अमेरिकी नीति: ईरान पर चिंता, पाकिस्तान को निमंत्रण
दिलचस्प बात है कि जिस अमेरिका को ईरान के पास परमाणु बम होने की खबर से मिर्ची लगती थी उसे पाकिस्तान की ओर से भारत को दी जा रही धमकी पर कुछ नहीं कहना है. इस कहते हैं दोहरी नीति.
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दुनियादारी निभाओ, धरती के किसी कोने में कुछ भी हो तो फौरन चिंता वाली मुद्रा का परिचय दो और जहां अपने मतलब की बात हो तो सारे नियम-कानून ताक पर रख दो. यही है अमेरिकी नीति. एक नहीं कई बार अमेरिका साबित कर चुका है, उसकी असल नीति क्या है. यह बात इसलिए कि अमेरिका के ही एक बुलेटिन ऑफ एटॉमिक साइंटिस्ट्स की ताजा न्यूक्लियर नोटबुक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि पाकिस्तान अगले दस वर्षों में विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी परमाणु ताकत बन जाएगा.
इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष-2025 तक पाकिस्तान के पास 220-250 परमाणु हथियार होंगे. अनुमान के मुताबिक फिलहाल उसके पास 110 से 130 परमाणु हथियारों का जखीरा है. अब बात अमेरिकी नीति की. अमेरिका ने ईरान के मामले में कैसी हाय-तौबा मचाई थी. यह सब जानते हैं. अमेरिका की ओर से तमाम दावे किए गए कि ईरान के पास बेहद खतरनाक हथियार हैं जो दुनिया के लिए खतरा साबित हो सकते हैं. अमेरिकी दबाव में ही ईरान की पूरी तलाशी भी ले ली गई लेकिन हाथ कुछ नहीं लगा. इसके बावजूद अमेरिका दबाव बनाने में कामयाब रहा और ईरान को विशेष शर्तों वाली डील के लिए आगे आना पड़ा.
अब उसी अमेरिका को पाकिस्तान से कोई समस्या नहीं है. इसके उलट नवाज शरीफ अमेरिका में मेहमाननवाजी का लुत्फ उठा रहे हैं. पाकिस्तान ने एक दिन पहले ही यह खुलासा किया कि उसने भारत से सटी सीमा पर कम दूरी की मारक क्षमता वाले परमाणु बम लगा रखे हैं. लेकिन दिलचस्प बात है कि जिस अमेरिका को ईरान के पास परमाणु बम होने की खबर से मिर्ची लगती थी उसे पाकिस्तान की ओर से भारत को दी जा रही धमकी पर कुछ नहीं कहना है. इस कहते हैं दोहरी नीति.
वैसे, पाकिस्तान में हथियारों की सुरक्षा कैसी है, इसकी एक बानगी वर्ष-2004 में ही देखने को मिल गई थी. तब पाकिस्तान के सबसे बड़े परमाणु वैज्ञानिकों में से एक अब्दुल कादिर खान पर आरोप लगे कि वे पाकिस्तान के परमाणु हथियारों से जुड़ी बेहद गुप्त बातें दूसरे देशों को बेच रहे हैं. अमेरिका हालांकि तब भी केवल खानापूर्ति करता नजर आया.
ऐसे आरोप थे कि कादिर संभवत: हथियारों से जुड़ी गुप्त बातें उत्तर कोरिया को बेच रहे थे. लेकिन क्या पता हथियारों से जुड़ी बातें उत्तर करिया से आगे भी पहुंची हों. क्या पता वे हथियार किसी आतंकी संगठन के हाथ भी लगे हों. कादिर खान को इन आरोपों के चलते नजरबंद किया गया लेकिन इस्लामाबाद हाई कोर्ट ने 2009 में उन्हें आजाद करने का आदेश दिया. अमेरिका इन पूरे घटनाक्रमों के बीच मूक नजर आया.
अमेरिका ने हाल में अपनी पहले से तय नीति में बदलाव करते हुए कहा कि उसके 5,500 सैनिक 2017 तक अफगानिस्तानी जमीन पर मौजूद रहेंगे. इसका सीधा मतलब है कि उसे पाकिस्तान की जरूरत पड़ेगी. वैसे भी पिछले 14 वर्षों में अमेरिका 20 बिलियन डॉलर से ज्यादा की मदद आतंकवाद से लड़ाई के नाम पर पाकिस्तान को दे चुका है. पाकिस्तान इन पैसों का इस्तेमाल कितनी गंभीरता से आतंक के खिलाफ करता रहा है, यह दुनिया जानती है. बहरहाल, पाकिस्तान को भी पता है कि अमेरिका जब तक अफगानिस्तान में मौजूद है, उसे कीमत मिलती रहेगी. इसलिए दोनों अपने कारोबार में जुटे हैं. पाकिस्तान में तो कुव्वत है नहीं. इसलिए बस देखते रहिए, जरूरत पूरी होने के बाद अमेरिका कब पाकिस्तान को झिड़की देता है.
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