वसीम रिजवी की बातों को मुनव्वर फारूकी समझकर भूल जाइए
यूपी शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष वसीम रिजवी (Wasim Rizvi) ने सनातन यानी हिंदू धर्म (Hindu Dharma) अपना कर मजहबी दुनिया में बवाल मचा दिया है. वसीम रिजवी से जितेंद्र नारायण त्यागी बनने के बाद उनको गिरफ्तार करने के लिए ट्विटर पर कैंपेन चलाया जा रहा है. आरोप है कि जितेंद्र नारायण त्यागी ने मुसलमानों (Muslim) की मजहबी भावनाएं आहत की हैं.
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यूपी शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष वसीम रिजवी (Wasim Rizvi) ने सनातन यानी हिंदू धर्म अपना कर मजहबी दुनिया में बवाल मचा दिया है. वसीम रिजवी से जितेंद्र नारायण त्यागी बनने के बाद उनको गिरफ्तार करने के लिए ट्विटर पर कैंपेन चलाया जा रहा है. आरोप है कि जितेंद्र नारायण त्यागी ने मुसलमानों की मजहबी भावनाएं आहत की हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो इस्लाम से जुड़ी भावनाओं को आहत करने के लिए नए-नए हिंदू बने जितेंद्र नारायण त्यागी (वसीम रिजवी) के खिलाफ ट्विटर पर लोगों ने 'हाउज द जोश' टाइप का माहौल बना दिया है. मजहब के खिलाफ बातों के लिए 'तहफ्फुज-ए-नामूस-ए-रिसालत' यानी पैगंबर मोहम्मद साहब के संदेश के सम्मान की सुरक्षा के लिए मुसलमानों से जितेंद्र त्यागी को लेकर उनकी बेदारी यानी जागरूकता का सबूत देने की मांग की जा रही है. वैसे, ये जागरूकता कहां तक पहुंचेगी, इसका अंदाजा लगाना थोड़ा मुश्किल है. लेकिन, यहां चौंकाने वाली बात ये है कि देश का लिबरल समाज इस पूरे मामले पर चुप्पी साधे हुए है.
वसीम रिजवी के मामले पर देश का लिबरल समाज चुप्पी साधे हुए है.
दरअसल, पूरा देश पूछ रहा है कि अभिव्यक्ति की आजादी के लिए लिबरल समाज क्या-क्या नहीं करता है. मतलब स्टैंड अप कॉमेडियन मुनव्वर फारूकी को ही ले लीजिए. अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर उनके शो कैंसिल होने पर उनके लिए सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफॉर्म पर कई-कई बीघा की पोस्ट लिखी गईं. पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी के महाराष्ट्र में लगाए गए 'दरबार' में फरियादी बनकर पहुंची एक्ट्रेस स्वरा भास्कर ने कहा था कि दक्षिणपंथियों यानी राइट विंग की ओर से जानबूझकर कर मुनव्वर फारूकी, अदिति मित्तल, अग्रिमा जोशुआ जैसे स्टैंडअप कॉमेडियन्स को निशाना बनाया जा रहा है. स्वरा भास्कर ने मुनव्वर फारूकी का दर्द साझा करते हुए कहा था कि उसे धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोप में एक महीना जेल में बिताना पड़ा. सिविल सोसाइटी के इस इवेंट में लिबरल समाज के सैकड़ों लोग शामिल हुए थे. लेकिन, मुनव्वर फारूकी के लिए गला फाड़ने वाले ये लिबरल समाज के लोग वसीम रिजवी के मामले पर संविधान से मिलने वाले अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार की बात करना भी गंवारा नहीं समझ रहे हैं.
फारुकी को डिफेंड करना है, तो वसीम को भी कीजिए
एक बहुत छोटी सी बात है कि जिस संविधान ने मुनव्वर फारूकी को अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर भगवान राम और सीता से जुड़े अश्लील मजाक करने और गोधरा में जिंदा जला दिए गए कारसेवकों की मौत का माखौल उड़ाने की छूट दी है. उसी संविधान से वसीम रिजवी को भी वही अधिकार मिले हुए हैं. अब अगर देश का लिबरल समाज मुनव्वर फारूकी के लिए इतने पुरजोर तरीके से आवाज उठा रहा है, तो अभिव्यक्ति की आजादी के ये स्वर जितेंद्र नारायण त्यागी के लिए भी कमजोर नहीं होने चाहिए. क्योंकि, भारत का संविधान सभी लोगों के साथ समानता का व्यवहार करने के लिए भी बाध्य करता है. इसके अनुसार धर्म, जाति, पंथ, मजहब जैसी चीजों के आधार पर भेद नहीं किया जा सकता है. अगर लिबरल समाज मुनव्वर फारुकी को डिफेंड कर रहा है, तो उसे वसीम रिजवी को भी डिफेंड करना चाहिए. इससे देशभर में न केवल अभिव्यक्ति की आजादी, बल्कि समानता के अधिकार की लड़ाई को भी बल मिलेगा.
Comedian Munawar Farooqi, Who Regularly Mocks Hindu Gods, Dragged To Police Station During Indore Show. Watch this video, is this is a comedy? Govt should have to take strict action against these type of secular comedians. #एमपी_में_रामराज pic.twitter.com/NraleTZ3fC
— ɅMɅN DUВEY (@imAmanDubey) January 2, 2021
वसीम की बातों से तनाव हो, तो फारुकी समझकर भूल जाइए
माना जा सकता है कि वसीम रिजवी उर्फ जितेंद्र नारायण त्यागी ने अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर बहुत कुछ विवादास्पद किया और कहा है. लेकिन, उनकी इन बातों पर मजहब के कुछ कट्टरपंथी लोग ही इतने आक्रोशित तरीके से रिएक्शन दे रहे हैं. इस्लाम को मानने वाले एक बड़ा हिस्सा जो कट्टरपंथी विचारों से इत्तेफाक नहीं रखता है, वह वसीम रिजवी की बातों को इग्नोर कर रहा है. ठीक उसी तरह, जिस तरह स्टैंड अप कॉमेडियन मुनव्वर फारूकी की हिंदू देवी-देवताओं के नाम लेकर गाली-गलौज वाली भाषा के साथ 'जोक' क्रैक करने को बहुसंख्यक हिंदू वर्ग का एक बड़ा हिस्सा इग्नोर करता है. कुछ कट्टरपंथी हिंदुओं के लिए लोगों को तनाव नहीं लेना चाहिए. इस्लाम और हिंदू धर्म के कुछ कट्टरपंथियों की वजह से लिबरल समाज अगर अभिव्यक्ति की आजादी के लिए आवाज नहीं उठाएगा, तो कौन उठाएगा? वैसे, अगर वसीम रिजवी की बातों से ज्यादा तनाव हो, तो उन्हें मुनव्वर फारुकी समझकर भूलने की अपील की जा सकती है. इतना तो हक उनका भी बनता है.
Hyderabad: Former Congress Candidate and Leader Mohd Feroz Khan places ₹50 lkh bounty on #WasimRizvi haed pic.twitter.com/RZdZCFlzlZ
— MeghUpdates?™ (@MeghBulletin) December 6, 2021
फ्रीडम ऑफ स्पीच के ब्रांड एम्बेसेडर चुनने में सावधानी बरतें
वसीम रिजवी के अब तक के विवादों को देखकर इतना तो कहा ही जा सकता है कि उन्होंने कम से कम इस बात का ख्याल रखा कि उनकी बातों से किसी दूसरे धर्म की भावनाएं आहत न हों. वहीं, मुनव्वर फारूकी जैसे स्टैंड अप कॉमेडियन दूसरे धर्मों पर टिप्पणी कर ही खुद को फेमस करना चाहते हैं. दरअसल, भारत के बहुसंख्यक हिंदू वर्ग से हमेशा से ही ये आशा की जाती है कि वह अपने धर्म या देवी-देवताओं के मजाक पर बड़ा दिल दिखाते हुए सहिष्णुता का प्रदर्शन करे. लोगों को समझना चाहिए कि सहिष्णुता का वटवृक्ष केवल पानी देने से मजबूत नहीं होता है. उसे मजबूत करने के लिए खाद की भी जरूरत होती है. वैसे, हिंदू देवी-देवताओं के नाम लेकर गाली-गलौज वाली भाषा के साथ 'जोक' क्रैक करना बिल्कुल अभिव्यक्ति की आजादी मानी जा सकती है. अगर वसीम रिजवी की कही बातों को भी फारूकी वाले पलड़े पर ही तौला जाए. लेकिन, भारत में ऐसा हो नहीं सकता है. तो, अभिव्यक्ति की आजादी के ब्रांड एम्बेसेडर चुनने में सावधानी बरतें. क्योंकि, हर मुनव्वर फारुकी के बाद एक वसीम रिजवी का अवतार होता है.
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