New

होम -> सियासत

बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 08 जुलाई, 2020 09:09 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
  • Total Shares

विकास दुबे (Vikas Dubey) का मामला एक बेहतरीन ऑल-इन-वन केस स्टडी है. ये यूपी पुलिस (UP police) की ढीली ढाली कार्यप्रणाली की पोल खोल रहा है. ये भी बता रहा है कि पुलिस नाम का सिस्टम किस हद तक जर्जर हालत में पहुंच चुका है - और ये भी अपराध और राजनीति का गठजोड़ कितना खतरनाक होता है. दरअसल, विकास दुबे केस एक तरीके से योगी आदित्यनाथ को आईना दिखाने की कोशिश कर रहा है. ये केस बता रहा है कि कैसे पुलिसतंत्र की ही खामियों का फायदा उठाकर कर कोई अपराधी एक दिन ऐसा भी हो जाता है कि वो पूरे सरकारी अमले को एक पैर पर नचा सकता है.

कानपुर एनकाउंटर से सामने आये विकास दुबे केस ने कोरोना संकट से जूझ रहे यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) को नयी मुश्किल में डाल दिया है. यूपी सरकार प्रवासी मजदूरों को बाहर से लाकर उनके लिए रोजगार के इंतजाम कर रही थी - और साथ ही साथ 2022 की चुनावी तैयारियों में भी लगी हुई थी, लेकिन अचानक से ये मामला सारी चीजें किनारे कर दिया है. ऐसा लगता है जैसे विकास दुबे केस योगी आदित्यनाथ के हाल के सारे किये कराये पर पानी फेर रहा हो.

मुख्यमंत्री लगातार मीटिंग कर रहे हैं और पुलिस के आला अफसरों को फटकार रहे हैं, लेकिन वे अफसर लगता है अब भी उनको यही समझाने में लगे हैं कि यूपी में अपराध (UP Police and Crime) पहले के मुकाबले काफी कम हुआ है.

यही वो प्वाइंट है जो योगी आदित्यनाथ के लिए समझना जरूरी है. अगर फिर से वो अफसरों के झांसे में आ गये तो विकास दुबे भले ही पकड़ा जाये या पुलिस उसका एनकाउंटर कर दे, लेकिन वो बीमारी नहीं खत्म होने वाली जिसके लक्षण विकास दुबे की बदौलत साफ साफ नजर आने लगे हैं. यूपी पुलिस के आला अफसरों की सलाहियत पर ही सही, योगी आदित्यनाथ ने राज्य के कानून व्यवस्था को एनकाउंटर के परदे से ढकने की कोशिश तो की लेकिन परदे के उठते ही सब साफ साफ नजर आने लगा है.

अब तो ये योगी आदित्यनाथ पर ही निर्भर करता है कि वो बीमारी को पाल कर रखना चाहते हैं या फिर सर्जरी कर सूबे को अपराध मुक्त बनाते हैं - अगर ऐसा कुछ कर सके तो मायावती के मुकाबले योगी आदित्यनाथ का कम से कम इस मामले में तो दावा मजबूत हो ही जाएगा.

विकास दुबे की बात और है, लेकिन 'जुर्म यहां कम है...'

जब एडीडी (कानून व्यवस्था) प्रशांत कुमार के प्रेस कांफ्रेंस की जानकारी मीडिया को दी गयी तो लगा जरूर कोई खास बात होगी. ऐसा लगा जैसे यूपी पुलिस विकास दुबे को लेकर निश्चित तौर पर कोई बड़ी और ठोस प्रोग्रेस के बारे में बताएगी - लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं था.

न तो प्रशांत कुमार को मीडिया के सवालों में कोई दिलचस्पी दिखी और न ही ऐसा लगा उनके पास विकास दुबे को लेकर बताने के लिए कुछ था. विकास दुबे गैंग के अमर दुबे के एनकाउंटर में मारे जाने की खबर तो आ ही चुकी थी, लिहाजा एडीजी बताते रहे कि एक जगह चार हजार का इनामी पकड़ा और दूसरी जगह ऐसी ही कार्रवाई हुई. फिर गिनाते रहे कि कैसे पहले के मुकाबले यूपी में अपराध कम हुए हैं. हत्या, लूट, डकैती और महिलाओं से जुड़े अपराधों के आंकड़े भी पेश किये.

एडीजी प्रशांत कुमार की बाते सुन कर ऐसा ही लग रहा था जैसे किसी दौर में बतौर ब्रांड एंबेसडर अमिताभ बताया करते थे - "यूपी में बहुत दम है, क्योंकि जुर्म यहां कम है.”

forensic team at kanpur encounter siteयूपी पुलिस डाल डाल और विकास दुबे पात पात घूम रहा है!

जिस दौर में अमिताभ बच्चन यूपी की कानून व्यवस्था को प्रमोट कर रहे थे, वही वो दौर था जब यूपी पुलिस की कमजोर चार्जशीट के चलते विकास दुबे उस अपराध से बरी हो गया जिसे लेकर आरोप रहा कि उसने थाने के भीतर घुस कर बीजेपी के नेता की गोली मारी थी. तब भी बीजेपी की ही सरकार थी और जिसे गोली मारी गयी उस नेता को राज्य मंत्री का दर्जा मिला हुआ था. जुर्म कहीं बढ़ न जाये इसलिए तब विकास दुबे के बरी होने पर ऊपरी अदालत में अपील भी नहीं की गयी.

जो सवाल मीडिया एडीजी प्रशांत किशोर से जानना चाहता था, अगर योगी आदित्यनाथ भी ऐसा ही करें तो बहुत कुछ संभव है. फरीदाबाद से विकास दुबे कैसे बच कर निकल गया ये तो बाद की बात है, उससे पहले सवाल तो ये है कि यूपी सरकार के LIU यानी स्थानीय खुफिया तंत्र को विकास दुबे के बारे में कुछ भी क्यों नहीं पता चला या वे सब के सब विनय तिवारी और केके शर्मा की तरह ही पुलिस की ड्यूटी निभाते रहे - विनय तिवारी चौबेपुर थाने का और केके शर्मा उस पुलिस चौकी का प्रभारी बताये जाते हैं जिसके इलाके में विकास दुबे का घर आता है. चौबेपुर के सारे पुलिसकर्मियों को लाइनहाजिर कर वहां नये पुलिसकर्मी तैनात कर दिये गये हैं.

यूपी पुलिस अपराध पर काबू पाने के चाहे जितने और जैसे भी दावे करे, सच तो ये है कि विकास दुबे को पकड़ने के नाम पर अब भी अंधेरे में ही हाथ पैर मार रही है. जहां तक कुछ ठोक काम की बात है, तो यूपी पुलिस 5 दिन में विकास दुबे के सिर पर इनाम की राशि वैसी ही बढ़ाती नजर आयी है जैसे कोरोना संक्रमण के आंकड़े हों - महज पांच दिन में विकास दुबे पर इनामी राशि 50 हजार से पांच लाख हो चुकी है. समझना, मुश्किल नहीं है पुलिस का अपना नेटवर्क नाकाम हो चुका है और वो दूसरे सोर्स से किसी ऐसी मदद की उम्मीद लगाये बैठी है.

'मुखबिरों' की शिनाख्त बेहद जरूरी है

यूपी पुलिस को फिलहाल दो ही काम करने की जरूरत है - एक, अपने मुखबिरों का नेटवर्क दुरूस्त करे - और दो, अपने यहां छिपे अपराधियों के मुखबिरों की जल्द से जल्द शिनाख्त कर उन्हें थाने की हवालात में रखने के बाद जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाये. ये काम जितना जल्दी हो सकेगा, उतना ही बेहतर है.

निलंबित सब इंस्पेक्टर विनय तिवारी को हिरासत में लेकर एसटीएफ पूछताछ कर रही है - और एसटीएफ के डीआईजी अनंत देव को हटा दिया गया है जो उससे पहले कानपुर के एसएसपी हुआ करते थे. कानपुर के एसएसपी रहते डीआईजी पर उनकी भूमिका पर संदेह जताया गया है. एक वायरल ऑडियो और चिट्ठी में मुठभेड़ में जान गंवा चुके डीएसपी देवेंद्र मिश्र की शिकायत के बावजूद विनय तिवारी पर कार्रवाई न करना सवाल तो खड़े करता ही है.

विनय तिवारी भी उसी टीम का हिस्सा थे जो विकास दुबे के घर आधी रात को दबिश देने गयी थी और एसटीएफ को शक है कि उस दारोगा ने ही पुलिस के खिलाफ मुखबिरी की होगी. एसटीएफ ने विकास दुबे का फोन सर्विलांस पर डाला है और एनकाउंटर से पहले के 24 घंटे के कॉल रिकॉर्ड से पता चला कि विनय तिवारी के फोन से भी बात हुई थी.

एनकाउंटर के अगले दिन से ही विनय तिवारी एसटीएफ की नजर में चढ़ गये थे और फिर उनसे पूछताछ चलती रही - सवाल तो उठता ही है कि कैसे डीएसपी सहित 8 पुलिस कर्मी ड्यूटी पर जान गंवा बैठे और कई बुरी तरह घायल भी हो गये, लेकिन विनय तिवारी को खरोंच तक नहीं आयी.

बड़ा सवाल तो ये है कि ऐसे कितने विनय तिवारी पुलिस महकमे में रहकर सरकारी तनख्वाह लेते हुए भी अपराधियों के लिए काम कर रहे हैं?

पुलिस सूत्रों के जरिये जांच से जुड़ी आ रही खबरें बताती हैं कि विकास दुबे ने पत्नी रिचा पहले से ही बता रखा था कि वो मोबाइल पर देखती रहे कि गांव में क्या चल रहा है. पता चला है कि विकास दुबे के बिकरू गांव वाले घर में आठ सीसीटीवी कैमरे लगे थे और ये सभी विकास और रिचा दोनों के मोबाइल से कनेक्ट थे.

विकास को डर था कि छापे के दौरान पुलिस उसका एनकाउंटर भी कर सकती है. ये सोच कर विकास ने पत्नी रिचा को कह रखा था कि अगर उसे खतरे की आशंका हो तो वो अपने लोगों और कुछ अफसरों और जान पहचान वाले नेताओं को मैसेज दे दे - मौके की नजाकत को देखते हुए खुद भी भाग जाये. मालूम हुआ है कि 2017 में भी जब एसटीएफ विकास दुबे को गिरफ्तार किया था, तब भी रिचा ने सोशल मीडिया पर वीडियो फुटेज ये कहते हुए डाले थे कि विकास का एनकाउंटर किया जा सकता है.

अंकुर नाम से फरीदाबाद के होटल में ठहरे विकास दुबे के पुलिस के पहुंचने से फरार हो जाने के बाद ये शक तो बढ़ता ही जा रहा है कि कोई तो है जो विकास दुबे की लगातार मदद कर रहा है. ये कोई एक भी हो सकता है और कई भी हो सकते हैं. ये कोई, कोई और नहीं घर का ही भेदी है क्योंकि जब पूरी पुलिस फोर्स के लिए विकास दुबे तक पहुंचना नाक का सवाल बन गया हो तो बाहरी किसी के लिए तो जानकारी जुटाना भी मुश्किल होगा - नाम भले ही ऐसे लोगों के कुछ और हों लेकिन काम तो विनय तिवारी जैसा ही लगता है.

फरीदाबाद से ही एक सीसीटीवी फुटेज में काली शर्ट पहने बैग लिये एक शख्स को देखा गया है. मिठाई की दुकान के पास लगे सीसीटीवी फुटेज से पता चलता है कि वो काफी देर तक सड़क पर खड़ा रहा है और फिर खिसक लिया है. शायद उसे सीसीटीवी कैमरे का पता चल जाता है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, विकास ऑटो रोकता है लेकिन दो ऑटो वाले बगैर रुके निकल जाते हैं, फिर तीसरा ऑटो आता है और वो उसमें बैठ कर चला जाता है.

विकास दुबे कदम कदम पर पुलिस को ही चकमा नहीं दे रहा है, बल्कि पूरे सिस्टम को चिढ़ा रहा है कि किसका नेटवर्क मजबूत है - कैसे उसे बचाने की होड़ मची हुई है. शायद वे सभी एक्टिव हैं जिनके पास विकास की पत्नी रिचा के मैसेज पहुंचे होंगे.

यूपी पुलिस के एडीजी ने आंकड़ों के जरिये अपराध कम होने के दावे के बीच ये भी कहा कि कुल मिलाकर शासन की जो अपेक्षाएं हैं उन पर पुलिस ने अपना काम बहुत ही निष्ठा इमानदारी से किया है. अगर यूपी पुलिस इसी बात से खुश है और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी यही बात खुशी देती है तो बात और है, लेकिन योगी आदित्यनाथ के लिए कोरोना संकट की ही तरह विकास दुबे केस में भी एक बड़ा मौका है. ठीक वैसा ही मौका जिसकी आज कल कोरोना संकट के दौर में बात होती आ रही है.

एसटीएफ को लेकर योगी आदित्यनाथ को बहुत फिक्र करने की जरूरत नहीं है. एसटीएफ ने अपने पहले ही ऑपरेशन में कामयाबी हासिल कर ली थी जिसके लिए इसका गठन हुआ था - श्रीप्रकाश शुक्ला का एनकाउंटर. जिसके बारे में किस्सा है कि उसने तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की ही सुपारी ले रखी थी.

जरूरी बस ये है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एसटीएफ से वैसे अफसरों और पुलिसकर्मियों को जरूर बाहर कर दें जो संदेह के दायरे में आ रहे हों. वैसे सवाल खड़े होने पर एसटीएफ के डीआईजी अनंत देव के खिलाफ पहले ही ऐसा एक्शन हो चुका है. फिर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उस नेटवर्क के खात्मे में जुटें जो विकास दुबे जैसों को पनपने का ही मौका नहीं देता, बल्कि साल दर साल ऐसे अपराधियों को पालता पोसता भी है.

एसटीएफ तो विकास दुबे को ढूंढ ही लाएगी, बेहतर होता योगी आदित्यनाथ एसटीएफ को उन सभी के पीछे लगा देते जो बीजेपी सरकार और यूपी पुलिस को ऐसे मोड़ पर ला खड़ा किया है - भले ही उनमें कोई 'माननीय' भी क्यों न हों!

इन्हें भी पढ़ें :

योगी आदित्यनाथ के लिए सबक- अपराध एनकाउंटर से खत्म नहीं होता

Kanpur Kand करने वाले Vikas Dubey ने उन्हीं को डसा जिन्होंने उसे भस्मासुर बनाया

कौन है विकास दुबे, जो यूपी के 8 पुलिस कर्मियों की हत्या कर बच निकला

#विकास दुबे, #यूपी पुलिस, #कानपुर एनकाउंटर, Vikas Dubey Surrender Or Encounter, Yogi Adityanath UP Police, ADG Prashant Kumar

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय