दार्जिलिंग हिंसा: भाषा तो एक बहाना है
गोरखा जनमुक्ति मोर्चे से जुड़े लोगों का मानना है कि पहले बंगाल की मार्क्सवादी सरकार ने उत्तर बंगाल के इस क्षेत्र की हमेशा अनदेखी की और अब तृणमूल कांग्रेस भी वही कर रही है.
-
Total Shares
दार्जिलिंग में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (गोजमुमो) लगभग पिछले एक महीने से लगातार प्रदर्शन कर रहा हैं. दरअसल राज्य निर्वाचन आयोग ने 14 मई 2017 को नगर निगम चुनाव के परिणाम घोषित किए. जिसमें परिणाम तृणमूल के पक्ष में रहे, गोरखा जनमुक्ति मोर्चा को आंशिक सफलता मिली. पिछले 30 सालों में ऐसा पहली बार हुआ जब मैदानी इलाके की किसी पार्टी को यहां जीत मिली. गोरखा जनमुक्ति मोर्चा से यह हार बर्दाश्त नहीं हुई और उसने ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ लड़ाई का ऐलान कर दिया, जो कि लगातार चल रहा था.
विरोध ने लिया हिंसक रूप
इसी बीच मई 16 को राज्य के शिक्षा मंत्री ने घोषणा की थी कि आईसीएसई और सीबीएसई से संबद्ध स्कूलों सहित राज्य के सभी स्कूलों में छात्रों का बंगाली भाषा सीखना अनिवार्य किया जाएगा. शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी ने कहा कि अब से छात्रों के लिए स्कूलों में बंगाली सीखना अनिवार्य होगा. हालांकि ममता बनर्जी ने साफ किया कहा है कि बांग्ला भाषा को स्कूलों में अनिवार्य विषय नहीं बनाया गया है.
यहीं से शुरू हुआ गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के प्रदर्शन का दौर. गोरखा जनमुक्ति मोर्चा ने तृणमूल कांग्रेस पर 'फूट डालो राज करो की नीति' के तहत दार्जिलिंग की शांतिभंग करने की कोशिश का आरोप लगाया. प्रदर्शनकारी स्कूलों में बांग्ला भाषा लागू किये जाने का विरोध समेत कई मुद्दों को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं, जो अब हिंसक हो चुका है. गुरुवार को जब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने पूरे मंत्रिमंडल के साथ दार्जिलिंग में मौजूद थीं, गोरखा जनमुक्ति मोर्चा को यही समय उपयुक्त लगा और हिंसा को अंजाम दे दिया. गौरतलब है कि चार दशक बाद बंगाल की किसी मुख्यमंत्री ने दार्जिलिंग के मॉल इलाके में स्थित राजभवन में अपने मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई थी.
स्कूलों में बांग्ला भाषा लागू किये जाने का विरोध
दरअसल हिंसा की बुनियादी जड़ रहा ममता का वह ट्वीट जिसमें उन्होने लिखा था कि दशकों बाद इस क्षेत्र में एक नए युग की शुरुआत हुई है. तृणमूल कांग्रेस ने राज्य में पहली बार पहाड़ी क्षेत्र में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के एक दशक लंबे एकाधिकार को खत्म कर दिया है.
इसी बीच बांग्ला व बांग्ला भाषा बचाओ कमिटी के सुप्रीमो डॉ मुकुंद मजूमदार ने एक विवास्पद बयान देकर हिंसा को बढ़ाने में आग में घी का काम किया. उन्होंने कहा बंगाल में रहना है तो बांग्ला सीखना और बोलना होगा. बांग्ला भाषा व संस्कृति को अपनाना होगा. इधर जीजेएम ने शुक्रवार को दार्जिलिंग बंद का आह्वान किया है और पर्यटकों से भी दार्जिलिंग छोड़ने को कहा गया है.
दार्जिलिंग गोरखा पर्वतीय परिषद की असफलता में से उपजा गोरखा जनमुक्ति मोर्चा पृथक गोरखा प्रदेश (गोरखालैंड) के लिए आंदोलनरत है. गोरखा जनमुक्ति मोर्चे से जुड़े लोगों का मानना है कि पहले बंगाल की मार्क्सवादी सरकार ने उत्तर बंगाल के इस क्षेत्र की हमेशा अनदेखी की. और अब तृणमूल कांग्रेस भी वही कर रही है- न विकास, न रोजगार. अलग पहचान के लिए इस पीड़ा से आहत दार्जिलिंग के गोरखा समाज ने आंदोलन की राह पकड़ी है.
ये भी पढ़ें-
मकसद सिर्फ बीजेपी को रोकना नहीं, ममता भी विपक्ष मुक्त सत्ता चाहती हैं
जीत के जोश से भरपूर ममता बनर्जी का अब नया रूप देखने को मिलेगा
आपकी राय