नोटबंदी और मौत - आम आदमी तेरी क्या बिसात
सैनिकों पर सियासत कम थी जो अब आम आदमी पर भी शुरू हो गई है. हमारे देश में मौत पर राजनीति ना हो ऐसा तो हो ही नहीं सकता है. तो नोटबंदी पर भी यही शुरू हो गया है.
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8 नवंबर की रात जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 और 1000 रुपए की नोटबंदी के ऐलान किया गया, तब से ही पूरे देश में राजनीति शुरू हो गई है. भारत में बड़े मूल्य के नोटों के चलन पर प्रतिबंध के निर्णय की तारीफ करते हुए भाजपा ने कहा है कि यह एक 'साहसिक कदम' है और इससे देश में कालेधन की अर्थव्यवस्था घटेगी वहीं , विपक्ष ने प्रधानमंत्री के इस साहसिक कदम की घोर भर्त्सना शुरू कर दी. कहा गया कि ये फैसला ऊपर से थोप गया है और बड़े उद्योगपतियों को इससे को भी घटा नहीं होने वाला है. साथ ही ये नीति भारत के आम लोगों के साथ किया गया बड़ा अपराध है और इससे भारत को और इसके अर्थव्यवस्था का कहीं से भला नहीं होने वाला है. इसके इतर, वित् मंत्री अरुण जेटली ने कहा की नोटबंदी जारी रहेगा.
सांकेतिक फोटो |
इस मुहीम में माना जा रहा है कि यह फैसला काले धन और नकली नोटों पर नकेल कसने के लिए लिया गया है और सरकार के निशाने पर वो लोग है जिनके पास काला धन जमा जमा है. इसी सन्दर्भ में आज एक और खबर आई कि नोटबंदी के बाद काले धन पर नकेल कसने के लिए सरकार नए-नए कदम उठा रही है. अब सरकार हाईवे के पास की जमीनों की जांच करने वाली है. इसके लिए सरकार ने 200 से ज्यादा टीमें बनाई हैं. खबरों के अनुसार सरकार ने बेनामी संपत्ति के खिलाफ बड़ा एक्शन प्लान तैयार किया है. इसके तहत हाईव के पास की जमीनों की जांच की जाएगी. वहीं, बड़े शहरों के वीवीआईपी इलाकों में आवंटित प्लॉट और संपत्तियों की जांच होगी. वैसे जापान से लौट कर प्रधानमंत्री ने इस ओर साफ इशारा किया था कि अभी तो ये शुरुआत है, इस दिशा में कई और कदम भविष्य में उठाए जाएंगे.
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नोटबंदी और मौत-
अब जब जिक्र किया ही जा रहा है तो इस राजनीतिक घमासान के बीच ये बात भी सामने है कि 8 नवंबर के बाद से ही पूरे देश में इससे जुड़ी मौतों की संख्या 50 से ऊपर पहुंच गई है. निश्चित ही इन सभी लोगों में से कोई बड़ा उद्योगपति या कोई भी ऐसा इंसान नहीं है जिसके पास काला धन छुपा हो. अब सवाल ये उठता है कि क्या ये लोग असमय ही काल के गाल में समा गए, क्या इनकी मौत सिर्फ नोटबंदी से ही जुड़ी थी? इसकी जिम्मेदारी किसकी है? क्या इन लोगों के परिवार को देखने वाला कोई है? क्या सरकार और विपक्ष इनके ऊपर भी सिर्फ अपना परचम फैरा रहे हैं. क्या इन्हें भी कोई मुआवजा दिया जाएगा? क्या मौतों पर पूर्ण विराम लग जाएगा.
सैनिकों पर सियासत कम थी जो अब आम आदमी पर भी शुरू हो गई है. हमारे देश में मौत पर राजनीति ना हो ऐसा तो हो ही नहीं सकता है. अब देखिए ना केजरीवाल जी और ममता दीदी इस बात का सबसे ज्यादा विरोध कर रहे हैं. केजरीवाल तो 90 रैलियां भी करेंगे. हां, मगर ये होंगी सिर्फ उन्हीं राज्यों में जिनमें चुनाव होने हैं. ऐसा जताया जा रहा है कि देश में हाहाकार मचा हुआ है. हा थोड़ी तकलीफ जरूर है पर इतनी भी नहीं कि ममता जी बंगाल छोड़कर दिल्ली आ पहुंची हैं.
अभी तक तो केजरीवाल के लिए जेएनयू वाले नजीब ही महत्वपूर्ण थे. क्योंकि, मीडिया में ये मुद्दा ज़ोरो-शोरो से चल रहा था. मगर जैसे ही मुद्दा बदला. केजरीवाल को लगा कि ये तो बड़ा मुद्दा है. इससे ज्यादा फायदा हो सकता है. केजरीवाल अब नजीब के लिये ट्वीट तक नहीं करते. अब सिर्फ एक ही मुद्दा है नोटबंदी के खिलाफ प्रदर्शन का.
सांकेतिक फोटो |
मगर ये भी सच है कि देश के अलग-अलग राज्यों से ये खबर आ रही है कि लोग नोटबंदी के चलते मर रहे हैं. अब क्या सरकार इसकी जांच कराएगी कि लोग इसी कारण मर रहे है या कुछ और कारण है. खैर, जब जांच होगी तब होगी महर फिलहाल तो लाशों पर रोटी सेकने का काम ज़ोरों-शोरों से चल रहा है.
देश में आम लोगों के जीवन में उथलपुथल मचा देने वाली नोटबंदी उत्तर प्रदेश में 11 लोगों की जान ले चुकी है. इनमें से अधिकांश मौतें दिल का दौरा पड़ने से हुई हैं. दो लोगों ने आत्महत्या की है. असम, मध्य प्रदेश, झारखंड और गुजरात में नोटबंदी के असर की वजह से तीन-तीन लोगों की मौत हुई है जबकि तेलंगाना, बिहार, मुंबई, केरल और कर्नाटक में दो-दो लोगों की जान गई हैं. ओडिशा, आंध्र प्रदेश, दिल्ली, छत्तीसगढ़, राजस्थान और पश्चिम बंगाल में कुल मिलाकर सात लोगों की मौत नोटबंदी के प्रभाव की वजह से हुई हैं.
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भले ही ये तर्क दिया जा सकता है कि नोटबंदी ही सारी मौतों के लिए जवाबदेह नहीं है, पर फिर भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में मोदी सरकार के इस फैसले के बाद लगातार मौतों की तादाद में हुई बढ़ोतरी ने सरकार को बैकफुट पर ला दिया है. संसद के अलावा भी विपक्षी दलों को एक मौका और मुद्दा भी मिल गया है, लेकिन दुखद ये है की लाशों पर राजनीति तो हो रही है साथ ही मृतकों के परिवार की सुध लेने वाला कोई नहीं है.
नोटबंदी पर आरएसएस नेता गोविंदाचार्य ने केंद्र को नोटिस भेजा है, मांग की है कि नोटबंदी से पीड़ित लोगों के लिए मुआवजा दिया जाए. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने ट्वीट के जरिए सवाल किया है कि नोटबन्दी के कारण हुई 50 से ज्यादा मौतों का ज़िम्मेदार कौन? सरकार या अपना स्वंय का सफेद धन बदलवाने या निकलवाने वाला आम आदमी? मोदी जवाब दो?
लोगों के मौत के बाद भी सन्नाटा क्यों नहीं है, भाई.
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