यू ईयर के जश्न के हैंगओवर से उभर भी नहीं पाई थी कि इराक की राजधानी बगदाद से बड़ी खबर आई. अमेरिकी नागरिकों की रक्षा के मद्देनजर किये गए ड्रोन हमले में ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के शक्तिशाली कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी (Qassem Soleimani Killing) को मार दिया गया. हमले में ईरान (Attack on Iran) के शक्तिशाली हशद अल-शाबी अर्द्धसैनिक बल के उप प्रमुख और कुछ अन्य ईरान समर्थित स्थानीय मिलिशिया भी शामिल थे. अमेरिका और ईरान के बीच का तनाव (America-Iran Conflict) किसी से छुपा नहीं है. ऐसे में इस घटना ने आग में घी का काम किया. ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली ख़ामेनेई (Ayatollah Khamenei) के बाद ईरान में दूसरे सबसे महत्वपूर्ण शख्स के रूप में मशहूर जनरल कासिम सुलेमानी की मौत (Qassem Soleimani death) के बाद न सिर्फ ईरान बल्कि पूरे मध्य पूर्व (Middle East) में उबाल है. वो ईरान जो अपने जनरल की मौत से पहले धार्मिक चरमपंथ, कट्टर इस्लामिक शासन के तौर-तरीकों जैसी चीजों के लिए सड़कों पर था और आज़ादी और खुलेपन की मांग कर रहा था अपने आंतरिक मतभेद भूलकर एकजुट हुआ है और बदले की बात कर रहा है. बात अगर खुद अयातुल्ला अली ख़ामेनेई की हो तो जनरल कासिम सुलेमानी की मौत क फ़ौरन बाद उन्होंने बयान दिया था कि जनरल कासिम सुलेमानी की मौत का बदला लिया जाएगा.
अगर ईरान अमेरिका से लड़ता है तो ऐसे तमाम मोर्चे हैं जिनपर उसे दुश्वारियां आने वाली हैं
ईरान ने ये बात यूं ही नहीं की. उसने इसे अमली जामा भी पहनाया.बताया जा रहा है कि ईरान की इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स ने मेजर जनरल सुलेमानी की हत्या का बदला लेते हुए रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स की वायु सेना ने इराक स्थित अमेरिकी सैन्य ठिकानों पर दर्जनों बैलेस्टिक मिसाइलें दागीं हैं. इस हमले के बाद ईरान यही दावा कर रहा है कि इस हमले में 80 अमेरिकी मारे गए हैं. मामले पर ईरान की रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स ने आधिकारिक बयान जारी करते हुए कहा है कि, 'ऑपरेशन शहीद सुलेमानी' के तहत अमेरिकी ठिकानों पर दर्जनों सतह से सतह पर मार करने वाली मिसाइलों से हमला किया गया जिसमें 80 अमेरिकी सैनिकों की मौत हुई.
They were slapped last night, but such military actions are not enough. #AlAssadBase
— Khamenei.ir (@khamenei_ir) January 8, 2020
वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप खुद को अधिक ताकतवर साबित करने पर लगे हुए हैं और ईरान के दावे को झूठा बता रहे हैं. ट्रंप ने कहा है कि इस हमले में किसी भी अमेरिकी को कोई नुकसान नहीं हुआ है. राष्ट्र को संबोधन के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया कि ईरान के द्वारा जो मिसाइल अटैक किया गया था, उसमें अमेरिका की 0 कैजुएलिटी (कोई नुकसान नहीं) हुई है. इसके साथ ही डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि जबतक वो अमेरिका के राष्ट्रपति हैं, तबतक ईरान कभी भी परमाणु हथियार हासिल नहीं कर पाएगा. वह ईरान में शांति और विकास चाहते हैं ऐसे में ईरान को तुरंत आतंकियों का साथ छोड़ना चाहिए.
All is well! Missiles launched from Iran at two military bases located in Iraq. Assessment of casualties & damages taking place now. So far, so good! We have the most powerful and well equipped military anywhere in the world, by far! I will be making a statement tomorrow morning.
— Donald J. Trump (@realDonaldTrump) January 8, 2020
अमेरिका के इस बयान पर पुनः ईरान ने प्रतिक्रिया दी है. अयातुल्ला अली ख़ामेनेई ने ट्वीट किया है और कहा है कि अमेरिकी हुकूमत झूठ बोल रही है. ख़ामेनेई ने अपने इस ट्वीट में इस हमले को अमेरिका के मुंह पर करार तमाचा बताया है.
The lying, rambling US govt – whose words are worthless – tried to introduce this great Mujahid & Commander in the fight against terrorism as a terrorist. The Iranian nation slapped them in the face with their turn out in the millions for the funeral of General Soleimani.
— Khamenei.ir (@khamenei_ir) January 8, 2020
अमेरिका और ईरान में से किसका सच, सच है और कौन झूठ बोल रहा है ? इन दोनों ही सवालों का जवाब वक़्त की गर्त में छुपा है मगर सवाल बना हुआ है ईरान पर. ऐसी इसलिए भी है क्योंकि ईरान के मुकाबले अमेरिका कहीं ज्यादा शक्तिशाली है. अर्थव्यवस्था से लेकर संसाधनों और मदद तक पूरे मामले में अमेरिका का पलड़ा भारी है. जैसी दोनों मुल्कों की हैसियत है ये कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि इस युद्ध में अमेरिका के पास खोने को ज्यादा कुछ नहीं है. वहीं बात अगर ईरान की हो तो उसके पास गंवाने को बहुत कुछ है और यदि युद्ध होता है तो इससे सिर्फ ईरान में तबाही होगी जिससे ईरान का नुकसान होगा और उसे वापस पटरी पर आने में कई दशक लग जाएंगे.
आइये कुछ बिन्दुओं पर चर्चा करें और जानें कि ऐसे कौन से नुकसान हैं. जिनका सामना ईरान को इस युद्ध के बाद करना होगा.
मंदी में अर्थव्यवस्था
ईरान का शुमार विश्व के उन देशों में है जो अपने परमाणु कार्यक्रम पर तेजी के साथ काम कर रहा है और जिसने अपना पूरा पैसा इसमें झोंक दिया है. बात अगर वर्तमान की हो तो अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के चलते ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर लगाम पहले ही लग चुकी है.
आज भले ही ईरान अमेरिका के उत्पादों का बहिष्कार करता हो मगर उस स्थिति में जब युद्ध होता है तो इस युद्ध का सीधा असर ईरान की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा जिसे पहले ही मुल्क के हुक्मरानों ने पंगु बना दिया है. इस स्थिति में यहां रोजगार का तो सवाल ही नहीं पैदा होता और आम ईरानियों के सामने भूके मरने की स्थिति आ जाएगी.
ईरान खो सकता है अपना तेल
भले ही ये कहा जा रहा हो कि ईरान अपनी संप्रभुता को बचाने के लिए एक सैद्धांतिक लड़ाई लड़ रहा हो. मगर जब उसका दुश्मन अमेरिका है. तो सोचने वाली बात ये है कि जो दुश्मन उसके देश के दूसरे सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति को मार सकता है.
उसके लिए कितना मुश्किल उसके ऑइल रिज़र्व पर निशाना लगाना होगा? ज्ञात हो कि एक अनुमान के अनुसार ईरान के पास दुनिया का चौथा सबसे बड़ा कच्चा तेल भंडार है.
बात अगर वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट की हो तो वर्ल्ड बैंक भी यही कहता है कि मुल्क की अर्थव्यवस्था का आधार और राजस्व का स्रोत कच्चे तेल की बिक्री है ऐसे में अगर ये युद्ध हो जाता है तो इससे ईरान की बची कुची अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी और खाने तक के लाले लग जाएंगे.
जीवन यापन की लागत में इजाफा होगा
इस बात में कोई शक नहीं है कि युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नहीं है. साथ ही युद्ध दो ऐसे मुल्कों का है जो दूर दूर तक एक दूसरे से मैच नहीं करते हैं. दोनों ही मुल्कों में कितना अंतर है इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि सेंट्रल बैंक ऑफ ईरान ने 42,000 ईरानी रियाल की कीमत 1 डॉलर रखी है.
वहीं अन ऑफिसियल मार्केट में एक डॉलर के लिए 140,000 रियाल चुकाने पड़ रहे हैं. सोचने वाली बात ये है कि एक ऐसे वक़्त में जब युद्ध नहीं हुआ है ईरान की स्थिति ऐसी है तो कल्पना करिए उस पल की जब युद्ध हो जाए. क्योंकि ईरान अपना सारा पैसा युद्ध में झोंक देगा तो कास्ट ऑफ लिविंग बढ़ेगी और फिर ईरान किस स्थिति में पहुंचेगा इसका अंदाजा आसानी के साथ लगाया जा सकता है.
सिर्फ़ कर्जे चुकाने में बीत जाएगी जिंदगी
हम बात ईरान-अमेरिका युद्ध की कर रहे हैं और किसी भी युद्ध में कर्जे कैसे मुल्क को तोड़ते हैं इसे हम ईरान के पड़ोसी मुल्क इराक से समझ सकते हैं. सद्दाम के वक़्त और बाद के इराक की स्थिति हमारे सामने हैं. साथ ही हमसे ये भी नहीं छुपा है कि कैसे आज इराक का शुमार विश्व के पस्तहाल मुल्कों में है. इराक ने एक लंबे समय तक युद्ध का सामना किया है और ऐसा ही कुछ हाल अब हमें ईरान का होता दिखाई दे रहा है.
ईरान का कोई ताकतवर दोस्त नहीं है. बात अगर समर्थन की हो तो इस स्थिति में चीन या फिर रूस अपने प्रभुत्व के लिए बगावत का बिगुल फूंक सकते हैं और ईरान को 'टेक्नीकल' समर्थन दे सकते हैं. यदि ऐसा होता है तो ये सब मुफ्त में नहीं होगा इसके लिए ईरान को बड़ी कीमत चुकानी होगी और वो लगातार कर्जे में डूबता चला जाएगा और ये कर्ज इतना होगा कि उसे चुकाने में शायद उसे अपना सब कुछ न्योछावर कर देना पड़े.
ध्यान रहे कि ईरान में आधुनिक सामाजिक सिद्धांतों पर पिछड़ा है. जबकि बात अगर अमेरिका की ही हो तो अमेरिका मॉडर्न डेमोक्रेसी के सिद्धांतों को फॉलो करता है. जो वास्तव में उसे वर्ल्ड लीडर बनाता है.
अमेरिका के अलावा बादशाहत की जंग भी हारेगा ईरान
जैसा की हम बता चुके हैं दोनों ही मुल्कों के लिए ये युद्ध शक्ति प्रदर्शन है और इसमें भी अमेरिका शक्ति के लिहाज से कहीं आगे हैं. अब आते हैं हम अपनी बात पर. हमने यहां बादशाहत का जिक्र किया है. तो बता दें कि अगर विषय मध्य पूर्व हो तो चाहे ISIS का खात्मा करना हो. चाहे लेबनान और सीरिया में मदद देनी हो. जनरल कासिम सुलेमानी के कारण पूरे मिडिल ईस्ट में ईरान का दबदबा बढ़ता जा रहा था.
इस स्थिति में अगर किसी को ईरान से सबसे ज्यादा खतरा था तो वो और कोई नहीं बल्कि सऊदी अरब था. माना जा रहा था कि अमेरिका का अच्छा मित्र होने के कारण सऊदी अरब ईरान के निशाने पर था. अब अगर युद्ध होता है और ईरान हारता है तो उसका सारा रुतबा धरा का धरा रह जाएगा और इससे पूरे मिडिल ईस्ट पर सऊदी अरब की बादशाहत कायम रहेगी.
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