अखिलेश यादव ये कैसा समाजवाद ला रहे हैं? मौका है, संभल जाइए...
आजकल की राजनीति के दौर में पार्टी के बड़े नेताओं के सामने अपने नंबर बढ़ाने की होड़ में कार्यकर्ता कई बार सीमाओं को लांघ जाते हैं. एक शोकाकुल परिवार से मिलने पहुंचे अखिलेश यादव की उसी जगह आवभगत करने का इंतजाम चापलूसी की पराकाष्ठा को को दर्शाता है. कार्यकर्ताओं में भरा यही बेलगाम जोश राजनीतिक दलों के लिए हानिकारक होता है और नेताओं के लिए भी.
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काजू भुने हैं प्लेट में, बिसलेरी है पास में...
उतरा है समाजवाद आज, गरीब के निवास पे...
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव 26 फरवरी को पुलिस हिरासत में मारे गए एक युवक के परिवार से मिलने जौनपुर पहुंचे थे. इस दौरान अखिलेश यादव की आवभगत में भुना काजू और बिसलेरी पानी की बोतल जैसी अन्य खाने-पीने का सामान रखा गया था. यूपी में समाजवाद के नाम पर वर्षों से राजनीति कर रही समाजवादी पार्टी के मुखिया का ये 'समाजवाद' समझ से परे हैं. एक शोकाकुल परिवार से मिलने के दौरान इस तरह का आवभगत कौन से समाजवाद का प्रदर्शन है. इसे लेकर अलग-अलग तर्क भी गढ़े जा रहे हैं. सपाईयों के अपने तर्क हैं और विपक्षी पार्टी के कार्यकर्ताओं के अपने. इन सबके बीच सवाल ये खड़ा होता है कि समाजवाद की बात करने वाले अखिलेश यादव ने इस आवभगत को उसी समय क्यों नहीं रोका.
समाजवाद की अवधारणा को खुद में आत्मसात कर उत्तर प्रदेश का बड़ा राजनीतिक दल 'समाजवादी पार्टी' वर्षों से सियासी जमीन पर खेती कर रहा है.
'समाजवाद' की अवधारणा समाज और उसके सुधार से जुड़ी हुई है. इसी समाजवाद की अवधारणा को खुद में आत्मसात कर उत्तर प्रदेश का बड़ा राजनीतिक दल 'समाजवादी पार्टी' वर्षों से सियासी जमीन पर खेती कर रहा है. शायद पार्टी में अभी तक समाजवाद को पूरी तरह से अपनाया नहीं गया है. मेज पर रखे काजू और बिसलेरी की बोतल तो कम से कम यही कह रही है. 'बेनिफिट ऑफ डाउट' देते हुए कहा जा सकता है कि इस तमाम आवभगत के खेल में अखिलेश यादव की कोई भूमिका नहीं होगी. अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी के सबसे बड़े नेता हैं और उनके साथ पार्टी के कई अन्य बड़े नेता भी गए होंगे. इस दौरे पर सपा के कई 'चिंटू-मिंटू' टाइप कार्यकर्ता भी शामिल हुए होंगे. कहा जा सकता है कि इन लोगों ने ही फलाहार से लेकर मिष्ठान्न तक की व्यवस्था का दारोमदार अपने मजबूत कंधों पर उठा रखा होगा. लेकिन, जनता पर इसका क्या असर होगा, इन्होंने नहीं सोचा होगा. राजनीति में चापलूसी कमोबेश हर दल में घर कर चुकी है.
ये कितना दुःखद है कि एक पिता जिसके पुत्र के उत्तर प्रदेश पुलिस की हिरासत में मारे जाने की चर्चा है, वो सरकार से न्याय की उम्मीद खो बैठा है। न्याय के लिए सपा आख़िर तक उनके साथ लड़ेगी।भाजपा सरकार पर अब जनता का भरोसा नहीं रहा।बहुत हुई ‘ज़ुल्मों’ की मारअबकी बार भाजपा बाहर! pic.twitter.com/mUdwXOasDE
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) February 26, 2021
आजकल की राजनीति के दौर में पार्टी के बड़े नेताओं के सामने अपने नंबर बढ़ाने की होड़ में कार्यकर्ता कई बार सीमाओं को लांघ जाते हैं. एक शोकाकुल परिवार से मिलने पहुंचे अखिलेश यादव की उसी जगह आवभगत करने का इंतजाम चापलूसी की पराकाष्ठा को दर्शाता है. कार्यकर्ताओं में भरा यही बेलगाम जोश राजनीतिक दलों के लिए हानिकारक होता है और नेताओं के लिए भी. इसे सोशल मीडिया पर 'नेता जी' के साथ किसी देशव्यापी समस्या पर गहन चिंतन वाली तस्वीरों के जरिये बहुत आसानी से समझा जा सकता है. सोशल मीडिया पर अखिलेश यादव की ये तस्वीर खूब वायरल हो रही है और लोग उनकी खिंचाई भी कर रहे हैं. लोग तरह-तरह की टिप्पणियां करते हुए राजनीति में नैतिकता की दुहाई दे रहे है.
वहीं, पार्टी के अन्य सपा नेता अर्पित यादव ने भी आज पार्टी से इस्तीफा दे दिया है. दरअसल, उनकी पत्नी और कांग्रेस नेता पंखुड़ी यादव ने इसी तस्वीर को प्रियंका गांधी की हाथरस वाली एक तस्वीर के साथ पोस्ट कर दिया था. जिस पर उत्साही समाजवादी कार्यकर्ताओं ने पंखुड़ी को जमकर अपशब्द सुनाए थे. इससे आहत होकर अर्पित यादव ने पार्टी छोड़ते हुए कहा कि जब सपा में रहते हुए मैं अपनी पत्नी को सुरक्षित नहीं रख पा रहा हूं, तो प्रदेश की अन्य महिलाओं को कैसे सुरक्षित रख पाऊंगा.
उत्तर प्रदेश में समाजवाद के नवप्रणेता अखिलेश यादव को अपनी पार्टी के इन कार्यकर्ताओं को असल समाजवाद अपनाकर उसी हिसाब से आचरण करने की अपील करनी होगी. अगर अखिलेश ऐसा कर पाने में अक्षम रहते हैं, तो सत्ता की कुर्सी उनसे दूर ही रहेगी. अखिलेश यादव को खुद भी ऐसे चापलूस लोगों से दूरी बनानी चाहिए, जो आवभगत करने के चक्कर में पार्टी की छवि को ही नुकसान पहुंचा रहे हैं. अखिलेश यादव का शोकाकुल परिवार से मिलना निश्चित रूप से राजनीतिक उद्देश्य पर टिका हुआ था. वो सत्ता में होते, तो कोई अन्य विपक्षी नेता वहां गया होता. लेकिन, चापलूसी में 56 भोग परोसने की संस्कृति जगह देखकर ही अच्छी लगती है.
अखिलेश यादव को इस मामले से सीख लेनी चाहिए. आगे वे ऐसी किसी स्थिति में न फंसे, इसके लिए अपनी पार्टी के लोगों को ताकीद कर दें. 2014 में प्रधानमंत्री बनने के कुछ ही महीनों बाद नरेंद्र मोदी ने चापलूसी की संस्कृति पर प्रहार करते हुए अपने सांसदों से उनके और अन्य नेताओें के पैर छूने की आदत से बचने की सलाह दी थी. अखिलेश यादव को भी कुछ ऐसा ही करना होगा.
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