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Updated: 23 फरवरी, 2018 09:32 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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अव्वल तो राहुल गांधी यूपी में महागठबंधन जैसा सियासी फोरम खड़ा करना चाहते हैं, लेकिन अखिलेश यादव और मायावती के तेवर लगता नहीं कि ऐसा फिलहाल होने देंगे. अखिलेश यादव 2019 के मैदान में अकेले उतरने का ऐलान कर चुके हैं तो मायावती भी मैसेज दे चुकी हैं वो गठबंधन के मूड में कतई नहीं हैं. नसीमुद्दीन सिद्दीकी को लेकर कांग्रेस ने आहिस्ते से बड़ी चाल चल दी है - और अब चर्चा है कि शिवपाल यादव पर भी डोरे डाले जा रहे हैं. नसीमुद्दीन कांग्रेस के लिए कितने काम के हो सकते हैं, इस क्लॉज में शर्तें लागू हो सकती हैं, लेकिन शिवपाल यादव कांग्रेस के लिए हनुमान की भूमिका में बड़े ही काम के हो सकते हैं.

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'हनुमान' कैसे हो सकते हैं शिवपाल यादव?

यूपी में सत्ताधारी बीजेपी जिस तरह रामराज का दावा कर रही है, और अयोध्या में भव्य राममंदिर को लेकर जैसा माहौल बना है, कोई हनुमान ही कांग्रेस की वैतरणी पार करा सकता है. माहौल के लिए याद दिलाने की जरूरत नहीं, प्रस्तावित राम मंदिर की डिजाइन में रथयात्रा निकली है और अयोध्या का रेलवे स्टेशन भी वैसा ही स्वरूप हासिल करने वाला है. फिर तो संदेह की जरूरत ही नहीं, हनुमान का रोल कितना बड़ा हो सकता है.

अब सवाल ये है कि क्या शिवपाल यादव कांग्रेस पार्टी के लिए ऐसी कोई बड़ी भूमिका निभा सकते हैं? शिवपाल को लेकर कांग्रेस के लिए कुछ निगेटिव फीडबैक भी हो सकते हैं. शिवपाल ने कोई दरवाजा बंद नहीं किया है. बीजेपी नेताओं से संपर्क में बने रहना और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से उनकी मुलाकात बताती है कि अपने राजनीतिक करियर के लिए आइडियोलॉजी आड़े नहीं आने वाली. मौका मिले तो वो बीजेपी भी ज्वाइन कर सकते हैं और मायावती के मुहं से भी कभी उनके खिलाफ कोई टिप्पणी सुनने को नहीं मिली है. फिर तो बीएसपी के दरवाजे बंद जैसी स्थिति का दावा नहीं किया जा सकता.

समझने वाली बात ये है कि कांग्रेस आंख मूंद कर नहीं चल सकती कि वो जाएंगे कहां? डील सही नहीं हुई तो कुछ भी कहना मुश्किल है. सकारात्मक होकर सोचें तो शिवपाल यादव संगठन को संभालने और चलाने के महारथी हैं. हालांकि, इससे उन्हें समाजवादी आइडियोलॉजी का माहिर नहीं समझा जाना चाहिये. यादव समुदाय के बीच खासा दबदबा है. मुलायम के नाम पर वो समाजवादी पार्टी में भी लंबे अरसे से हनुमान की ही भूमिका में रहे हैं. कई बार तो उनका रोल भरत जैसा भी दिखा है, लेकिन कभी अमर सिंह तो कभी रामगोपाल यादव ने अखिलेश के नाम पर उनके किरदार की किरकिरी कर दी.

कांग्रेस की ताजा स्थिति देखें तो उसके पास यूपी में शिवपाल जैसी हैसियत वाला कोई नेता नहीं है. बाकी जगह छोड़ दें तो इटावा और आस पास के इलाकों में शिवपाल का कोई सानी नहीं. विधानसभा चुनावों में उनका एक छद्म संगठन 'मुलायम के लोग' किस तरह काम कर रहा था, देखा सभी ने है. नतीजे हर इम्तिहान के पक्ष में ही आयें, ऐसा दावा भला कर भी कौन सकता है.

शिवपाल को कांग्रेस में मिला लेने से राहुल गांधी को पहला फायदा तो यही होगा कि वो अखिलेश यादव को एक सख्त मैसेज आसानी से दे पाएंगे. शिवपाल भले ही अखिलेश यादव के लिए बहुत उपयोगी न हों, लेकिन विरोधी पक्ष में जा मिले तो जितना भी नुकसान पहुंचाना चाहें, बहुत मुश्किल नहीं होगा. मुलायम भी तो यही कहते रहे हैं कि शिवपाल के हटने पर पार्टी टूट जाएगी. जाहिर है मुलायम कोई बात यूं ही नहीं कहते. भले ही बलात्कार की किसी घटना पर कोई घटिया ही टिप्पणी क्यों न हो. वैसे कांग्रेस के सामने भी सबसे बड़ा सवाल यही होगा कि शिवपाल पर भरोसा कर भी ले तो किस हद तक? क्या यूपी में कांग्रेस की कमान सौंपने जैसी भी?

शिवपाल-नसीमुद्दीन कॉम्बो कितने खतरनाक हो सकते हैं?

कांग्रेस के नजरिये से देखें तो शिवपाल यादव और नसीमुद्दीन सिद्दीकी में बहुत सारी बातें कॉमन दिखेंगी. ये दोनों ही नेताओं की अपने पैतृक संगठनों में तकरीबन बराबर की अहमियत रही है. मुलायम सिंह यादव जितना भरोसा शिवपाल यादव पर करते रहे हैं, नसीमुद्दीन पर भी मायवती को उतना ही यकीन रहा. जहां तक दोनों नेताओं के छवि की बात है तो कांग्रेस के पैमाने पर दोनों में से कोई कम या ज्यादा होगा, ऐसा नहीं लगता. नसीमुद्दीन खुद ही नहीं, बीएसपी में साथी रहे कुछ और भी नेताओं को कांग्रेस में साथ ला चुके हैं.

कांग्रेस में आने से पहले नसीमुद्दीन खुद को आजमा भी चुके हैं और उन्हें भी अहसास हो गया कि उनकी ताकत या महारत तभी निखर सकती है जब ऊपर से कोई मजबूत साया बरकरार हो. कांग्रेस की छत्रछाया उनके लिए इस हिसाब से बेहद मुफीद साबित हो सकती है. नसीमुद्दीन के जरिये कांग्रेस उन मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर सकती है जिन पर 2017 में मायावती डोरे डालती रहीं. हालांकि, कांग्रेस के लिए ये कहीं से भी आसान नहीं होगा.

अगर नसीमुद्दीन की ही तरह शिवपाल को भी कांग्रेस साध ले और दोनों को साथ लेकर आगे बढ़े तो तमाम फायदे हो सकते हैं. इन दोनों के साथ होने से कांग्रेस को सबसे बड़ा फायदा तो ये होगा कि बूथ लेवल मैनेजमेंट आसान हो जाएगा जहां बीजेपी हर बार बाजी मार ले जाती है.

शिवपाल का तो अभी तय नहीं लेकिन नसीमुद्दीन को लेकर कुछ कांग्रेस नेता असहमति भी जता चुके हैं. ऐसे नेताओं को कांग्रेस नेतृत्व ऐसे समझा सकता है कि जिस तरह पश्चिम बंगाल में मुकुल रॉय को लेकर बीजेपी ने ममता बनर्जी को झटका दिया, कांग्रेस दोनों को लेकर एक ही साथ अखिलेश और मायावती को डबल झटका दे सकती है. कहने की जरूरत नहीं, तुलना की जाये तो जीतन राम मांझी और ओ पनीरसेल्वम से शिवपाल यादव कहीं ज्यादा आगे नजर आएंगे - बात कर अखिलेश यादव और मायावती को डैमेज करने की हो.

कांग्रेस के लिए शिवपाल और नसीमुद्दीन के साथ आ जाने पर सबसे बड़ा फायदा ये हो सकता है कि वो अखिलेश यादव और मायावती पर महागठबंधन में साथ लाने के लिए दबाव बढ़ा सकती है. बस, एक ही लोचा है - कानाफूसी के चक्कर में अचानक मुलायम सिंह यादव बीच में कूद पड़ें और कुश्ती का कोई दांव चुनावी अखाड़े में न चला दें.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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