Where is Galwan valley: भारत के लिए गलवान घाटी पर नियंत्रण अब जरूरी हो गया है, जानिए क्यों...
India-China face off के के चलते लद्दाख के नजदीक अचानक गलवान वैली खून से लाल हो उठी. सवाल ये उठा रहा है कि गलवान वैली कहां है? (Where is Galwan valley) और इस इलाके पर प्रभुत्व को लेकर दोनों देश क्यों इतने उतावले हैं? {strategic importance of Galwan valley)
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India China Stand Off : भारत (India) और चीन (China) के बीच लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (Actual Line Of Control) पर जारी तनाव कम होने का नाम नहीं ले रहा है. बताया जा रहा है कि लद्दाख सीमा (ladakh Border) के पास स्थित गलवान घाटी (Galwan Valley) में दोनों ही देशों के सैनिकों के बीच बीती रात झड़प हुई है जिसमें 20 भारतीय सैनिकों की मौत हुई है वहीं चीन के मारे गए और घायल सैनिकों की संख्या 43 है. माना ये भी जाता है कि 1962 की जंग के बाद ये पहली बार है जब इस इलाके यानी गलवान घाटी में भारत-चीन के बीच तनाव (India China Conflict) गहराया है और नौबत हिंसक झड़प तक आ गयी है. अब चूंकि घाटी चर्चा में है तो कुछ और बात करने से पहले ये समझें कि आखिर कहां है ये गलवान घाटी और फिर ये भी जानें कि आखिर इसका ऐसा क्या रणनीतिक महत्व है जिसके चलते ये इलाका भारत और चीन दोनों ही मुल्कों के लिए जरूरी बना हुआ है.
गलवान घाटी में जो भारतीय सैनिकों के साथ हुआ है वो विचलित करने वाला है (फोटो: इंडिया टुडे)
क्या है गलवान घाटी का इतिहास और क्यों है ये महत्वपूर्ण
गलवान घाटी और इसकी एहमियत को समझने के लिए हमें सबसे पहले इसका इतिहास समझना होगा. इतिहासकारों की मानें तो इस जगह का नाम एक साधारण से लद्दाखी व्यक्ति गुलाम रसूल गलवान के नाम पर पड़ा. ये गुलाम रसूल ही थे जिन्होंने इस जगह की खोज की थी. जिस समय गलवान ये खोज कर रहे थे उन्होंने ये नदी का मार्ग का अनुसरण किया बाद में इन्होने चांग चेनमो घाटी में एक ब्रिटिश अभियान बल का चयन किया.
उन्होंने जिस सर्पिल यात्रा का गौरव प्राप्त किया, उसके लिए कश्मीर के उत्तर-पूर्वी हिस्से में 80 किलोमीटर की नदी और उससे सटी घाटी का नामकरण उनके नाम पर किया गया.जिस वक़्त ये खोज हुई शायद ही गलवान ने सोचा हो कि ये घाटी एशिया की दो महाशक्तियों भारत और चीन के लिए विवाद की वजह बन जाएगी.
चीन ने न सिर्फ यहां अक्साई चिन पर अपना अवैध कब्ज़ा किया बल्कि अब उन्होंने उस क्षेत्र पर भी अधिकार करना शुरू कर दिया है. जो 1956 में बनाई गयी क्लेम लाइन के पश्चिम में है. हालांकि केवल 4 सालों बाद, बीजिंग ने भारत के विरोध के बावजूद, श्योक नदी के किनारे, पहाड़ के बगल में नदी के पश्चिम में अपने शीर्षक का विस्तार किया.
सरहद को कुछ इस तरह दिखती है गलवान घाटी (फोटो: इंडिया टुडे)
चीनी की चाल पूर्व-निर्धारित और अत्यधिक सामरिक थी, क्योंकि नदी के बगल की चट्टानों ने इसे ऊंचाई दी जिसका लाभ उन्होंने लिया और जिससे आस-पास का बहुत सा क्षेत्र सुरक्षित भी हुआ. इसके अलावा, इसने नई दिल्ली से उत्पन्न किसी भी सुरक्षा खतरे को रोकने में मदद की, क्योंकि भारतीय सेना नदी के बगल में घाटी का उपयोग अक्साई चिन पठार तक पहुंचने के लिए कर सकती थी.
बता दें कि 1961 में, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने कोंगका ला में एक सीआरपीएफ गश्ती दल पर हमला किया. इसने भारतीय पक्ष को प्रतिक्रिया के लिए और अप्राकृतिक क्षेत्रों पर कब्जा करने के लिए बाध्य किया किया- जिसमें गलवान जोकि स्पैंगगुर और पैंगोंग झील के बीच का क्षेत्र शामिल है.
बात इस जगह पर कब्जे की चल रही है तो बता दें कि यहां हावी होने की आकांक्षा ने भारतीय और चीन के बीच 1962 के युद्ध का नेतृत्व किया, जब जुलाई में गोरखा रेजिमेंट के सैनिकों ने चीन द्वारा नियंत्रित सैमजंगलिंग पोस्ट पर संचार लाइनों को काट दिया. चीनियों ने निकटतम भारतीय पोस्ट को घेरकर इस कदम का विरोध किया. यह गतिरोध चार महीने तक जारी रहा.
अक्टूबर तक, चीनी सेना ने बमबारी की और भारतीय सैनिकों को मार गिराया और पोस्ट पर हमला करने के लिए एक बटालियन भेजी. बताया जाता है कि उस दौर में भारत को काफी नुकसान का सामना करना पड़ा और उस गतिरोध में भारत की तरफ से 33 जवान शहीद हुए जबकि कई घायल हुए. कंपनी कमांडर को युद्ध बंदी बना लिया गया. चीन युद्ध पर हावी था और इसके खात्मे तक, दावा यही किया कि ये हिस्सा उसका है.बता दें कि 1956 की सुलह के बाद 1960 में भारत ने ये क्षेत्र गंवा दिया.
घाटी को और बेहतर ढंग से दिखाता नक्शा (फोटो: इंडिया टुडे)
इतनी बातें जानने के बाद यदि आज की स्थिति का अवलोकन किया जाए तो 2016 की सैटलाइट तस्वीरें मौजूद है जो ये साफ़ बताती हैं कि चीन ने गलवान घाटी के मध्य तक रोड बना ली है और यदि वर्तमान परिस्थितियों का अवलोकन करें तो मिलता है कि निर्माण और आगे बढ़ गया होगा. वर्तमान में निकटतम चीनी पोस्ट हवेइटन है जो लाइन ऑफ एक्चुअल कण्ट्रोल से 48 किलोमीटर दूर है. बॉर्डर से 8 किलोमीटर की दूरी पर श्योक और गलवान नदियों का संगम होता है.
1962 के बाद से, 1960 के नक्शे की यथास्थिति ज्यादातर देखी गई है. लेकिन अब, लगभग 60 साल बाद, एक बार फिर से आक्रामक रणनीति तैनात की गई है. बात अगर गुजरे महीने की हो तो चीनी सैनिकों ने सीमा का उल्लंघन किया और भारतीय क्षेत्र में प्रवेश किया. झड़प हुई जिसके बाद दोनों ही देशों के बीच तनाव की स्थिति पैदा हुई.
आज खबर ये आ रही है कि दोनों ही देशों की सेना के बीच झड़प हुई जिसमें भारतीय सेना के लोग हताहत हुए. इस झड़प में लाठियों और पत्थरों का इस्तेमाल किया गया साथ ही जमकर धक्का मुक्की भी हुई. माना जा रहा है कि भारतीय सैनिकों की मौत का एक बड़ा कारण नदी में गिरना है. वहीं इस झड़प में चीन को भी नुकसान पहुंचा है.
बहरहाल जो ताजा तस्वीरें आई हैं उनमें चीनी निर्माण को देखा जा सकता है. बीजिंग एलएसी के करीब भारत निर्माण के बुनियादी ढांचे के बारे में आशंकित है और निर्माण को रोकने के लिए अपनी तरफ से पुरजोर कोशिश कर रहा है. यह संभवतः गतिरोध के लिए ट्रिगर हो सकता है. ज्ञात हो कि चीन लगातार यही प्रयास कर रहा है कि वो झिंजियांग-तिब्बत राजमार्ग से भारत को यथासंभव दूर रख सके. यदि ऐसा हो जाता है तो इलाके में चीन का दबदबा और मजबूत हो जाएगा. बता दें कि चीन बार बार ऊंचाई वाली रिजेज पर कब्जे की कोशिश कर रहा है जिससे भारत को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.
अंत में हम बस ये कहते हुए अपनी बात को विराम देंगे कि फिजिकल मिलिट्री एक्शन को अपनाकर इसबार चीन बहुत आगे निकल गया है. हमें उसे समझाना होगा. वरना येहिमालयन ब्लंडर एक राष्ट्र के रूप में भारत को काफी हद तक प्रभावित करेगा.
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