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Updated: 08 अगस्त, 2016 09:56 PM
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कितनी अजीब बात है! राष्ट्रगान में भी धर्म खोज लेने का करिश्मा इसी देश में हो सकता है. देश का संविधान कहता है कि राष्ट्रगान का सम्मान नागरिकों का कर्तव्य है. राष्ट्रीय चिन्हों, तिरंगा या संविधान का अपमान करने पर तीन साल तक की सजा हो सकती है. लेकिन परवाह किसे है!

इलाहाबाद के एक निजी स्कूल एमए कॉन्वेंट में 12 साल से राष्ट्रगान गाया ही नहीं गया. कारण...स्कूल प्रशासन को लगता है कि राष्ट्रगान गैरइस्लामिक है! स्कूल के प्रबंधक जिया उल हल को 'भारत भाग्य विधाता' पंक्ति से समस्या है. कहते हैं कि इस्लाम में अल्लाह के अलावा कोई और भाग्य विधाता नहीं होता. इसलिए, उन्हें ये पंक्ति गैरइस्लामिक लगी. 12 साल हो गए.

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 स्कूल के मैनेजर जिया उल हक

स्कूल में कितने बच्चे आए और गए होंगे. लेकिन कभी भी इनका राफ्ता राष्ट्रगान से नहीं हुआ. ये अपने आप में कितना अजीब और हैरान करने वाला है. स्कूल के मैनेजर साहब ये तक कह गए कि बच्चों के कुछ पैरेंट्स ने ही बहुत पहले राष्ट्रगान को लेकर आपत्ति जताई थी. इसलिए उनका भी फर्ज बनता है कि वे मुस्लिम बच्चों को ऐसी बातों से बचाएं.

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ये सही है कि विरोध की जगह रहनी चाहिए. लेकिन संवैधानिक व्यवस्थाओं और मान्यताओं के अपमान की इजाजत किसने दी है. जिस व्यक्ति को भारत के राष्ट्रगान से समस्या है, फिर यही मान लेना चाहिए कि उसे संविधान से भी समस्या है. इस लिहाज से देखें तो सबके अपने-अपने विरोध है. सब अपनी थ्योरी लगाने लगे तो संविधान और कानून का क्या फायदा. बहरहाल, इतना कुछ होता रहा और पुलिस और प्रशासन को कभी इसकी भनक ही नहीं लगी. मीडिया में खबर आने के बाद अब प्रशासन हरकत में आई और जिया उल हक को गिरफ्तार कर लिया गया है. मामला अब पुलिस के हाथ में है. जांच चलती रहेगी. वैसे, ये टाइमिंग भी दिलचस्प है. यूपी में चुनावी बयार भी चल ही रही है.

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वैसे, ये पहली बार तो है नहीं और सबको पता है कि ना ही ये आखिरी बार होगा. इसी देश में कुछ लोग इसी देश की मान्यताओं और भावनाओं पर सवाल उठाते रहेंगे. बहाना कभी अभिव्यक्ति की आजादी का होगा...कभी धर्म का तो कभी राष्ट्रवाद की अधकचड़ी समझ का. कोई आपको 'अधिनायक' और 'भारत भाग्य विधाता' का मतलब समझाने लगेगा, कोई इतिहास के पन्ने खोल देगा तो कोई धर्म की मान्यता का हवाला देकर किसी भी बात को गैर धार्मिक करार कर देगा. कई ऐसे उदाहरण मिल जाएंगे- जो साबित करते हैं कि हम अपने ही देश का कई बार अपमान करते आए हैं.

1. पिछले साल इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मदरसों में राष्ट्र भावना के सम्मान के लिए आदेश दिया था. तब कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को यह सुनिश्चि‍त करने के लिए कहा कि राज्य भर के मदरसों में 15 अगस्त और 26 जनवरी को निश्चित तौर पर तिरंगा फहराया जाए. यह अपने आप में बेहद दुखद बात थी कि कोर्ट को तिरंगा फहराने के लिए कहना पड़े. आखिर कोर्ट को ऐसा क्यों कहना पड़ा. जवाब सीधा है...हमारे ही समाज में कुछ ऐसे लोग हैं जो ऐसे कन्फ्यूजन पैदा करते हैं.

2. ऐसे ही पिछले साल 15 अगस्त से पहले दारुल उलूम देवबंद ने भी निर्देश जारी किया कि सभी मुस्लिम 15 अगस्त को धूमधाम से मनाएं. यह निर्देश मदरसों और इस्लामी ऑर्गनाइजेशन्स के लिए जारी किए गए थे. दारुल उलूम ने सभी मुसलमानों से अपने घरों पर तिरंगा फहराने को कहा.

3. वंदे मातरम को लेकर विवाद अब भी अपनी जगह है. आजादी की लड़ाई के दिनों में कितने स्वतंत्रता सेनानियों का प्रेरणा गीत रहा वंदे मातरम कब गैर इस्लामिक हो गया, मालूम ही नहीं चला.

4. जन-गण-मन की रचना और इसके इतिहास को लेकर भी कई तरह के भ्रम पैदा किए गए और हमारे ही लोगों ने किए. शब्दों और पंक्तियों की व्याख्या कुछ लोग ऐसे करने लगते हैं कि दशकों से पूरा हिंदुस्तान कोई घोर गलती करता जा रहा है. शब्दों या राष्ट्रगान को बदलने की मांग करने वाले क्या ये नहीं समझते कि जन गण मन के साथ जो भावनाएं जुड़ी हैं, उसकी तुलना किसी और से नहीं की जा सकती.

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