कपिल सिब्बल के पाला बदलने से किसको क्या सियासी नफा-नुकसान होगा?
कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) ने राज्यसभा (Rajya Sabha) के नामांकन के बाद कहा कि मैंने 16 मई (कांग्रेस के चिंतन शिविर के अगले ही दिन) को ही पार्टी से इस्तीफा दे दिया था. कांग्रेस (Congress) के शीर्ष नेतृत्व यानी गांधी परिवार (Gandhi Family) की ओर से सिब्बल के इस्तीफे पर चुप्पी साधना रिश्तों पर जम चुकी बर्फ का अहसास करा दिया.
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कांग्रेस के असंतुष्ट गुट जी-23 के नेता कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) ने एक खुलासा किया कि उन्होंने कांग्रेस का चिंतन शिविर खत्म होने के अगले ही दिन इस्तीफा दे दिया था. हालांकि, कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि कपिल सिब्बल ने उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) समर्थित उम्मीदवार के रूप में नामांकन दाखिल करने के बाद कांग्रेस से इस्तीफा दिया है. खैर, कौन सच बोल रहा है, इसका फैसला कर पाना मुश्किल है. लेकिन, 9 दिनों तक कपिल सिब्बल और कांग्रेस दोनों की ओर से ही इस्तीफे की बात पर चुप्पी साधे रखी गई. जो गांधी परिवार और कपिल सिब्बल के बीच दशकों के सियासी रिश्तों पर जमी बर्फ को दिखाने के लिए काफी है. खैर, एक बात तो तय हो चुकी है कि कपिल सिब्बल अब कांग्रेस का हिस्सा नही हैं.
हालांकि, अभी कपिल सिब्बल ने आधिकारिक तौर पर समाजवादी पार्टी की सदस्यता नहीं ली हैं. लेकिन, कपिल सिब्बल को लेकर केवल समाजवादी पार्टी ही नहीं, बल्कि लालू प्रसाद यादव की आरजेडी और हेमंत सोरेन की जेएमएम भी दांव लगाने की कोशिश में थे. बताया जा रहा है कि गांधी परिवार के करीबी रहे कपिल सिब्बल को अपने खेमे में लाने के लिए इन सभी सियासी दलों ने पूरी कोशिश की थी. लेकिन, कपिल सिब्बल ने अखिलेश यादव की साईकिल पर ही सवारी करना बेहतर समझा. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि कपिल सिब्बल की समाजवादी पार्टी में हुई एंट्री के बाद किसको क्या सियासी नफा-नुकसान होगा?
कपिल सिब्बल की कांग्रेस से दूरी गांधी परिवार के लिए मुश्किलों की झड़ी लगा देगी.
क्या आजम खान ने दिलाया 'ईनाम'?
समाजवादी पार्टी के कद्दावर मुस्लिम नेता आजम खान लंबे समय से योगी सरकार की ओर से किए गए तमाम मुकदमों की चलते जेल में थे. सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम जमानत मिलने के 27 महीने बाद जेल से रिहा हुए आजम खान का केस कपिल सिब्बल ने ही लड़ा था. सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा आम है कि आजम खान और अखिलेश यादव के बीच तल्खी और नाराजगी की बड़ी वजह कपिल सिब्बल ही थे. दरअसल, आजम खान चाह रहे थे कि अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी की ओर से कपिल सिब्बल को राज्यसभा भेजा जाए. वैसे, समाजवादी पार्टी के विधायक आजम खान तीन दिन तक लखनऊ में रहने के बावजूद अखिलेश यादव से नहीं मिले. ये चौंकाने वाली बात है. और, इस दौरान आजम ने पार्टी बदलने के सवाल पर ये भी कहा कि 'पहले कोई माकूल कश्ती तो सामने आए. अभी मेरा जहाज ही काफी है.'
वहीं, शिवपाल यादव के साथ मुलाकात पर आजम खान ने कहा कि 'मैंने अब तक एक रेखा खींच रखी थी, किसी दूसरी कश्ती की तरफ देखा नहीं था. सलाम दुआ सबसे रहनी चाहिए और चाय-नाश्ता से किसी को ऐतराज नहीं होना चाहिए. सब चाय नाश्ता कर सकते हैं, तो मैं नहीं कर सकता? मेरी उनसे मुलाकात पहले भी हुई है और आगे भी होगी.' आजम खान की ये बात काफी हद तक अखिलेश यादव के लिए एक तंज नजर आती है. क्योंकि, बीते दिनों अखिलेश यादव सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत भाजपा के कई वरिष्ठ नेताओं के साथ मुलाकात करते नजर आए थे. वैसे, कपिल सिब्बल को राज्यसभा सीट दिलाकर आजम खान ने समाजवादी पार्टी गठबंधन के एक बड़े दल आरएलडी के मुखिया को जरूर बड़ा झटका दिया है. क्योंकि, आरएलडी चीफ जयंत चौधरी खुद को राज्यसभा में भेजे जाने की उम्मीद पाले बैठे थे.
क्या अखिलेश यादव के लिए फायदेमंद होंगे सिब्बल?
राज्यसभा के लिए कपिल सिब्बल का नामांकन कराने के लिए समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव खुद मौजूद थे. उनके साथ समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद रामगोपाल यादव भी थे. समाजवादी पार्टी के दो सबसे बड़े नेताओं की मौजूदगी कपिल सिब्बल की अहमियत बताने के लिए काफी कही जा सकती है. दरअसल, कपिल सिब्बल के जरिये अखिलेश यादव कोशिश करेंगे कि आजम खान की नाराजगी को कम किया जा सके. सिब्बल समाजवादी पार्टी में शामिल होने के बाद अखिलेश यादव और आजम खान के बीच आई नाराजगी को खत्म करने के लिए एक पुल का काम कर सकते हैं.
वैसे कपिल सिब्बल को दिल्ली के सभी सियासी गलियारों में उनकी बेरोक-टोक एंट्री के लिए भी जाना जाता है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो सभी विपक्षी दलों के बड़े नेताओं से सिब्बल के अच्छे संबंध हैं. और, दिल्ली के सियासी गलियारों में सिब्बल समाजवादी पार्टी की हनक बनाने में अहम किरदार निभा सकते हैं. कांग्रेस की ओर से क्षेत्रीय दलों के खिलाफ की जा रही बयानबाजी पर भी सिब्बल समाजवादी पार्टी के एक मजबूत राजनीतिक हथियार साबित हो सकते हैं. जो सीधे दिल्ली में कांग्रेस पर हमलावर होगा. इतना ही नहीं, सिब्बल समाजवादी पार्टी को सूबे में भाजपा के खिलाफ एक मात्र विपक्षी पार्टी के तौर पर भी स्थापित करने में मदद कर सकते हैं.
कैसे कांग्रेस के लिए बड़ा झटका बने सिब्बल?
कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व यानी गांधी परिवार की कपिल सिब्बल की नाराजगी किसी से छिपी नहीं है. कांग्रेस के असंतुष्ट गुट जी-23 के नेताओं में शामिल कपिल सिब्बल गांधी परिवार के खिलाफ सबसे ज्यादा मुखर थे. हाल ही में पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद उन्होंने कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व को आड़े हाथों लेते हुए कहा था कि अब वक्त आ गया है कि 'घर की कांग्रेस' की जगह 'सब की कांग्रेस' हो. कहना गलत नहीं होगा कि 16 मई को कांग्रेस से इस्तीफा देने वाले सिब्बल को शायद इसी वजह के चलते गांधी परिवार की ओर से रोकने की कोई कोशिश नहीं की गई. क्योंकि, वह गांधी परिवार की नेतृत्व क्षमता को लगातार चुनौती दे रहे थे.
वैसे, सिब्बल का जाना कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका है. क्योंकि, कपिल सिब्बल कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में शुमार थे. और, गांधी परिवार समेत कांग्रेस की कई कानूनी मामलों में मदद भी किया करते थे. हालांकि, उदयपुर में हुए कांग्रेस के चिंतन शिविर के बाद सुनील जाखड़ और हार्दिक पटेल के बाद अब कपिल सिब्बल भी पार्टी छोड़ चुके हैं. तो, यह कांग्रेस के लिए एक बड़ा सियासी नुकसान ही माना जाएगा. क्योंकि, 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के पक्ष में बनाए जा रहे माहौल को सभी विपक्षी दलों के बीच पहुंचाने में सिब्बल एक बड़ी भूमिका निभा सकते थे.
भाजपा को कैसे पहुंचाएंगे सियासी नफा?
2024 के लोकसभा चुनाव के लिए भले ही कांग्रेस ने टास्क फोर्स और पॉलिटिकल अफेयर्स कमेटी बना ली हो. लेकिन, इतना तय है कि कपिल सिब्बल अब कांग्रेस और गांधी परिवार पर निशाना साधने में संकोच नहीं करेंगे. आसान शब्दों में कहा जाए, तो जो काम भाजपा को करना था. वह काम अब राज्यसभा में कपिल सिब्बल करेंगे. दिल्ली की सियासत में धमक रखने वाले कपिल सिब्बल कांग्रेस के लिए हर कदम पर मुसीबत बढ़ाने की कोशिश करेंगे. बहुत हद तक संभव है कि भाजपा-विरोधी और गैर-कांग्रेसी तीसरे मोर्चे को बनाने की कवायद में कपिल सिब्बल का इस्तेमाल किया जाए. और, कपिल सिब्बल के विपक्षी दलों के शीर्ष नेताओं से संबंधों को देखते हुए ये बहुत मुश्किल भी नजर नहीं आता है. कांग्रेस और गांधी परिवार के खिलाफ सिब्बल की ये तमाम कोशिशें भाजपा को ही फायदा पहुंचाती नजर आ रही हैं.
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