New

होम -> सियासत

 |  4-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 15 सितम्बर, 2016 04:50 PM
संतोष चौबे
संतोष चौबे
  @SantoshChaubeyy
  • Total Shares

चीन के रणनीतिकार और विचारक अब चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) पर सवाल खड़े कर रहे हैं. ये देखते हुए कि 3000 किलोमीटर से ज्यादा लंबे इस कॉरिडोर का बहुत बड़ा हिस्सा अशांत इलाकों से होकर गुजरता है, ये चिंता जायज भी है.

china650_091516033736.jpg
 3000 किलोमीटर से ज्यादा लंबे इस कॉरिडोर का बहुत बड़ा हिस्सा अशांत इलाकों से होकर गुजरता है

ग्लोबल टाइम्स, जो चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी का आधिकारिक समाचार पत्र है, में प्रकाशित एक विश्लेषण के मुताबिक सुरक्षा की बढ़ती लागत सीपीईसी प्रोजेक्ट्स के कार्यान्वयन में एक बड़ी बाधा साबित हो रही है. विश्लेषण के मुताबिक चीन को सीपीईसी के बजाय धीरे धीरे अपना ध्यान साउथ-ईस्ट एशियाई देशों पर केंद्रित करना चाहिए जहां विशाल बुनियादी ढांचे को विकसित करने की जरूरत है. लेख के मुताबिक साउथ-ईस्ट एशियाई देशों में स्थिर क्षेत्रीय और राजनीतिक संतुलन सीपीईसी के बजाय ज्यादा बड़ा अवसर प्रदान कर सकता है.  

दुनिया जानती है कि चीन के समाचार पत्रों में या चीन की मीडिया में बिना कम्युनिस्ट पार्टी की सहमति के कुछ भी प्रकाशित नहीं हो सकता. ग्लोबल टाइम्स में या चीन के दूसरे मीडिया प्लेटफॉर्मों पर इस समय सीपीईसी पर काफी बड़ी बहस चल रही है और सीपीईसी प्रोजेक्ट्स की सुरक्षा चिंताएं और बढ़ती लागत उनमें मुख्य हैं.  

ये भी पढ़ें- भारत-चीन के चक्कर में पाकिस्तान फंस गया है, बलूचिस्तान तो बहाना है!

सीपीईसी 2013 में प्रस्तावित किया गया था और इसी साल मई में चीन और पाकिस्तान के बीच इस पर द्विपक्षीय समझौता हुआ है. 75 बिलियन डॉलर के इस प्रोजेक्ट की अनुमानित अवधि 15 वर्ष है और इसके अन्तर्गत बलोचिस्तान के ग्वादर पोर्ट से चीन के शिनजियांग प्रान्त तक एक आर्थिक क्षेत्र विकसित करने की योजना है. सीपीईसी की शुरुआत बलोचिस्तान में ग्वादर पोर्ट से होती है और दुनिया जानती है कि पूरा बलोचिस्तान अशांत क्षेत्र है और वर्षों से बलोच लोग पाकिस्तान से आजादी की मांग कर रहे हैं और इसके लिए आंदोलनरत हैं. सीपीईसी बड़ा हिस्सा पाक-अधिकृत-कश्मीर और गिलगित और बल्तिस्तान से गुजरना प्रायोजित है जो की विवादित क्षेत्र है और भारत उसे अपना हिस्सा मानता है. और तो और, गिलगित-बल्तिस्तान के धार्मिक दल तो पाकिस्तान की सेना से अपनी भूमि खाली करने की मांग कर रहे हैं. पाकिस्तानी पंजाब के आलावा और जितने भी राज्यों से सीपीईसी को गुजरना है उनका मानना है कि सीपीईसी की योजना ऐसे बनाई गई है कि उनकी कीमत पर पंजाब को लाभ पहुंचे और इस लिए इस कॉरिडोर का राजनीतिक विरोध भी हो रहा है. 

और फिर आतंकी दलों की धमकियां हैं 

टीटीपी और दूसरे तालिबानी धड़ों ने और अल कायदा ने सीपीईसी पर हमला करने और उसे नुकसान पहुंचाने की धमकी दी है. पाकिस्तान के आतंकवादी समूह चीन के उइगुर मुस्लिमों के अलगाववादी आंदोलन का समर्थन करते हैं जिसको चीन ने बेरहमी से कुचल दिया है. दमन का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उइगुर मुस्लिमों को रोजा रखने की भी इजाजत नहीं है.  

हालात कितने गंभीर हैं इसका पता इस बात से चलता है कि पाकिस्तान ने 15000 जवानों का एक विशेष सुरक्षा बल सीपीईसी के लिए बनाया है जो वहां कार्यरत 7000 चीनी वर्करों की सुरक्षा में तैनात है. ये तब है जब के सीपीईसी की अभी शुरुआत ही हुई है. जैसे जैसे सीपीईसी का दायरा बढ़ेगा, वैसे वैसे सुरक्षा का ये भारी-भरकम तंत्र और भी बड़ा करना होगा. और उसके बाद भी एक बड़ा आतंवादी हमला कॉरिडोर को समय से काफी पीछे धकेल सकता है.  

ये भी पढ़ें- भारत ने अरुणाचल प्रदेश में तैनात कीं ब्रह्मोस मिसाइलें, क्यों चिढ़ा चीन?

चीनी रणनीतिकारों की चिंता भारत की बदली हुई नीति से भी बढ़ गयी है जबसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि भारत बलोचिस्तान और पाक-अधिकृत-कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघन का मुद्दा वैश्विक स्तर पर उठाएगा और पाकिस्तान से अब जब भी बात होगी तो वो पाक-अधिकृत-कश्मीर और पाक प्रायोजित आतंकवाद पर होगी. अभी भारत ने कल ही संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद् में बलोचिस्तान और पाक-अधिकृत-कश्मीर में मानवाधिकार हनन का मामला उठाया है और पाकिस्तान को करारा जवाब दिया है जो कश्मीर में जारी अशांति पर अपनी रोटी सेंकने की कोशिश कर रहा है. भारत ने चीन से भी पाक-अधिकृत-कश्मीर को सीपीईसी प्रोजेक्ट्स के दायरे से बाहर रखने को कहा है.   

अगर हम इन सब परिस्थितियों के सन्दर्भ में सीपीईसी की आर्थिक व्यवहार्यता और संभावनाएं देखें तो आगे का रास्ता काफी मुश्किल दिखाई देता है और यही चीन के रणनीतिकारों की चिंता भी है.

लेखक

संतोष चौबे संतोष चौबे @santoshchaubeyy

लेखक इंडिया टुडे टीवी में पत्रकार हैं।

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय