Vaishno Devi stampede: आखिर क्यों भीड़ प्रबधंन पर बननी चाहिए ठोस नीति...
वैष्णो देवी मंदिर में हुई भगदड़ (Vaishno Devi stampede) की एक बड़ी वजह भीड़ प्रबधंन का ना होना है. अगर इसपर कोई ठोस नीति बनी होती तो यकीनन इस तरह का कोई हादसा न होता. इसलिए अब वो समाया आ गया है जब सरकार को भीड़ प्रबधंन को गंभीरता से लेना चाहिए और इसपर कोई ठोस नीती बनानी चाहिए.
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वैष्णो देवी मंदिर में आस्थावान श्रद्धालुओं की भीड़ अचानक हादसे में तब्दील हुई हो, ऐसा कतई नहीं है और ये ऐसी एकलौती घटना भी नही? ये सभी जानते हैं, समूचे हिंदुस्तान के धार्मिक स्थलों पर एक अंतराल के बाद इस किस्म के हादसे होते रहे हैं. आमजन के अलावा हुकूमतें तो अच्छे से जानती हैं. दरअसल, ऐसे हादसों के बुनियादी कारण भीड़ प्रबधंन का ना होना होता है, जिसपर आजतक कोई ठोस नीति नहीं बन पाई. अगर ये नीति बनी होती और उसे मुकम्मल तरीके संचालित किया गया होता तो शायद वर्ष के पहले दिन ऐसी दर्दनाक घटना से हमें सामना नहीं करना पड़ता. जब समय एक दूसरे को नर्व वर्ष की बधाई देने का था, तब टीवी पर हताहत हुए परिजनों के बिलखने की तस्वीरें देखने को मिल रही थी, जिसे देखकर किसी का भी मन दुखी हुआ. सवाल उठता है ऐसे धार्मिक स्थलों पर लगने वाली बेकाबू भीड़ को नियंत्रित क्यों नहीं किया जाता. कहां कमी रह जाती हैं.
भीड़ से उत्पन होने वाले हादसों को रोकने के लिए कुछ साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व की भगदड़ से हुई घटनाओं को संज्ञान में लेकर सभी राज्यों को दिशा-निर्देश जारी किए थे. सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों से साफ कहा था कि उनको एक बात ठीक से समझ लेना चाहिए कि अगर किसी जगह बीस-पच्चीस हजार लोग जमा हों तो वहां भगदड़ या हादसे की आशंका रहती है. इसलिए वहां पहले से ही सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए जाएं.
साल के पहले ही दिन वैष्णो देवी मंदिर में हुए हादसे के बाद एक साथ कई सवाल खड़े हो गए हैं
पर, उस आदेश का पालन किसी ने नहीं किया. सवाल उठना लाजमी है कि सारे तथ्यों को जानने के बावजूद भी भीड़ को नियंत्रित करने के इंतजाम में इतनी पापरवाही क्यों? भारत के कई शहरों में विभिन्न अवसरों पर राजनैतिक दलों की सभाएं, रैलियां या फिर धार्मिक स्थलों पर आयोजनों में भगदड़ की घटनाएं होती रहती है. बावजूद प्रशासनिक लापरवाही नए रूप में सामने आ जाती हैं.
गौरतलब है, भीड़ प्रबंधन को लेकर हम आज भी दशकों पीछे हैं. इस क्षेत्र में आज तक कोई कारगर नीति नहीं अपनाई गई और न ही कोई योजना बनाई गई. जो बनी हैं, वह कागजों में ही सीमित हैं. धरातल पर सब शून्य? घटना के कुछ दिनों बाद सब कुछ पहले जैसे ही हो जाता है. वैष्णो देवी भगदड़ घटना से सबब लेने की जरूरत है. क्योंकि हर किसी की जिंदगी अनमोल होती है उसे दांव पर लगाने का हमें कोई हक नहीं.
प्रशासन को आवाम की सुरक्षा करना पहली जिम्मेदारी होनी चाहिए, उसे हलके में नहीं लेना चाहिए. भगदड़ से दुर्घटनाओं के विभिन्न पहलुओं पर जब तक तटस्थता से विचार नहीं किया जाएगा, तब तक उन्हें पूरी तरह से रोका नहीं जा सकेगा. हिंदुस्तान में आबादी के बढने के साथ ही धार्मिक आडंबर व दिखावे का जोर भी बढ़ा है. धर्म के महिमामंडन में कई बार उसकी मूल भावना को ही उपेक्षित किया जाता है और धर्म के जरिए अन्य लाभ लेने की भावना बलवती दिखाई देती है.
सरकार व प्रशासन सभी को पता होता है कि धर्मिक स्थलों पर भारी भीड़ होगी. तो भीड़ को रोकने के लिए भीड़ प्रबंधन पर तटस्थता से पहले ही विचार कर उचित रणनीति बना लेनी चाहिए. पर, ऐसा नहीं किया जाता. सब भगवान भरोसे छोड़ दिया जाता है. हादसों के बाद कुछ समय के लिए सर्तकता शुरू हो जाती है लेकिन समय बीतने के बाद फिर से सब कुछ भुला दिया जाता है.
भविष्य में ऐसे हादसे जन्म न लें, इसके लिए ठोस नीति अपनाने की दरकार है. सिर्फ मुआवजा को विकल्प नहीं समझना चाहिए. हादसे के पीछे स्थानीय प्रशासन और तत्कालिक आपदा कु-प्रबंधन तंत्र की नाकामियों को एक्सपोज करना चाहिए. धार्मिक स्थलों पर ऐसे मौत के तांड़व सिर्फ प्रशासन की लचर व्यवस्था के कारण होते हैं.
फौरी तौर पर हमारी सरकारी व्यवस्थाएं भीड़ प्रबंधन को कितना भी दुरूस्त करने की बात कहती रहें, लेकिन हादसों के वक्त इनके तमाम कागजी इंतेजामात सफेद हाथी साबित होते दिखते हैं. इनकी तैयारियां सिर्फ कागजों में सरकर को दिखाने भर के लिए ही होती है. हादसों के वक्त इनसे अच्छा काम तो दूसरे सहयोग करने वाले लोग करते हैं. धार्मिक स्थलों के लिहाज से देश में हर साल कहीं न कहीं कोई घटना घट ही जाती है.
वैष्णो देवी हादसा निश्चित रूप से चिंता का विषय है. पर, इस चिंता का कोई वैकल्पिक समाधान होता भी नहीं दिखता? हां इतना जरूर है, ऐसे हादसों से लोगों के ध्यान को हटाने के लिए मुआवजा बड़ा अधिकार साबित होता है. हुकुमतें और प्रशासन अच्छे से जानते हैं, लोगों की बुलंद आवाज को कैसे दबाया जाता है.
भीड़ को नियंत्रित करने के लिए हमारे पास उपयुक्त व्यवस्था नहीं हैं. यही कारण है वैष्णो देवी जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति होती रहेगी. सभी हादसों की तरह इस बार भी मुआवजा देकर मामले को शांत कराया जाएगा. जांच के नाम पर खानापूर्ति होगी. क्या यह सब भविष्य में होने वाले हादसों को रोकने का विकल्प है, शायद नहीं?
बेहतर होता कि ऐसे हादसों पर अंकुश लगाने को कोई ठोस कारगर नीति अपनाई जाती? सवाल वहीं पर रूका हुआ है कि आखिर कोई क्यों नहीं ऐसे हादसों को रोकने का प्रयास नहीं करता. हादसे के तुंरत बाद प्रधानमंत्री ने जम्मू-कश्मीर के उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा से जानकारी लेकर हादसे की जांच करने, बचाव कार्य को बढ़ाने और घायलों को समुचित चिकित्सा सुविधाएं देने का आदेश दिया. ऐसा होना भी चाहिए, दुख की घटी में सभी को आगे आना चाहिए.
तत्कालिक जांच में दिल्ली से टीम भी भेजी गई, जिन्होंने स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों से घटना के संबंध में पूछा. जिस पर किसी अधिकारी ने कोई खुलकर प्रतिक्रिया नहीं दी, सभी शांत थे. दरअसल उनकी यही चुप्पी उनकी नाकामी बयां करती है. धार्मिक स्थलों को लेकर हमेशा एक सवाल उठता है कि किसी भी उत्सव पर एकत्र होने वाली भीड़ को हमारा प्रशासन क्यों मैनेज नहीं कर पाता.
हमेशा भीड़ प्रबंधन की नाकाफी ही क्यों सामने आती है? इससे पहले भी पश्चिम बंगाल के 24 परगना रोड के गंगासागर में भगदड़ मचने से कई तीर्थ यात्रियों की मौत हुई थी. हादसे के वक्त पुलिसकर्मी भी खड़े थे, वह रोकने के वजह तमाशबीन बने हुए थे. ऐसी ही घटना बिहार की राजधानी पटना के गंगातट पर आयोजित पतंग उत्सव कार्यक्रम के दौरान हुई थी.
जहां की अव्यवस्था ने दर्जर्नों लोगों की जान ले ली. भीड़ वाली जगहों पर इस तरह के मामले होते रहते हैं लेकिन फिर भी प्रशासनिक अमला कोई सबक नहीं लेता और ना ही कोई जिम्मेवारी? हादसों में मरने वालों और घायलों को मुआवजा देकर मामले को ठंडा कर दिया जाता है और जांच के नाम पर ढोंग होता है. लेकिन समय की दरकार यही है, ऐसे हादसों को रोकने के लिए बिना देर किए उचित कदम उठाने चाहिए.
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