अभी तो नतीजे भी नहीं आए, फिर ईवीएम और प्रशासन को दोषी क्यों ठहराने लग पड़े हैं अखिलेश यादव
यूपी विधानसभा चुनावों के बाद समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) का छोटे सियासी दलों को साथ लाने का प्रयोग विफल रहा है. इससे पहले लोकसभा चुनाव में बसपा सुप्रीमो मायावती से गठबंधन करना भी सपा को ही भारी पड़ा था. वहीं, यूपी में हालिया हुए उपचुनाव के नतीजे सपा के पक्ष में नहीं रहे हैं. जो अखिलेश यादव की राजनीति पर प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं.
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मैनपुरी लोकसभा सीट और रामपुर विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में अब तक समाजवादी पार्टी की एकतरफा जीत के दावे किए जा रहे थे. लेकिन, वोटिंग शुरू होने के साथ ही समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मतदान में ईवीएम और प्रशासन के जरिये गड़बड़ी करवाने के आरोप लगा दिए हैं. इतना ही नहीं, अखिलेश यादव ने चुनाव आयोग पर भी गंभीर आरोप जड़ दिए हैं. लेकिन, अहम सवाल ये है कि अभी तो नतीजे भी नहीं आए. फिर अखिलेश यादव ईवीएम और प्रशासन को दोषी क्यों ठहराने में जुटे हैं?
मैनपुरी और रामपुर उपचुनाव अखिलेश यादव के लिए प्रतिष्ठा के साथ ही वर्चस्व की जंग है.
अखिलेश यादव के सामने सबसे बड़ी चुनौती ये है कि मैनपुरी और रामपुर में हो रहे उपचुनावों में सपा का जीत हासिल करना बहुत जरूरी है. हालांकि, मैनपुरी लोकसभी सीट दिवंगत मुलायम सिंह यादव की सीट रही है. तो, यहां पर सपा की जीत बहुत मुश्किल नजर नहीं आती है. क्योंकि, अखिलेश यादव ने इस सीट से पत्नी डिंपल यादव को प्रत्याशी बनाकर सहानुभूति वोट पाने का बड़ा दांव खेला है. लेकिन, भाजपा ने शिवपाल यादव के करीबी रहे रघुराज सिंह शाक्य को टिकट देकर मुकाबला कांटे का बना दिया है. ठीक इसी तरह रामपुर विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में समाजवादी पार्टी ने आजम खान के विश्वासपात्र आसिम राजा को चुनावी मैदान में उतारा है. लेकिन, यहां आजम खान की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. और, भाजपा ने रामपुर उपचुनाव में जिस तरह से ताकत झोंकी है. नतीजे किसी के भी पक्ष में आ सकते हैं.
अगर मैनपुरी और रामपुर में से किसी एक सीट पर भी समाजवादी पार्टी जीत हासिल करने से चूक जाती है. तो, ये 'यादव कुनबे' के लगातार टूट रहे वर्चस्व का इशारा बन जाएगा. और, इसका सीधा असर 2024 के लोकसभा चुनाव पर पड़ेगा. क्योंकि, इससे पहले आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा उपचुनाव के नतीजों ने भी सबको चौंका दिया था. ये समाजवादी पार्टी के वो दो मजबूत किले थे. जो भाजपा द्वारा जीते नहीं जा सके थे. लेकिन, यूपी विधानसभा चुनाव के बाद जो हवा बदली. तो, आजमगढ़ और रामपुर में भी बदलाव की बयार चल पड़ी. और, इसी जीत के भरोसे पर भाजपा ने मैनपुरी और रामपुर में फिर से समाजवादी पार्टी को घेरने की कोशिश की है.
अगर इन दोनों सीटों पर समाजवादी पार्टी को शिकस्त मिलती है. तो, इस स्थिति में अखिलेश यादव के सामने ईवीएम और प्रशासन पर दोषारोपण के साथ चुनाव आयोग पर धांधली करवाने के आरोपों के अलावा कोई और रास्ता नजर भी नहीं आता है. क्योंकि, इन आरोपों सहारे अखिलेश समाजवादी पार्टी के वोटबैंक को छिटकने से बचाने की कोशिश करेंगे. वैसे भी बीते कुछ समय में मुस्लिम मतदाताओं ने भी केंद्र सरकार की ओर से मिलने वाली योजनाओं के लाभ के चलते भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है.
इतना ही नहीं, अखिलेश यादव के सहयोगी दलों के साथ भी रिश्ते अब पहले जैसे नहीं रह गए हैं. क्योंकि, समाजवादी पार्टी का साथ मिलकर छोटे सियासी दल पहले से कहीं ज्यादा मजबूत स्थिति में पहुंच चुके हैं. सुभासपा, महान दल जैसी सियासी पार्टियां पहले ही अखिलेश यादव को दांव दे चुकी हैं. इसलिए अगर मैनपुरी और रामपुर में हार होती है. तो, अखिलेश यादव के लिए 2024 के लोकसभा चुनाव में स्थितियां बदतर हो जाएंगी. क्योंकि, बसपा सुप्रीमो मायावती आजमगढ़ जैसा सियासी प्रयोग करने से पीछे नहीं हटेंगी. जिसका खामियाजा समाजवादी पार्टी को उठाना पड़ेगा.
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