अरुण जेटली को लेकर भगोड़े विजय माल्या के बयान पर इतनी हाय-तौबा क्यों ?
भगोड़े विजय माल्या-अरुण जेटली मुलाकात पर राहुल गांधी ने मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा किया है. काउंटर में बीजेपी भी राहुल के माल्या कनेक्शन पर सवाल पूछ रही है. केंद्र में एक बार फिर ललित मोदी प्रकरण दस्तक दे चुका है.
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भगोड़े शराब कारोबारी विजय माल्या और वित्त मंत्री अरुण जेटली की मुलाकात से सियासी तूफान स्वाभाविक है. वैसे मुलाकात को लेकर खुद माल्या भी खंडन कर चुके हैं - ये मुलाकात औपचारिक नहीं थी. जेटली भी माल्या के बयान में तथ्यात्मक त्रुटि उजागर कर चुके हैं - साफ किया है कि 2014 के बाद माल्या ने उनसे अपाउंटमेंट लेकर कोई मुलाकात नहीं की. अव्वल तो ये मामला माल्या की सफाई और मुलाकात की बात कबूल करते हुए जेटली के बयान के बाद खत्म हो जाना चाहिये, लेकिन विपक्ष भला यूं ही कैसे जाने देता.
मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षी दल कांग्रेस के पास राफेल डील अकेला था. अब जेटली और माल्या की मुलाकात को मिलाकर पार्टी एक डबल बैरल बंदूक बनाने की कोशिश कर रही है. इस तू-तू, मैं-मैं का हासिल भले ही आगे चल कर शून्य हो जाये, लेकिन तब तक बयानबाजी दिलचस्प होगी, ये जरूर कहा जा सकता है.
एक मुलाकात बड़ी अजीब सी
क्या संसद में चलते फिरते हुई बात को मीटिंग का दर्जा दिया जा सकता है?
ये तो नहीं मालूम कि विजय माल्या ने अरुण जेटली से मुलाकात के लिए कोई समय मांगा या नहीं, या फिर मांगा और जेटली ने नजरअंदाज कर दिया.
माल्या यूं ही मिलते रहते हैं क्या?
अपनी कुव्वत की बदौलत चुनाव जीत कर माल्या राज्यसभा सांसद बने - और पूरे अधिकार के साथ संसद के गलियारों में टलहते रहे. हो सकता है जेटली से माल्या मिलना चाहते हों और बात नहीं बन पायी हो. अब सामने कोई आ पड़े तो सिर झुकाकर, इधर-उधर देखते हुए नजर बचाकर या फोन पर बिजी होने का नाटक करते हुए बचने की कोशिश तो कोई तभी करेगा जब उसे सामने वाले से किसी तरह की परहेज हो. या फिर इस बात कर डर हो कि कहीं गले न पड़ जाये.
लंदन में माल्या का कहना रहा कि भारत छोड़ने से पहले वो वित्त मंत्री से मिलकर आये थे. माल्या का दावा है, "सेटलमेंट को लेकर वित्त मंत्री से मिले थे, लेकिन बैंकों ने मेरे सेटलमेंट प्लान को लेकर सवाल खड़े किए."
जेटली से मुलाकात में माल्या ने अपनी ओर से जो भी पेशकश या बातचीत की हो, जेटली को कठघरे में खड़ा करने से पहले कई सवालों के जवाब चाहिये होंगे - क्योंकि माल्या तो अपने बचाव में तरह तरह की बातें करेंगे ही.
कांग्रेस नेता पीएल पुनिया की बातें दमदार इसलिए नहीं लगतीं क्योंकि उन्होंने दूर से देखा भर है. पुनिया ये बताने की स्थिति में नहीं हैं कि दोनों में क्या बातचीत हुई? वैसे भी जेटली ने मुलाकात से इंकार तो किया नहीं है, हां, ये साफ जरूर किया है कि माल्या के मन मुताबिक उन्होंने कोई प्रतिक्रिया भी नहीं दी थी.
एक तथ्यात्मक त्रुटि और माल्या का भूल सुधार
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने विजय माल्या से अपनी मुलाकात से इंकार नहीं किया है. अपने ब्लॉग में अरुण जेटली लिखते हैं, "विजय माल्या ने कहा कि वो भारत छोड़ने से पहले सेटलमेंट ऑफर को लेकर मुझसे मिले थे. तथ्यात्मक रूप से ये बयान पूरी तरह झूठ है. 2014 से अब तक मैंने माल्या को मुलाकात के लिए कोई वक्त नहीं दिया है..."
जेटली ने ब्लॉग के जरिये तथ्यात्मक तस्वीर पेश की है, "वो राज्यसभा सदस्य थे और कभी-कभी सदन में आते थे. सदन की कार्यवाही के बाद एक बार मैं अपने कमरे की तरफ जा रह था. वो दौड़ते हुए मेरी तरफ आये थे."
... सरे राह चलते-चलते!
"मैं सेटलमेंट के लिए एक ऑफर तैयार कर रहा हूं," ब्लॉग के जरिये ये तथ्य साझा करते हुए जेटली वो बात भी बताते हैं जो उन्होंने माल्या से कहा, "मेरे सामने ऑफर रखने का कोई मतलब ही नहीं है... ये बात अपने बैंकों के सामने रखनी चाहिए..."
जेटली के ब्लॉग से मालूम होता है कि इस चलती-फिरती मुलाकात के लिए भी माल्या खाली हाथ नहीं पहुंचे थे. जेटली के मुताबिक माल्या के हाथ में कुछ पेपर थे, लेकिन वित्त मंत्री ने लेने से इंकार कर दिया.
बाद में भूल सुधार के साथ विजय माल्या का संशोधित बयान भी सामने आ गया - 'मैंने संसद में उनसे मुलाकात की थी और उन्हें बताया था कि मैं लंदन के लिए निकल रहा हूं... उनके साथ मेरी कोई अधिकारिक मुलाकात नहीं हुई..."
सियासी दुश्मनी के शिकार होते जेटली
जेटली और माल्या की मुलाकात को लेकर राहुल गांधी ने तो धावा बोला ही है, बीजेपी नेता सुब्रह्मण्यन स्वामी भी तीखे हमले कर रहे हैं. राहुल गांधी का जेटली के साथ वैचारिक विरोध है और स्वामी की दुश्मनी भी जगजाहिर है. बीते वक्त में कई मौकों पर जेटली के खिलाफ स्वामी के बौछार देखे जा चुके हैं.
स्वामी ने एक ट्वीट में दावा किया है कि उनके सूत्रों के अनुसार वित्त मंत्रालय के ही किसी शख्स ने माल्या की मदद की है. स्वामी का दावा है कि वित्त मंत्रालय से ही किसी के कहने पर माल्या को एयरपोर्ट पर छूट मिली और उसका फायदा भी.
I learn from my sources that the Lookout Notice issued by CBI for Mallya was modified from “Block Departure” to “Report Departure” on October 24, 2015 on orders from someone in MoF. Who?
— Subramanian Swamy (@Swamy39) September 12, 2018
स्वामी ने इस हेरफेर की एक तारीख भी बतायी है - 24 अक्टूबर 2015. पहले भी स्वामी ने इस सिलसिले में एक ट्वीट किया था. 12 जून का स्वामी का ये ट्वीट फिलहाल वायरल हो चुका है. स्वामी का कहना है कि बगैर हेरफेर के माल्या का देश से फरार होना नामुमकिन था.
Mallya could not escape from India because of a strong Look Out Notice for him at airports. He then came to Delhi and met someone who was powerful enough to change the Notice from blocking his departure to just reporting his departure. Who was that person who dilute this LON?
— Subramanian Swamy (@Swamy39) June 12, 2018
स्वामी के ट्वीट पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का सवाल है - 'अरेस्ट नोटिस को सूचना नोटिस में किसने बदला?'
माल्या का बयान आने के बाद अब कांग्रेस नेता पीएल पुनिया आंखोंदेखी दावा कर रहे हैं - दोनों के बीच लंबी वार्ता हुई. पुनिया सच्चाई जानने के लिए
सीसीटीवी फुटेज देखने की बात कर रहे हैं. साथ में, ये भी कि उनकी बात झूठ निकली तो राजनीति छोड़ देगें.
पुनिया के दावे के आधार पर ही कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी सरकार पर झूठ बोलने का इल्जाम लगा रहे हैं. कहते हैं, "क्या जेटली जी को पीएम मोदी से ऑर्डर आया था?"
मौके की तलाश थी, मिल गया...
वित्त मंत्री पर एक आर्थिक अपराधी के भागने में मदद पहुंचाने का आरोप लगाते हुए राहुल गांधी ने जेटली से पूछा है, "वित्त मंत्री साफ करें की क्या बात हुई... कॉरिडोर में आकर माल्या ने बताया कि वह लंदन भाग रहा है तो फिर आपने सीबीआई या ईडी को क्यों नहीं बताया?" सवाल तो बिलकुल वाजिब है. मगर, सवाल तो राहुल के दावे पर भी उठता है. जो सवाल राहुल गांधी जेटली और मोदी से पूछ रहे हैं - वही सवाल उनसे भी बनता है.
अगर जेटली ने सीबीआई और ईडी को नहीं बताया, तो क्या पीएल पुनिया ने दोनों की मुलाकात की बात राहुल गांधी को बतायी थी? अगर पुनिया ने बता दी थी तो माल्या के भाग जाने के बाद इतने दिन तक राहुल गांधी क्यों चुप रहे? अगर पुनिया ने राहुल गांधी को तब नहीं बताया था तो वो उनसे क्यों नहीं पूछते कि पुनिया क्यों चुप रहे?
बयानबाजी की इस जंग में सबसे दिलचस्प है जेटली के बचाव में आये केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद का सवाल - "क्या किसी ने नोटिस किया है कि राहुल गांधी के लंदन दौरे के बाद ही माल्या ने यह आरोप क्यों लगाए?"
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