सिर्फ खाट नहीं बल्कि कांग्रेस की बची-खुची साख लुटी है !
कांग्रेस को यह समझना और स्वीकारना चाहिए कि चुनाव पीआर एजेंसी के दम से नहीं, नेतृत्व की लोकप्रियता और जन-जुड़ाव की क्षमता से जीते जाते हैं.
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इसमें कोई विवाद नहीं कि कांग्रेस इस वक़्त अपने सबसे बुरे राजनीतिक दौर से गुजर रही है. देश से लेकर राज्यों तक हर जगह जनता द्वारा लगातार उसे खारिज होना पड़ा है. इन लगातार मिली विफलताओं से हताश कांग्रेस ने आगामी यूपी चुनाव के मद्देनजर सफल चुनावी रणनीतिज्ञ माने जाने वाले प्रशांत किशोर की पीआर एजेंसी को यूपी में अपने प्रचार की जिम्मेदार सौंपी है.
अब प्रशांत किशोर ने कांग्रेस को यूपी के लोगों से जमीनी तौर पर जोड़ने के उद्देश्य से प्रेरित होकर अपनी रणनीतियों के क्रम में 'खाट पर चर्चा' नामक एक संवाद कार्यक्रम की शुरुआत की, जिसमे कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी खाट पर बैठकर लोगों से संवाद करेंगे. इस कार्यक्रम की शुरुआत पूर्वी यूपी के देवरिया जिले से की गई और इसके लिए हजारों खाटें देवरिया पहुंच गईं. पूरी व्यवस्था की गई. फिर राहुल गांधी पहुंचे और कार्यक्रम हुआ. खबरों की मानें तो कार्यक्रम में लोगों की उपस्थिति कांग्रेस की अपेक्षानुसार नहीं रही, लेकिन मजे की बात ये हुई कि जितने भी लोग थे, उनमें से तमाम लोग कार्यक्रम खत्म होते-होते खाट की लूट मचा दिए. मतलब कि जिसके हाथ खाट लगी, वो उसे लेकर घर रवाना होने की फिराक में लग गया.
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लोग खाट लूट कर ले गए |
इन सब में ऐसी भगदड़ मची कि कुछ खाटें टूटीं, कुछ लोग लेकर निकल गए और पूरे कार्यक्रम का बंटाधार हो गया. प्रशांत किशोर की रणनीति और कांग्रेस की मंशा तो इस खाट पर चर्चा कार्यक्रम के जरिये यूपी के लोगों की भावनाओं को अपनी राजनीति के लिए उपयोग करना था, पर यह दाव एकदम उल्टा पड़ गया. अंततः यह खाट पर चर्चा कार्यक्रम 'खाट पर खर्चा' भर होकर रह गया. इसे लेकर तरह की कवितायें और चुटकुले सोशल मीडिया पर फैल रहे हैं. कुल मिलाकर इस खाट पर चर्चा कार्यक्रम के बाद कांग्रेस की बुरी तरह से किरकिरी हो रही है. कहना गलत न होगा कि ये सिर्फ खाटें ही नहीं लुटी हैं, इनके साथ कांग्रेस की बची-खुची साख भी लुट गई है.
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सोशल मीडिया पर हुई फजीहत |
दरअसल कांग्रेस को यह समझना और स्वीकारना चाहिए कि चुनाव पीआर एजेंसी के दम से नहीं, नेतृत्व की लोकप्रियता और जन-जुड़ाव की क्षमता से जीते जाते हैं. यह चीज कांग्रेस के मौजूदा नेतृत्व यानी राहुल गांधी में फिलहाल दूर-दूर तक नहीं दिखती. उनमें राजनीतिक परिपक्वता का भी घोर अभाव है. अब ऐसे नेतृत्व को लेकर अगर चुनाव में उतरेंगे तो दुनिया की सबसे बेहतरीन पीआर एजेंसी भी आपको चुनाव नहीं जीता सकेगी. इसलिए कांग्रेस जबतक परिवारवाद, अक्षम नेतृत्व और कमजोर हो चुकी सांगठनिक शक्ति जैसी स्वयं की आतंरिक समस्याओं से निजात नहीं पा लेती, राजनीतिक पतन ही उसकी नियति है.
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