Sachin Pilot मामले में वसुंधरा राजे का चुप्पी तोड़ना अब मायने रखता है
लंबे इंतजार के बाद आखिरकार वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) ने चुप्पी तोड़ दी है. वसुंधरा के बयान में अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) का नाम तक नहीं है - और न ही गजेंद्र सिंह शेखावत (Gajendra Singh Shekhawat) के खिलाफ केस का जिक्र ही है.
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राजस्थान का झगड़ा जब तक सचिन पायलट बनाम अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) रहा, बात और थी - लेकिन बीजेपी के भी मैदान में आ जाने के बाद ये काफी गंभीर हो गया है. खासकर केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत (Gajendra Singh Shekhawat) के खिलाफ कांग्रेस के चीफ व्हीप महेश जोशी की तरफ से केस दर्ज कराये जाने के बाद. महेश जोशी जांच एजेंसी को अपना बयान भी दर्ज करा चुके हैं.
बीजेपी (BJP) की तरफ से भी लक्ष्मीकांत भारद्वाज ने कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला, नये PCC अध्यक्ष गोविंद डोटासरा, महेश जोशी और लोकेश शर्मा के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है. बीजेपी की तरफ से हुई शिकायत में कहा गया है कि ये लोग पार्टी की छवि खराब करने के लिए झूठे बयान दे रहे हैं. आरोप है कि बीजेपी की छवि खराब करने के लिए अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री आवास से साजिश के तहत एक फेक ऑडियो तैयार किया गया, जिसमें पार्टी के प्रतिष्ठित नेताओं की आवाज होने का झूठा दावा किया गया है.
कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला जहां केंद्रीय मंत्री गजेंद्र शेखावत को गिरफ्तार किये जाने की मांग कर रहे हैं, वहीं बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने पूरे मामले की सीबीआई से जांच कराने की डिमांड रख दी है.
मामला दिलचस्प तब हो गया जब वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) भी लंबी खामोशी तोड़ते हुए मैदान में कूद पड़ीं. अब तक वसुंधरा राजे की चुप्पी पर सवाल उठ रहे थे. माना जा रहा था कि बीजेपी नेतृत्व ने ऐसा माहौल तैयार कर दिया है कि खामोश रहना वसुंधरा राजे की मजबूरी हो गयी है?
हालांकि, ये सवाल अब भी बना हुआ है कि पूरे राजनीतिक सीन में कहीं नजर ही नहीं आने के बावजूद राजस्थान में सब कुछ वसुंधरा राजे के मनमाफिक ही कैसे हो रहा है?
वसुंधरा राजे को कोई संकेत मिला है क्या?
यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती राजस्थान के राजनीतिक घटनाक्रम पर रिएक्ट करें - और वसुंधरा राजे ऐसा व्यवहार करें जैसे कहीं कुछ हुआ ही न हो या हो ही न रहा हो या फिर जो कुछ हो रहा हो उसके बारे में उनको कुछ पता ही न हो? आखिर वसुंधरा राजे इस कदर बेखबर हो कैसे सकती हैं?
लेकिन ये सारे सवाल अब खत्म हो चुके हैं. काफी इंतजार के बाद वसुंधरा राजे ने ट्विटर पर अपना बयान जारी किया है. हालांकि, वसुंधरा राजे के बयान में वैसा तीखापन नहीं है जैसा तेवर बीजेपी प्रवक्ता और राजस्थान बीजेपी के नेता अपनाये हुए हैं. वसुंधरा राजे ने बड़ी ही संजीदगी से अपनी बात कही है और अशोक गहलोत या किसी का भी नाम नहीं लिया है. हां, बीजेपी और बीजेपी नेतृत्व पर दोष मढ़ने की बात कही है. वसुंधरा के बयान में जिक्र तो कोरोना, टिड्डी, महिलाओं के खिलाफ अपराध और बिजली समस्या का भी है, लेकिन राज्य सरकार को जनता का हित सर्वोपरि समझने की सलाह देकर अपनी बात पूरी कर ली है. सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात ये है कि वसुंधरा राजे ने केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के खिलाफ दर्ज केस का जिक्र तक नहीं किया है!
#RajasthanFirst pic.twitter.com/Qzq1iv0Yuy
— Vasundhara Raje (@VasundharaBJP) July 18, 2020
ऑडियो टेप केस में गजेंद्र सिंह शेखावत का नाम आने के बाद बीजेपी अशोक गहलोत के खिलाफ फोन टैपिंग को लेकर आक्रामक हो गयी है. बीजेपी पूछ रही है कि आखिर किन परिस्थितियों में नेताओं के फोन टैप किये गये?
बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से ऑडियो टेप प्रसंग में 5 सवाल पूछे हैं -
1. क्या राजस्थान में सरकार ने फोन टैपिंग करवाई है?
2. अगर फोन टैपिंग हुई तो क्या सरकार की तरफ से उन मानकों का अनुपालन हुआ जो जरूरी होते हैं?
3. क्या गैर संवैधानिक तरीके से राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार को बचाने की कोशिश की गई है?
4. क्या राजस्थान में सभी राजनेताओं के फोन टैप हो रहे हैं - चाहे वे किसी भी पार्टी के क्यों न हों?
5. क्या राजस्थान में राज्य सरकार ने अप्रत्यक्ष आपातकाल लगा रखा है?
2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी महज 72 सीटें ही जीत सकी थी, लेकिन आज भी उनमें से 45 से ज्यादा विधायक कट्टर वसुंधरा समर्थक माने जाते हैं. धौलपुर में रहते हुए भी वसुंधरा का जयपुर तक प्रभाव आसानी से समझा जा सकता है. खबर ये भी रही कि बीजेपी आलाकमान की तरफ से वसुंधरा के लिए केंद्र में आने का ऑफर दिया गया था, लेकिन वो राजी नहीं हुईं. मोदी-शाह से वसुंधरा का मतभेद तो जग जाहिर है, लेकिन विधायकों पर प्रभाव और संघ में गहरी जड़ें वसुंधरा को मुख्यधारा में बनाये रखती हैं.
अशोक गहलोत सरकार को लेकर मची उथलपुथल के बीच वसुंधरा राजे की लंबी खामोशी के बाद जारी बयान में भी खास राज हैं.
ऐसे दौर में जब ज्यादातर राजनीतिक गतिविधियों का का मुख्य मंच ट्विटर बन चुका है, वसुंधरा राजे ने राजस्थान के सियासी बवाल पर हफ्ते भर में कोई ट्वीट न करना भी महत्वपूर्ण रहा और अब ये अब ये बयान भी अहम है, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री ने जो कुछ कहा है वो महज रस्म अदा करने जैसा ही लग रहा है.
वसुंधरा राजे के करीबी एक सूत्र के हवाले से इंडियन एक्सप्रेस ने रिपोर्ट प्रकाशित की है. रिपोर्ट में करीबी कहता है कि बीजेपी नेतृत्व की तरफ से न तो कोई बात बतायी गयी और न ही वसुंधरा राजे से किसी तरह का विचार विमर्श किया गया. ऐसे में, करीबी का कहना है, वसुंधरा सरकार को अस्थिर करने का क्रेडिट क्यों लें भला? और वो भी अगर कोई ठोस नतीजा नहीं निकलता तो ऐसी तोहमत मोल लेने का क्या फायदा?
अभी 14 जुलाई को राजस्थान बीजेपी की एक बैठक बुलायी गयी थी और बताया गया कि वसुंधरा राजे भी उसमें शामिल होने वाली हैं, लेकिन वो नहीं पहुंचीं. फिर अपडेट किया गया कि वसुंधरा राजे अगले दिन की बैठक के लिए जयपुर आएंगी, लेकिन फिर भी वो नहीं आयीं.
हालिया राजनीति से वसुंधरा के दूरी बनाये रखने के दौरान मोर्चे पर सबसे आगे तो जोधपुर से सांसद और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ही चल रहे हैं, लेकिन ऑडियो टेप के जरिये केस दर्ज हो जाने के कारण उनको बचाव की मुद्रा में आना पड़ा है. बीजेपी की तरफ से पुलिस में शिकायत भी उसी की प्रतिक्रिया में दर्ज करायी गयी है और सीबीआई जांच की बात भी उसी सिलसिले के आगे का हिस्सा है.
मार्च, 2020 में जब मध्य प्रदेश में भी ऐसी ही स्थितियां बनी हुई थीं, शिवराज सिंह चौहान खासे सक्रिय देखे गये. हालांकि, वहां भी मोर्चे पर आगे आगे नरेंद्र सिंह तोमर और नरोत्तम मिश्रा जैसे नेता रहे. यहां तक कि विधायकों के साथ डील करने के दौरान भी आगे वे ही नजर आये. राजस्थान में वसुंधरा राजे की जगह गजेंद्र सिंह शेखावत, ओम माथुर, गुलाब चंद कटारिया, राजेंद्र राठौड़ और सतीश पुनिया जैसे नेता ही हर तरह देखे जा रहे थे. एक मीडिया रिपोर्ट में राज्य सभा चुनाव में बीजेपी के दूसरे प्रत्याशी को उतारे जाने को लेकर वसुंधरा से कोई चर्चा न किया जाना भी नाराजगी का कारण माना गया है.
ये तो वसुंधरा राजे को भी पता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूर्व बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को लंबे अरसे तक नजरअंदाज करने की कीमत चुकानी ही है. लिहाजा ये भी मालूम है कि बीजेपी नेतृत्व राजस्थान बीजेपी में नयी लीडरशिप खड़ा करने की कोशिश में काफी समय से है. दो साल पहले गजेंद्र सिंह शेखावत को प्रदेश बीजेपी का अध्यक्ष बनाने की कोशिश भी इसी कड़ी का हिस्सा रहा. ये वसुंधरा राजे ही रहीं जिनके विरोध के चलते गजेंद्र सिंह शेखावत को बीजेपी की कमान नहीं मिल सकी और फिर वसुंधरा की सहमति मिलने के बाद ही सतीश पुनिया प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष बन सके. वसुंधरा राजे ने बयान जारी कर चुप्पी पर उठते सवालों का जवाब तो दे दिया है, लेकिन अभी बहुत कुछ बाकी है. एक सवाल ये भी है कि क्या वसुंधरा ने बीजेपी में अपने खिलाफ किसी नये खतरे को भांप लिया है? क्या वसुंधरा राजे तक बीजेपी नेतृत्व की तरफ से कोई मैसेज पहुंचा है? क्या वसुंधरा राजे की नाराजगी दूर करने की कोई कोशिश हुई है - या फिर नयी पारी का कोई सिग्नल मिला है?
अशोक गहलोत ने तो कोई कसर बाकी रखी नहीं है
अब तक तो अशोक गहलोत ही बीजेपी पर सरकार गिराने की साजिश रचने का आरोप लगा कर हमलावर रहे हैं, लेकिन गजेंद्र सिंह शेखावत के लपेटे में आने के बाद से बीजेपी नेता भी मोर्चे पर आ डटे हैं. हो सकता है वसुंधरा राजे के चुप्पी तोड़ने की एक वजह ये भी रही हो.
वैसे अब तक तमाम उठापटक के बीच जो कुछ भी हो रहा था, वो वसुंधरा राजे के पक्ष में ही तो हुआ है. ऑडियो वायरल की जो भी हकीकत हो, गजेंद्र सिंह शेखावत के फंसने की खुशी वसुंधरा राजे खेमे में तो महसूस की ही गयी है. वसुंधरा राजे को बंगला दिये जाने का जब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत खुद बचाव कर रहे हों तो जरूरत ही क्या है बोलने की.
ये तो शुरू से ही देखने को मिल रहा है कि कैसे अशोक गहलोत ने सरकार बचाने के नाम पर एक एक करके कितने निशाने साधते आ रहे हैं. सरकार बचाने के नाम पर ही अशोक गहलोत ने सचिन पायलट को पैदल कर दिया. सरकार बचाने के नाम पर आलाकमान को भी समझा लिया कि कांग्रेस का भला उनके बराबर कोई नहीं सोच रहा है. सरकार बचाने के नाम पर ऐसा ऑडिया टेप तैयार किया गया कि बीजेपी में भी लपेटे में वही आये जो वसुंधरा राजे के विरोधी गुट का हिस्सा हो - गजेंद्र सिंह शेखावत.
अब एक चौंकाने वाली बात भी सामने आयी है, जिसकी स्थानीय मीडिया में खूब चर्चा है. अशोक गहलोत सरकार ने ऑडियो टेप की जांच का मामला भी एक ऐसे अफसर के जिम्मे कर दिया है जिसके बारे में सत्ता के गलियारों में वसुंधरा के करीबी होने की चर्चा रहती है.
ऑडियो टेप की जांच SOG कर रहा है - और स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप के प्रमुख सीनियर आईपीएस अफसर अशोक राठौड़ हैं. राजस्थान में पुलिस अफसरों के तबादले के दौरान जब अशोक राठौड़ को एसओजी का प्रमुख बनाया गया था तब भी हर कोई हैरान था. आखिर अशोक गहलोत ने इतनी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी ऐसे अफसर को कैसे सौंप दी जो खुद उनसे ज्यादा उनके राजनीतिक विरोधी का करीबी समझा जाता हो - एक खास बात और मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, जयपुर में चर्चा भी यही है कि ऑडियो क्लिप भी वायरल एसओजी में से ही किसी ने की है - और वो भी मौजूदा सरकार के इशारे पर. सोचिये अशोक गहलोत कितने लंबे समय से तैयारी कर रहे थे जिसका नतीजा आज सबको देखने को मिल रहा है.
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