Vikas Dubey को मिलती रही जमानतों के रिकॉर्ड से खुलेगा राजनीतिक सांठगांठ का राज
उत्तर प्रदेश पुलिस (Uttar Pradesh Police) द्वारा कुख्यात गैंगस्टर विकास दुबे के एनकाउंटर (Vikas Dubey encounter) का मामला सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) पहुंचा है. जिस तरह पूर्व की सरकारों में विकास को जमानतें मिलती रहीं उससे तमाम सियासी दलों पर संकट के बादल गहराने वाले हैं.
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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के वर्चुअल इजलास में सवालों वाली सुनवाई... अब तक जिन सवालों को सियासी और हवाई बताकर यूपी सरकार (UP Government) पल्ला झाड़ रही थी अब उन्हीं सवालों की रोशनी में योगी सरकार (Yogi Government) अपना भी मुंह दिखाएगी. जाहिर है कि जवाब आएंगे तो पिछली सरकारों के भी मुखौटे उतरेंगे. तब दिखेगा सुभाषित बकने वाले नेताजी लोगों के चेहरे कितने दागदार थे. जवाब तो देने होंगे लेकिन दो टूक और साफ साफ होंगे या फिर सफाई वाले ये देखना दिलचस्प होगा. अब सवालों कि भी चर्चा कर लें तो पहला बड़ा सवाल तो चीफ जस्टिस शरद अरविंद बोबडे (Chief Justice SA Bobde) ने यही किया कि संगीन अपराधों वाले 65 मुकदमों का आरोपी विकास दुबे (Vikas Dubey) जमानत और परोल पर बाहर कैसे आ गया था? और बाहर आने के बाद उसने लगातार वही सब किया जिसका अंदेशा था. यानी वही खून खराबा. लेकिन सत्ता उसका तब तक कुछ नहीं बिगाड़ पाई जब तक आठ पुलिस वाले खेत ना रहे और पुलिस व जनता का गुस्सा नहीं फूटा. सबसे बढ़कर मीडिया ने शोर मचाया तब सत्ता की समझ में आया कि ये ससुरा तो भस्मासुर हो गया. अब कुछ नहीं किया तो सत्ता को ही भस्म कर देगा.
विकास दुबे के एनकाउंटर का मामला सुप्रीम कोर्ट आने से तमाम सफेदपोशों के बीच बेचैनी बढ़ने वाली है
मामले की वर्चुअल सुनवाई करते हुए तीन जजों की बेंच के अगुआ सीजेआई बोबडे ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि हम इस बात से हैरान हैं कि एक व्यक्ति जिसके ऊपर इतने गंभीर मामले है वो जेल से बाहर कैसे आया? और परोल पर बाहर आकर उसने इतने लोगों की हत्या कर दी. कोर्ट की इन टिप्पणियों और सवालों का मतलब साफ है कि 11 नवम्बर 2001 की शाम थाने में घुसकर तब की राजनाथ सिंह सरकार में दर्जा प्राप्त मंत्री संतोष शुक्ला की हत्या गोलियां दाग कर की थी.
बाद में थाने के चश्मदीद पुलिस वाले ही अदालत में मुकर गए कि उन्होंने विकास को गोली चलाते नहीं देखा था. तब अदालत ने भी उनके ही बयान को सही मानते हुए विकास को बरी के दिया था. ये अलग बात है कि आठ पुलिस वालों ने तब मुकर कर विकास को बरी कराया और 19 साल बाद आठ पुलिस वाले विकास और उसके गुर्गों की गोलियों से मारे गए.
पूरे 50 हजार रूपए का इनामी हिस्ट्रीशीटर विकास कॉलेज के प्रिंसिपल, मैनेजर की हत्या का आरोपी भी था लेकिन सरकार, राजनीतिक नेता, पुलिस प्रशासन की लचर व्यवस्था और मजबूत सांठगांठ से या तो बरी होता रहा या फिर जमानत या परोल पर आजाद घूमता रहा. उसकी ये आज़ादी राजनाथ सिंह, मायावती, अखिलेश और योगी सभी की सत्ता में बेरोकटोक चलती रही.
किसी में हिम्मत नहीं हुई की बिल्ली के गले में घंटी बांधे. क्योंकि सब उससे ही अपने काम निकलवाते हुए विरोधियों के काम तमाम करवा रहे थे. बीएसपी ने उसको टिकट देकर चुनाव लगवाया, एसपी के नेताओं ने भी उसे पाल पास कर रखा. इस हमाम में सभी सत्ताधारी कितने नंगे थे इसका खुलासा भी यूपी सरकार की सुप्रीम कोर्ट को भेजी जाने वाली रिपोर्ट में हो ही जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था यानी सिस्टम के फेल होने की टिप्पणी की. तो उसमें न्यायिक व्यवस्था यानी ज्यूडिशियल सिस्टम भी आता है और पुलिस सिस्टम भी. जमानतें किसकी मर्ज़ी से मिलती रहीं? जाहिर है अभियोजन पक्ष ख़ामोश रहा..पुलिस ने नज़रें फेरे रखीं और तराजू वाली देवी की आंखों पर तो साश्वत पट्टी ही बंधी रही.
अब देखना दिलचस्प होगा कि सबसे बड़े न्यायिक मन्दिर में अपने ही महकमे में फेल सिस्टम पर सर्जिकल स्ट्राइक होती है या नहीं. क्योंकि जब हम मुठभेड़ में मारे गए पुलिस वालों की बात करते हैं तो बात उन पुलिस वालों की भी सामने आए जिनकी वजह से ये दुर्दांत अपराधी विकास फलता फूलता रहा. यानी कोर्ट का सवाल यहां भी मौजू है कि 65 मुकदमों में कोई भी अपराध इतना संगीन नहीं माना गया जिसमें उसे परोल पर रिहा करने से किसी भी न्यायिक अधिकारी को आपत्ति होती. सुप्रीम कोर्ट की इस सुप्रीम टिप्पणी के निहितार्थ बहुत दूर तक जाते है.
तभी कोर्ट ने टिप्पणी की की आखिर सभी मामलों में जमानत मिली तभी तो बाहर आया विकास. कोर्ट ने ये सवाल उछालकर योगी सरकार से अब तक निचली अदालतों या हाईकोर्ट से मिले सभी जमानत आदेश और रिपोर्ट मंगलवार तक पेश करने को कहा. मकसद साफ है कि कोर्ट इसके ज़रिए यूपी में विभिन्न दलों की सरकार के समय शासन और प्रशासन के साथ विकास के रिश्तों को भी समझ लेना चाहता है.
आदेश जारी होने के 24 घंटे में रिपोर्ट मांग लेने से सरकारी बाबुओं के पास लीपापोती करने का समय कम होगा. कोर्ट दरअसल ये भी जानना चाहता है कि निचली अदालतों में किस किस की सांठगांठ से विकास को जमानत पर रिहाई के फरमान मिलते रहे? यानी पुलिस, अभियोजन के वकील और माफिया अपराधियों, गैंगस्टर्स और हिस्ट्रीशीटर दुर्दांत मुजरिमों और सत्ताधारी दलों की सियासी आपराधिक सांठगांठ का खेल कब कब कैसे कैसे चला?
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