ऐसा क्यों लग रहा है कि वीके सिंह सच बोल रहे हैं
केन्द्रीय मंत्री वी के सिंह ने लगाया है कि असहिष्णुता का मुद्दा चुनाव के लिए टेलरमेड था और इसकी जबरदस्त फंडिंग की गई थी. अब इतना तो साफ है कि वी के सिंह के पास इस बात को साबित करने के लिए कोई तथ्य नहीं होगा, फिर भी ऐसा लगता है कि वो जो कुछ कह रहे हैं वह सच है.
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बिहार में दो महीनों तक चले चुनावी घमासान के बाद बीजेपी को उम्मीद से उलट करारी हार मिली. अब विश्लेसषण जारी है. इसी कड़ी में केन्द्रीय मंत्री और पूर्व सेना प्रमुख जनरल वीके सिंह का नया बयान देखिए. सिंह साहेब का कहना है कि चुनावों के दौरान असहिष्णुता का मुद्दा पार्टी के चालाक विरोधियों ने भारी भरकम रकम खर्च करके उठाया. अन्यथा, देश में असहिष्णुता का कोई मुद्दा है ही नहीं.
देखा जाए तो जनरल साहेब की बातों में दम तो है. लेकिन क्या अपने पुराने बयानों कि तरह एक बार फिर वीके सिंह का यह महज बड़बोलापन है या फिर वाकई उनके पास ऐसा कोई साक्ष्य है जो कि उनकी बात में निहित दो पहलू में किसी एक को साबित कर सके. मसलन, पहला कि असहिष्णुता का स्वांग रचने वाले किस चालाक विरोधी की बात वीके सिंह कर रहे हैं. दूसरा, यदि भारी-भरकम रकम खर्च हुई है तो क्या ऐसा कोई मनी ट्रेल उनके संज्ञान में है जिसकी जांच की जा चुकी है अथवा कराई जा सके.
हो सकता है कि ऐसा कोई सबूत उनके पास न हो. लेकिन एक सच्चाेई से हम सभी अवगत हैं और शायद सहमत भी होंगे. पिछले ढाई महीनों के दौरान जिन बातों पर घमासान बचा और सोशल मीडिया में जो मुद्दे ट्रेंड करते रहे, वे पिछले दस दिनों से अचानक गायब हैं. मुद्दे जैसे, बीफ, असहिष्णुेता, अवार्ड वापसी, दाल की कीमत आदि.
अब इस बात को समझने के लिए बिहार चुनाव की टाइमलाइन ही देख लीजिए. बिहार में पांच चरणों वाले विधानसभा चुनाव की शुरुआत 12 अक्टूबर को हुई और अंत 5 नवंबर को. वहीं दादरी की घटना अक्टूबर के पहले हफ्ते में हुई. असहिष्णुता के डिबेट में दादरी अहम इसलिए है क्योंकि इस घटना के बाद ही सोशल मीडिया के साथ-साथ इलेक्ट्रॉ निक और प्रिंट मीडिया में यह अहम चर्चा का विषय बना. यूपी के इस गांव की यह घटना पूरे देश में मानो सबसे गंभीर चुनौती बनकर उभरी. कर्नाटक में कलबुर्गी, महाराष्ट्रघ में दाभोलकर हत्याेकांड को भी इसी से जोड़कर अवार्ड लौटाए जाने लगे. एक-एक कर 20 दिनों में 40 से ज्यादा साहित्कार और 1 दर्जन से ज्यादा फिल्मकारों ने अपना-अपना पुरस्कार लौटाने की घोषणा कर दी.
इन सभी घटनाओं से पूरे देश ही नहीं दुनिया में यह संदेश जाने लगा कि मोदी सरकार बनने के बाद से देश में कम्युनल शक्तियां हावी हैं और समाज में खतरनाक प्रवृत्ति पैदा हो रही है.
इस बीच बिहार की वोटिंग प्रक्रिया को पूरा कर लिया गया और 8 नवंबर को आए नतीजों ने मोदी-शाह का बिहार फतेह करने का सपना भी चकनाचूर कर दिया. लेकिन, नतीजों के साथ-साथ एक और खास बात देखने को मिली. 5 नवंबर को हुए आखिरी चरण की पोलिंग के बाद सोशल मीडिया, मेनस्ट्रीम मीडिया, राजनीतिक हल्कों समेत पूरे देश से असहिष्णुता की बातें जैसे गायब हो गईं.
अब वीके सिंह का आरोप कितना सही है, कितना गलत. लेकिन, इसे एकदम नकारा भी नहीं जा सकता.
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