...तो साबित हो गया चुनाव आयोग की ईवीएम हैक नहीं की जा सकती !
इस चुनौती में हिस्सा लेने के लिए नाम देने की आखिरी तारीख 26 मई तक ही है, जबकि ईवीएम पर आरोप लगाने वाले किसी भी दल ने इस चुनौती को स्वीकार नहीं किया है. यानी अग्नि परीक्षा से पहले ही ईवीएम बेदाग साबित हो गई है.
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हाल ही में संपन्न हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा की बम्पर विजय से बौखलाए विपक्षी दलों ने अपने बचाव में और कोई दलील न देखकर एक नया शिगूफा उछाल दिया. शिगूफा यह कि भाजपा ने यह जीत ईवीएम में हेर-फेर करके प्राप्त की है. इस शिगूफे की शुरुआत यूपी में अपना सूपड़ा सा होने से बौखलाई मायावती ने की जिसे पंजाब में हार से बौखलाए अरविन्द केजरीवाल एंड कंपनी ने लपक लिया. इसके बाद ये मामला धीरे-धीरे सभी विपक्षी दलों के लिए हार स्वीकारने से बचने की एक लचर दलील बन गया.
चाहें वो कांग्रेस हो, समाजवादी पार्टी हो या तृणमूल कांग्रेस कमोबेश सबने इस मुद्दे पर शोर मचाना शुरू कर दिया. अरविन्द केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी ने इस मसले को सबसे अधिक तूल देने का काम किया. यहां तक कि दिल्ली विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर उसमें ईवीएम हैकिंग के कथित डेमो प्रस्तुत करने की पूरी नौटंकी अरविन्द केजरीवाल ने देश के सामने की.
हालांकि ईवीएम पर आरोप लगाने वाले इन दलों में से कोई भी अबतक एक भी ठोस तथ्य प्रस्तुत नहीं कर सका है कि ईवीएम कैसे हैक की जा सकती है. केजरीवाल इसका भी जवाब नहीं दे पाए कि अगर ईवीएम में खराबी है, तो फिर 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में उन्हें 67 सीटें कैसे मिल गईं. उचित होता कि ईवीएम में खराबी का आरोप लगाने से पहले अरविन्द केजरीवाल ने इस सवाल का जवाब दे दिया होता. इसी तरह कांग्रेस आदि दलों को भी ईवीएम पर आरोप लगाने से पहले अपनी चुनावी जीतों का हिसाब-किताब बता देना चाहिए था. मगर, इन बातों पर ये लोग सन्नाटे की चादर ओढ़े ही नजर आए.
बहरहाल, विपक्षी दलों के आरोपों से आजिज आकर चुनाव आयोग ने अब इन दलों को चुनौती दी है कि वे आकर ईवीएम हैक करके दिखाएं. आगामी 3 जून से इस चुनौती की शुरुआत होगी. इसके तहत आरोप लगाने वाले दलों को पिछले विधानसभा चुनावों में प्रयुक्त हुई ईवीएम हैक करने के लिए दी जाएगी, जिसे उन्हें हैक करना होगा. लेकिन, दिलचस्प बात यह है कि इस चुनौती में हिस्सा लेने के लिए नाम देने की आखिरी तारीख 26 मई तक ही है, जबकि ईवीएम पर आरोप लगाने वाले किसी भी दल ने इस चुनौती को स्वीकार नहीं किया है. सवाल उठता है कि ईवीएम पर आरोप लगाने में तो ये राजनीतिक दल जिस तरह से बढ़-चढ़कर बोल रहे थे, अब चुनाव आयोग की इस चुनौती को स्वीकारने में सन्नाटा मारे क्यों बैठे हैं ? अगर उनके आरोपों में दम है, तो इस चुनौती को स्वीकारते क्यों नहीं ?
चुनाव आयोग की चुनौती पर इन दलों का इस तरह से चुप्पी साधे रहने का कहीं न कहीं यही मतलब निकलता है कि इन्हें ईवीएम पर अपने आरोपों को साबित कर पाने में नाकामयाब रहने का भय सता रहा है. हवा-हवाई आरोपों का यही हश्र होता है. कांग्रेस पहले ही इस चुनौती से पीछे हट चुकी है. जिन मायावती की ओर से सबसे पहले ईवीएम को लेकर आपत्ति जताई गई थी, उनका भी पता नहीं है. ईवीएम को लेकर सबसे आक्रामक रहे अरविंद केजरीवाल की ओर से कहा जा रहा है कि उन्हें ईवीएम की मदरबोर्ड से छेड़छाड़ करने की इजाजत दी जाए. चुनाव आयोग का तर्क है कि पार्टियों को ईवीएम हैक करने की छूट दी गई, लेकिन उन्हें ऐसा दायरे में रहकर ही करना होगा.
यानी ईवीएम को खोले बगैर हैक कर पाना राजनीतिक दलों के लिए संभव नहीं है. क्योंकि, चुनाव आयोग समेत तमाम तकनीकी विशेषज्ञों द्वारा यह स्पष्ट किया जा चुका है कि ईवीएम हैक नहीं की जा सकती. ऐसे में, ये दल अपनी विफलता को छिपाने के लिए कोई न कोई नया बहाना लेकर ज़रूर प्रकट होंगे. मगर, अब इनका कोई भी दांव नहीं चलने वाला है.
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