महान शख्सियतों के खिलाफ इंटरनेट पर कौन फैलाता है दुष्प्रचार?
महान लोगों से जुड़ी जानकारियों के मामले में इंटनेट को खंगालते समय सावधान रहिए क्योंकि महान लोगों के बारे में इस पर जितनी सही जानकारियां हैं उतनी ही भ्रामक और गलत भी.
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इंटरनेट को सूचनाओं का संसार कहा जाता है लेकिन अगर इसका संभलकर इस्तेमाल न किया जाए तो ये सूचनाएं आपकी जानकारियों का कबाड़ा भी कर सकती हैं. खासकर महान लोगों से जुड़ी जानकारियों के मामले में इंटनेट को खंगालते समय सावधान रहिए क्योंकि महान लोगों के बारे में इस पर जितनी सही जानकारियां हैं उतनी ही भ्रामक और गलत भी.
इंटरनेट पर इन शख्सियतों के बारे में ऐसी कई जानकारियां हैं जिनकी तह में जाने पर आप खुद ही जान जाएंगे कि ये जानकारियां कितनी खोखली हैं और इनका उद्देश्य किसी महान व्यक्ति की साख को धक्का पहुंचाना है.
हाल ही में टाइम्स ऑफ इंडिया में एक रिपोर्ट छपी जो दिखाती है कि कैसे किसी महान व्यक्ति के खिलाफ लंबे समय तक दुष्प्रचार चलाकर जनमानस के मन में उसकी छवि धूमिल की जाती है. इस रिपोर्ट में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के बारे में इंटरनेट पर फैले तमाम दुष्प्रचार, झूठी और मनगढ़ंत कहानियों और जानकारियों का जिक्र किया गया है. कुछ जानकारियां तो ऐसी हैं कि आप सोच में पड़ जाएंगे. अब अगर इन्हें पढ़ने वाले व्यक्ति को इंटरनेट के इस खेल का पता नहीं होगा तो वह बड़ी आसानी से इन मनगढ़ंत बातों पर यकीन कर लेगा और उस महान शख्सियत के बारे में गलत राय बना लेगा.
अब आप जरा इंटरनेट पर नेहरू के खिलाफ चलाए गए दुष्प्रचारों के कुछ उदाहरण देखिए. हाल के दिनों में सबसे ज्यादा निशाना इंटरनेट पर नेहरू को ही बनाया गया है. इसलिए पहले चर्चा उन्हीं की.
जवाहर का अरबी भाषा में मतलब होता है मोती, कभी भी एक कश्मीरी ब्राह्माण अपने बच्चे का नाम जवाहर नहीं रखेगा.
अमिताभ बच्चन उनके बेटे हैं.
ऊपर की बातें इंटरनेट पर नेहरू के खिलाफ फैलाई गए दुष्प्रचार का हिस्सा हैं. अब जरा सोचिए एक आम भारतीय नागरिक क्या कभी इन बातों की सच्चाई जानने की कोशिश करेगा. शायद नहीं, वह तो इंटरनेट पर उपलब्ध इन बातों को सही मान लेगा और नेहरू के बारे में वही धारणा बनाएगा जोकि ऐसा दुष्प्रचार फैलाने वाले चाहते हैं.
आखिर कौन फैलाता है ये दुष्प्रचार?
अब सवाल ये कि आखिर इन दुष्प्रचारों के पीछे कौन लोग होते हैं. तो इसका जवाब है कि इनके पीछे विरोधियों का हाथ होता है. नेहरू के मामले में इसके लिए दक्षिणपंथी पार्टियों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. आरएसएस के पूर्व प्रमुख केएस सुदर्शन ने कभी कहा था कि नेहरू ने ही गांधी की हत्या की थी. सुदर्शन की ये बात उस कदर चर्चा में इसलिए नहीं आई क्योंकि तब इंटरनेट का युग नहीं था. लेकिन आज के जमाने में लोग उसी बात को सच मान लेते हैं जो उन्हें गूगल पर दिखती है.
दक्षिणपंथी संगठनों और हिंदूवादी संगठनों ने शुरू से ही नेहरू को अपने निशाना पर रखा. जब सिर्फ विरोध से बात नहीं बनी तो लोगों के मन में नेहरू के खिलाफ भ्रामक जानकारियां फैलाने के लिए इंटरनेट का सहारा लिया गया. नेहरू के विरोधियों का काम इंटरनेट ने बहुत ही आसान कर दिया.
पिछले वर्ष सेंटर फॉर इंटरनेट एंड सोसाइटी के पॉलिसी डायरेक्टर प्रनेश प्रकाश ने जवाहर लाल और मोतीलाल नेहरू के विकिपीडिया पेजों को एडिट करके उनके बारे में गलत जानकारियां डाली गई थीं. हैरानी की बात ये है कि ये जानकारियां केंद्र सरकार के आईपी एड्रेस से डाली गई थीं. विकिपीडिया पर एडिट करके जो जानकारियां डाली गई थीं, उन्हें जानकर आप हैरान रह जाएंगे, इसमें लिखा गया था, जवाहरहाल के दादा का गयासुद्दीन गाजी थे, जोकि मुगलों के कोतवाल थे, जिन्होंने अपना नाम बदलकर गंगाधर नेहरू रख लिया था. नेहरू का जन्म इलाहाबाद के एक वेश्यालय में हुआ था.
गूगल पर नेहरू शब्द सर्च कीजिए और देखिए रिजल्ट!
नेहरू के खिलाफ चलाए गए दुष्प्रचार का आलम ये है कि अगर आप इंटरनेट पर नेहरू शब्द टाइप करें तो रिजल्ट के पहले ही पेज पर 'द ट्रूथ ऑफ नेहरू फैमिली' और 'जवाहर लाल नेहरू-द प्लेबॉय?' जैसे आर्टिकल्स मिल जाएंगे. इन आर्टिकल्स में नेहरू के बारे में ऐसी कई जानकारियां दी गई हैं जिनकी कोई प्रामणिकता नहीं है.
इनमें नेहरू के सरोजिनी नायडू की बेटी पद्मजा नाडयू और लॉर्ड माउंटबेटेन की पत्नी एडविना माउंटबेटेन से अफेयर की बात को प्रमुखता से उठाया गया है. लेकिन नेहरू पर लिखी गई किसी भी गंभीर जीवनी में इन दोनों के साथ नेहरू के संबंधों के बारे में लिखा गया है लेकिन किसी ने भी इसे अफेयर नहीं कहा है.
लॉर्ड माउंटबेटन की पत्नी एडविना और जवाहर लाल नेहरू के संबंधों के अफेयर को लेकर इंटरनेट पर बहुत सी भ्रामक जानकारियां उपलब्ध हैं |
मोदी के बारे में भी दुष्प्रचारः
ऐसा नहीं है कि दुष्प्रचार सिर्फ नेहरू को लेकर ही किए जा रहे हैं. ऐसे ही दुष्प्रचार का खेल देश के पीएम मोदी के खिलाफ भी चलाया जा रहा है. पिछले वर्ष जून में उस समय बवाल मच गया जब गूगल पर टॉप-10 क्रिमिनल्स सर्च करने पर ओसामा बिन लादेन और दाऊद इब्राहिम जैसे अपराधियों के साथ मोदी का भी नाम और तस्वीर आने लगी.
जून 2015 में गूगल सर्च में टॉप क्रिमिनल्स में पीएम मोदी का नाम आने पर गूगल को माफी मांगनी पड़ी थी |
इस सर्च रिजल्ट ने गूगल को आलोचकों के निशाने पर ला दिया और गूगल ने इस बात के लिए माफी मांगते हुए कहा कि ऐसा सर्च के अल्गोरिथम में गड़बड़ी के कारण हुआ है और इसे गूगल का मत नहीं माना जाना चाहिए. इसके एक महीने बाद ही गूगल पर मोस्ट स्टूपिड पीएम टाइप करने पर उसमें मोदी की तस्वीर आने लगी. गूगल ने बाद में इस गलती को भी ठीक कर लिया.
क्यों आया क्रिमिनल्स की लिस्ट में मोदी का नाम?
दरअसल गूगल से ये गलती इसलिए हुई क्योंकि एक ब्रिटिश अखबार ने मोदी पर की किसी स्टोरी में अपने मेटाडेटागलत जानकारी डाल दी थी. गूगल का कहना है कि ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि कई बार इंटरनेट पर जिस तरह से तस्वीरों को परिभाषित किया जाता है, किसी विशेष सर्च में वहीं रिजल्ट दिख जाता है. मोदी के मामले में भी ऐसा हुआ.
इससे ऐसा लगता है कि मोदी की तस्वीरों के साथ स्टूपिड या क्रिमिनल या कुछ अमर्यादित शब्द लिखकर उन्हें इंटरनेट पर अपलोड करने का खेल चलता है. जाहिर तौर पर ऐसा मोदी विरोधियों द्वारा किया जाता है. जिससे मोदी के बारे में सर्च करने पर कई बार ऐसे उल्टे रिजल्ट भी सामने आ जाते हैं.
इंटरनेट पर महान व्यक्तियों के खिलाफ दुष्प्रचार को रोक पाना तो शायद ही संभव हो लेकिन इससे बचाव के लिए जरूरी है कि लोगों में डिजिटल साक्षरता बढ़ाई जाए. ताकि उन्हें ये पता रहे कि जो जानकारी इंटरनेट पर दी जा रही है उसका स्रोत क्या है, और वह किसी चीज पर यकीन करने से पहले उसका सच जरूर जान लें.
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