फिर तो नसीबवाला बनते बनते रह जाएंगे राहुल गांधी
जब राहुल की बात आई तो नीतीश ने सफाई में समझाया कि बीजेपी के खिलाफ एकजुट होने के लिए उन्होंने सिर्फ नारा सुझाया है - पीएम कैंडिडेट का नाम नहीं.
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पीएम कैंडिडेट को लेकर नीतीश कुमार का नसीबवाला बयान भला कांग्रेस को कैसे सुहाता. 'कांग्रेस मुक्त भारत' का नारा देने वाले के खिलाफ 'संघ मुक्त भारत' का स्लोगन कोई लिखना चाहे ये तो चलेगा, लेकिन जयकारे तो सिर्फ राहुल गांधी के नाम पर ही लगने चाहिये. कांग्रेस ने भले ही इसे वक्त से पहले और गैर जरूरी करार दिया हो - लेकिन एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने राहुल की काबिलियत पर सवाल के साथ बहस को आगे बढ़ा दिया है.
नीतीश या राहुल?
प्रधानमंत्री उम्मीदवार को लेकर नीतीश का बयान आने पर सवाल उठा तो लालू प्रसाद ने फटाफट एनडोर्स कर दिया. डिप्टी सीएम बेटे तेजस्वी ने उसके साथ नंबर गेम की शर्तें लागू कर दी. तेजस्वी ने कह दिया कि ये काम नंबर गेम के हिसाब से होना चाहिए, जिसके पास ज्यादा नंबर होगा - वो प्रधानमंत्री बनेगा.
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जेडीयू का अध्यक्ष बनने के बाद कार्यकर्ताओं के बीच नीतीश कुमार ने हाल ही में कहा था, 'अगर किसी इंसान की किस्मत में पीएम बनना लिखा होगा तो वो एक दिन पीएम जरूर बनेगा, चाहे उसके नाम का एलान हो या न हो.'
जैसे ही नीतीश का ये बयान आया कांग्रेस नेताओं ने इसे डाउनप्ले करने की पूरी कोशिश की. शकील अहमद ने जहां सिरे से खारिज किया वहीं अशोक चौधरी का कहना रहा कि अभी वक्त नहीं आया - और वक्त आते आते गंगा में काफी पानी बह चुका होगा.
तीन साल हैं, मीलों चलना है... |
एनसीपी नेता शरद पवार ने भी राहुल के मुकाबले नीतीश को ही तरजीह दी है. इकोनॉमिक टाइम्स से बातचीत में पवार कहते हैं, "आज अगर देश में विपक्ष को एकजुट होना हो और विकल्प देना हो तो नीतीश का नाम नंबर वन होगा." पवार का कहना है कि मुख्यमंत्री होने के नाते नीतीश के पास अथॉरिटी है - और कांग्रेस के पास ऐसा कोई नेता नहीं है.
नेतृत्व क्षमता?
पवार भी बाकी कांग्रेस नेताओं की तरह राहुल की तुलना में सोनिया की नेतृत्व क्षमता में ज्यादा यकीन करते हैं. पवार का कहना है, "विपक्षी दलों में सोनिया गांधी की स्वीकार्यता ज्यादा है. हममें से कुछ लोग उनसे लड़े हैं और हमने उनमें बदलाव देखा है. वो सबकी राय को तवज्जो देने वाली नेता हैं." पहले भी राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता पर कांग्रेस में सवाल उठ चुके हैं - और यही वजह रही कि सोनिया गांधी राहुल को पार्टी की कमान सौंपते सौंपते रह गईं.
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कैप्टन अमरिंदर सिंह ने तो दलितों के घर राहुल के जाने को नाटक करार दिया था. राहुल को लेकर शीला दीक्षित का भी ऐसा ही नजरिया रहा है. जो पवार ने कहा है, शीला दीक्षित भी कह चुकी हैं, ‘‘मैं अभी तक किसी ऐसे व्यक्ति से नहीं मिली जिसने सोनिया गांधी के नेतृत्व को लेकर कोई आलोचनात्मक टिप्पणी की हो. मैं यह बात पूरे विश्वास के साथ कह सकती हूं. राहुल के मामले में, जाहिर तौर पर प्रश्न चिह्न लगा है. एक तरह का संदेह है क्योंकि आपने अभी तक उनका प्रदर्शन नहीं देखा है."
कांग्रेस के सीनियर नेता माखनलाल फोतेदार ने भी अपनी किताब 'द चिनार लीव्स' में राहुल की क्षमताओं पर सवाल उठाया है.
राहुल के नाम पर
जब राहुल की बात आई तो नीतीश ने सफाई में समझाया कि बीजेपी के खिलाफ एकजुट होने के लिए उन्होंने सिर्फ नारा सुझाया है - पीएम कैंडिडेट का नाम नहीं.
कौन होगा अगला नसीबवाला? |
पवार ने तो साफ कर दिया है कि पीएम के रूप में उनकी पहली पसंद नीतीश होंगे. क्षेत्रीय दलों के दूसरे नेताओं की भी राय पवार जैसी ही है. ममता बनर्जी तो सोनिया से मिलने 10, जनपथ खुद पहुंच जाती हैं - लेकिन राहुल की बात पर वो नाक भौं सिकोड़ने लगती हैं - अक्सर ऐसी चर्चाएं होती हैं. ऐसे में जबकि कांग्रेस क्षेत्रीय दलों से गठबंधन के भरोसे ही वापसी की कोशिश में जुटी है - राहुल का नाम आने पर ये मुश्किल तो आएगी ही.
कांग्रेस इस स्थिति से तभी बच सकती है जब वो पूरी तरह बहुमत में आए या कम से कम नंबर का फासला इतना हो कि दूसरे दल प्रधानमंत्री पद पर दावेदारी से दूर रहें. हालांकि, मौजूदा हालात को देखते हुए ये सब दूर की कौड़ी ही लगता है. 2019 तक बीजेपी में थाल सजाकर जीत का तोहफा कांग्रेस की झोली में डाल दे तो बात और है.
नीतीश ने पीएम कैंडिडेट पर बहस को एक बार फिर वहीं ला दिया है जहां 2014 से पहले था. तब नीतीश ने एनडीए को पीएम कैंडिडेट घोषित करने की सलाह दी थी, लेकिन खुद ही गच्चा खा गये. नीतीश ने एक बार फिर नये जोश और नये नारे के साथ पीएम कैंडिडेट की बात छेड़ी है - इस बार उन्होंने इसमें किस्मत का तड़का भी लगा दिया है.
अगले आम चुनाव में अभी तीन साल का वक्त है. राहुल गांधी खूब मेहनत कर रहे हैं - और हर तबके से कनेक्ट होने की कोशिश कर रहे हैं. नीतीश का स्वाभाविक फोकस बिहार पर है मगर वो गठबंधनों के लिए खूब जोड़ तोड़ कर रहे हैं. अभी तक उन्हें कोई खास कामयाबी मिलती तो नहीं दिखी है.
किस्मत का क्या, जिस पर मेहरबान हो उसी को नसीबवाला बना सकती है. अगर मोदी और नीतीश का किस्मत कनेक्शन ज्यादा मजबूत पड़ा, फिर तो नसीबवाला बनते बनते रह जाएंगे राहुल गांधी!
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