आखिर साथियों के 'बहकावे' में आकर और क्या क्या करेंगे केजरीवाल?
निजता के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अरविंद केजरीवाल की प्रतिक्रिया लोगों को नागवार गुजरी है. सोशल मीडिया पर केजरीवाल से लोग इसलिए गुस्सा हैं कि उन्होंने तीन तलाक को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर क्यों नहीं कुछ कहा?
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अरविंद केजरीवाल की जबान पहले जरूर लंबी रही. सर्जरी के बाद संतोष रहा कि चलो अब तो सब कुछ सामान्य हो गया. अब तो कोर्ट में उनका बयान इस बात का सबूत है कि वो साथियों के बहकावे में आकर कुछ भी कर सकते हैं. किसी को कुछ भी कह सकते हैं. किसी के बारे में कुछ भी बोल सकते हैं. किसी को कुछ भी बोलने के लिए हिदायत भी दे सकते हैं - भले ही वो शख्स उनका वकील ही क्यों न हो!
अब तो बड़े बन जाइए!
निजता के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अरविंद केजरीवाल की प्रतिक्रिया लोगों को नागवार गुजरी है. सोशल मीडिया पर केजरीवाल से लोग इसलिए गुस्सा हैं कि उन्होंने तीन तलाक को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर क्यों नहीं कुछ कहा? वैसे केजरीवाल ने इस मसले पर अपने सहयोगी आशुतोष की पोस्ट को रीट्वीट किया था. ट्रोलर में से एक का कहना था कि केजरीवाल ने अल्पसंख्यक वोटों के चलते ऐसा किया. अल्पसंख्यकों वोटों को लेकर बवाना में भी बवाल हुआ था जब अल्पसंख्यकों से वोट देने की अपील वाले पोस्टर लगे थे. आप नेताओं ने कहा था कि पोस्टर से उनका कोई नाता नहीं है. याद रहे जब शाही इमाम ने आम आदमी पार्टी को समर्थन देने की बात कही थी तो नेताओं ने ठुकरा दिया था.
कहां तक ले जाएगा ये माफी मांगने का सिलसिला...
बहरहाल, केजरीवाल किस मुद्दे पर बोलें और किस मुद्दे पर नहीं - ये भी तो उनके निजता के अधिकार के ही तहत आता है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने मूल अधिकार कहा है. केजरीवाल इस मामले में तो बच कर निकल सकते हैं लेकिन अदालत में अपने लिखित बयान में उन्होंने जो बात कबूल की है वो जरूर अजीब है.
मानहानि के एक केस में केजरीवाल ने माना है कि उन्होंने जो कुछ भी कहा वो अपने सहयोगियों के बहकावे में आकर कह दिया. हरियाणा से बीजेपी सांसद अवतार सिंह भड़ाना का इल्जाम रहा कि कि केजरीवाल ने जनवरी, 2014 उनके खिलाफ एक आपत्तिजनक बयान दिया था. भड़ाना के अनुसार, केजरीवाल ने उनके बारे में कहा था कि वो देश के सबसे भ्रष्ट व्यक्तियों में से एक हैं. भड़ाना ने लीगल नोटिस भेज कर केजरीवाल से अपना बयान वापस लेने और माफी मांगने की सलाह दी थी. जब केजरीवाल ने ऐसा कुछ नहीं किया तो उन्होंने अदालत की शरण ली. जब देखा कि मामला फंस गया तो केजरीवाल ने कोर्ट में लिखित तौर पर माफी मांग ली है. अपने माफीनामे में केजरीवाल ने कहा है कि उन्होंने अपने एक सहयोगी के बहकावे में आकर भड़ाना पर आरोप लगा दिया था और इस तरह के आरोप लगाकर भड़ाना की छवि खराब करने का उनका कोई मकसद नहीं था.
बताते हैं कि केजरीवाल के खिलाफ मानहानि के एक दर्जन से भी ज्यादा मामले दर्ज हैं. इनमें वित्त मंत्री अरुण जेटली के द्वारा दर्ज कराया गया केस भी शामिल है, लेकिन भड़ाना केस ऐसा पहला मामला है जिसमें केजरीवाल ने माफी मांगी है.
एक तो करेला, ऊपर से नीम चढ़ा
22 जुलाई को दिल्ली हाईकोर्ट में क्रॉस एग्जामिनेशन के दौरान राम जेठमलानी ने अरुण जेटली के लिए CROOK शब्द का इस्तेमाल किया था. जेटली के ये पूछने पर कि इस अपमानजनक शब्द का इस्तेमाल जेठमलानी अपनी ओर से कर रहे हैं या अपने क्लाइंट केजरीवाल के कहने पर? जेठमलानी ने कहा था कि केजरीवाल के कहने पर, लेकिन केजरीवाल ने इस बात से इंकार कर दिया था.
फिर माफी तो नहीं मांगनी पड़ेगी?
फिर जेटली ने एक अर्जी देकर कहा कि केजरीवाल ने इस बात से इनकार कर दिया है कि उन्होंने राम जेठमलानी को अपमानजनक शब्दों के इस्तेमाल के लिए नहीं कहा, जबकि केजरीवाल की पैरवी से खुद को अलग करने के बाद जेठमलानी ने उनकी बातों को झूठा बताया था. जेठमलानी ने केजरीवाल को भेजे पत्र की कॉपी जेटली को भी भेजी थी और कहा था कि केजरीवाल की ओर से उन्हें कोई जवाब नहीं मिला.
जेटली ने अब केजरीवाल पर झूठा हलफनामा दाखिल करने का आरोप लगाते हुए कोर्ट से कार्रवाई की मांग की है. जेटली की अपील पर हाई कोर्ट ने नोटिस देकर केजरीवाल से जवाब मांगा है. सुनवाई के लिए कोर्ट ने 11 दिसंबर की तारीख मुकर्रर की है.
जेटली के खिलाफ मानहानि केस में केजरीवाल बुरी तरह घिरते जा रहे हैं. मालूम नहीं ये सब वो खुद सोच समझ कर करते हैं या साथियों के बहकावे में आकर.
साथियों ने कब कब बहकाया?
गुजरते वक्त के साथ केजरीवाल के साथी भी बदलते रहते हैं. केजरीवाल पर ये इल्जाम भी उनके साथी ही लगाते रहे हैं. देखा भी गया है कि सूचना के अधिकार कानून के लिए आंदोलन में जो केजरीवाल के साथी रहे वे रामलीला आंदोलन आते आते उनसे दूर जा चुके थे. इसी तरह आम आदमी पार्टी बनते बनते रामलीला आंदोलन के कई साथी भी उनसे बहुत दूर जा चुके थे. आखिरकार जब केजरीवाल ने दिल्ली में दोबारा सरकार बना ली तो खुद ही कई साथियों को अपने से दूर कर दिया. मगर, इस पर भी तो निजता का अधिकार लागू होता है कि कौन किसी से कब तक दोस्ती रखे और कब तोड़ ले.
लेकिन न तो हर बात निजता के अधिकार के दायरे में आती है और न ही ये अधिकार हर बात की इजाजत देता है. केजरीवाल को कुछ दिनों से खामोश देखा जा रहा है. लेकिन उससे पहले वो दूसरों के बारे में काफी कुछ बोल चुके हैं. इतना बोल चुके हैं कि मानहानि के कई मुकदमे उनके खिलाफ चल रहे हैं.
सवाल ये है कि क्या केजरीवाल साथियों के बहकावे में ही आकर किसी को कुछ भी बोल देते हैं. पहले तो वो संसद में बैठे लोगों को हत्यारे, बलात्कारी और लुटेरे कहा करते थे. फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 'कायर' और 'मनोरोगी' बताया था. क्या ये सब भी वो अपने साथियों के बहकावे में आकर कहते रहे? क्या योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को भी केजरीवाल ने साथियों के बहकावे में आकर ही आप से बाहर कर दिया? आखिर साथियों के बहकावे में आकर वो कब तक ऐसा करते रहेंगे?
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