केजरीवाल फंस गए हैं द कश्मीर फाइल्स के चक्रव्यूह में!
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) 'द कश्मीर फाइल्स' (The Kashmir Files) के खिलाफ तीखी टिप्पणी करके फंस गए लगते हैं. और, अब उनके बयानों से भड़की 'आग' से लड़ने को मजबूर हो गए हैं. आखिर उनके जैसे एक चतुर नेता के सामने ऐसे हालात क्यों बन गए हैं?
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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इन दिनों बहुत ज्यादा इंटरव्यू और बयान दे रहे हैं. ये चौंकाने वाला है क्योंकि, आमतौर पर ऐसी बातचीत चुनावों के दौरान ही बड़ी संख्या में होती है. उनके भरोसेमंद सहयोगी मनीष सिसोदिया भी मीडिया से खूब बातें कर रहे हैं. बहुत लोग कह सकते हैं कि अरविंद केजरीवाल पिछले हफ्ते 'कश्मीरी पंडितों के मामले पर' की गई अपनी टिप्पणी के डैमेज कंट्रोल की कोशिश कर रहे हैं. आइए पहले आम आदमी पार्टी के नेता ने दिल्ली विधानसभा में क्या कहा था, उस पर नजर डाल लेते हैं.
दरअसल, भाजपा विधायकों ने आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार से 'द कश्मीर फाइल्स' को टैक्स फ्री (टिकट सस्ती करने के लिए भाजपा शासित प्रदेशों की तरह दिल्ली सरकार भी रेवेन्यू टैक्स हटा दे) करने की मांग की थी. और, अरविंद केजरीवाल ने इस पर सवाल उठाते हुए कहा था कि वो (भाजपा नेता) क्यों एक झूठी फिल्म (जो झूठ बताती है) के पोस्टर लगा रहे हैं? अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि भाजपा को फिल्म निर्देशक विवेक अग्निहोत्री से 'द कश्मीर फाइल्स' को यूट्यूब पर अपलोड करने के लिए कहना चाहिए, जिससे सभी लोग इसे फ्री में देख सकें. दिल्ली के सीएम ने ये भी कहा था कि कश्मीरी पंडितों के पलायन के बाद पिछले 20-25 सालों में भाजपा 13 साल सत्ता में रही है. बीते आठ सालों से भाजपा केंद्र की सत्ता में है. लेकिन, कश्मीरी पंडितों के लिए कुछ नहीं किया गया.
अरविंद केजरीवाल के इस बयान ने आलोचनाओं की आग को हवा दे दी. फिल्म के निर्देशक से लेकर एक्टर्स, भाजपा और राइट विंग से जुड़े लोगों ने केजरीवाल की आलोचना शुरू कर दी. लोगों ने सवाल उठाया कि आम आदमी पार्टी की सरकार ने दिल्ली में स्वरा भास्कर की फिल्म निल बटे सन्नाटा, तापसी पन्नू की फिल्म सांड की आंख और अन्य फिल्मों को टैक्स फ्री क्यों किया? भाजपा नेताओं ने ये भी पूछा कि अरविंद केजरीवाल अपनी सरकार के विज्ञापनों को मीडिया प्लेटफॉर्म पर दिखाने के लिए टैक्सपेयर्स का पैसा क्यों खर्च करते हैं, उन्हें यूट्यूब पर अपलोड क्यों नहीं करते हैं? लेकिन, इन तमाम सवालों के बीच केजरीवाल की सबसे तीखी आलोचना इसलिए हुई क्योंकि वह 'द कश्मीर फाइल्स' को झूठ बोलने वाली फिल्म बताते हुए हंस रहे थे. ये आरोप बहुत तेजी के साथ फैला कि वह कश्मीरी पंडितों की दुर्दशा पर हंस रहे थे. इसी के चलते अरविंद केजरीवाल को इस भावनात्मक मुद्दे पर अपना स्टैंड साफ करने के लिए इंटरव्यू की झड़ी लगाने को मजबूर होना पड़ रहा है.
द कश्मीर फाइल्स पर टिप्पणी कर केजरीवाल ने चिंगारी को भड़कती आग बना दिया.
अरविंद केजरीवाल ने अब कहा है कि वह भाजपा की नौटंकी पर हंस रहे थे, नाकि कश्मीरी पंडितों पर. उन्होंने ये भी साफ किया कि कश्मीरी पंडितों को 32 साल पहले घाटी में हुए भयावह त्रासदी और अन्याय पर पुनर्वास की जरूरत है नाकि किसी फिल्म की. केजरीवाल ने ये भी दावा किया कि दिल्ली में पिछली भाजपा और कांग्रेस सरकारों ने नहीं, बल्कि आम आदमी पार्टी की सरकार ने दिल्ली में कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वाले कश्मीरी पंडितों को पर्मानेंट नौकरी दी. केजरीवाल ने कहा कि भाजपा के लिए 'द कश्मीर फाइल्स' अहम है. मेरे लिए कश्मीरी पंडित ज्यादा जरूरी हैं. अरविंद केजरीवाल ने अब अपने बयान में ये भी जोड़ लिया है कि उन्होंने फिल्म नहीं देखी है. लेकिन, स्पष्टीकरण अक्सर ऐसे तपते हुए मुद्दों पर कुछ खास असर डाल नहीं पाते हैं.
आइए पहले 'द कश्मीर फाइल्स' की कहानी पर नजर डालते हैं. एक साधारण सी समीक्षा के तौर पर मान लें कि फिल्म (जो सफल है) 1990 में घाटी से हजारों कश्मीरी पंडितों के नरसंहार, यातना और पलायन के इर्द-गिर्द घूमती है, और इसके लिए 'व्यवस्था, मुख्यधारा के मीडिया और राजनेताओं' को 'सच्चाई छिपाने' के लिए दोषी ठहराती है. दूसरी ओर, आलोचकों के एक वर्ग ने कहा है कि 'फिल्म के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि यह मुस्लिम विरोधी भावनाओं को बढ़ावा देती है और कश्मीर के बाहर भी अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाने की कोशिश करती है.' जबकि, ऐसा इसलिए है क्योंकि वे फिल्म का संदर्भ भूल रहे हैं. और, जब आप संदर्भ से चूक जाते हैं, तो सब कुछ काले और सफेद, अच्छे और बुरे, सहयोगियों और दुश्मनों, अपराधियों और पीड़ितों के बीच विभाजित हो जाता है. संदर्भ उन स्याह रंगों को सामने लाता है, जो हमें अपने अतीत, वर्तमान और भविष्य को समझने में मदद करते हैं.
लेकिन, फिल्म समीक्षा किसी भी हाल में मुख्यमंत्री का काम नही है. हालांकि, अरविंद केजरीवाल ट्विटर पर अक्सर ऐसा करते हुए नजर आए हैं. ये खासतौर से तब और महत्वपूर्ण हो जाता है, जब हम कश्मीर की बात कर रहे हैं. फिल्म कैसे बनी है, यह दर्शकों पर क्या असर डाल रही है और विवेक अग्निहोत्री की सिनेमाई साख क्या है? इन सबसे परे अरविंद केजरीवाल ने इस तरह के सच बनाम झूठ में उलझ कर खुद ही एक पॉलिटिकल सेल्फ गोल कर लिया है. अरविंद केजरीवाल अब कितनी भी सफाई दें, इस मामले में पूरी तरह से बेदाग नहीं निकल पाएंगे. क्योंकि, वास्तव में फिल्म अब कश्मीरी पंडितों के बारे में कम और बड़े दक्षिणपंथी राजनेताओं, बुद्धिजीवियों और लाखों आम लोगों के बारे में है, जो इस तरह के ध्रुवीकरण वाले नैरेटिव को आगे बढ़ाते हैं. भले ही उन्हें इस धुव्रीकरण के नैरेटिव के बारे में अच्छी तरह से जानकारी न हो.
दिल्ली के बाद अब आम आदमी पार्टी पंजाब में भी सरकार चला रही है. और, ऐसा लगता है कि तेजी से सिमट रही कांग्रेस की वजह से बनने वाली जगह को भरने की क्षमता भी रखती है (वरिष्ठ भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा है कि वह चाहते हैं कि कांग्रेस बची रहे. यह एक वास्तविक इच्छा हो सकती है, लेकिन यह कोई रहस्य नहीं है कि भाजपा के चाहने वाले नहीं चाहते हैं कि भगवा विरोधी वोटों का बंटवारा बंद हो जाए).
आम आदमी पार्टी इकलौती ऐसी पार्टी है, जो भाजपा और कांग्रेस के बाद बहुमत के साथ एक से ज्यादा राज्यों में सरकार चला रही है. फिलहाल, अरविंद केजरीवाल ने राष्ट्रीय भूमिका हासिल करने के लिए टीएमसी की ममता बनर्जी को पछाड़ दिया है. फिर हम भले ही 2029 की बात क्यों ना कर रहे हों. क्योंकि, 2024 में पीएम मोदी अपने तीसरे कार्यकाल के लिए अभी से कमर कस चुके हैं. आने वाले कई राज्यों के चुनावों (हिमाचल प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान) में AAP को उम्मीद है कि वह भाजपा को चुनौती देगी.
कश्मीरी पंडितों के मामले पर अरविंद केजरीवाल की ओर से लगातार दी जा रही सफाई से ये स्पष्ट हो जाता है कि वह अच्छी तरह से जानते हैं कि भाजपा उन्हें कश्मीरी पंडित विरोधी और इन राज्यों में हिंदू विरोधी के तौर पर पेश करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी. AAP में भाजपा को कांग्रेस जैसा ही एक संभावित पंचिंग बैग दिखाई दे सकता है. लेकिन, अरविंद केजरीवाल खुद को इस तरह से बंधा हुआ क्यों पाते हैं? दरअसल, अरविंद केजरीवाल की चुनौतियां और अंतर्विरोध यही है कि वह बीजेपी से लड़ना चाहते हैं. लेकिन, ऐसा करने में उन्हें बीजेपी की तरह दिखने में कोई दिक्कत नहीं है. वह गर्व से मंदिरों में पूजा करते हैं, दिल्ली के सरकारी स्कूलों में देशभक्ति (देशभक्ति) पाठ्यक्रम है, मुफ्त तीर्थयात्रा और ऐसी अन्य कारणों को बढ़ावा देने के लिए सरकारी योजनाएं चलाते हैं. बीते मंगलवार को अरविंद केजरीवाल ने ट्विटर पर अपना ताजा विधानसभा भाषण पोस्ट किया, जिसमें कहा गया कि देश उनके लिए सभी चीजों से ऊपर है. उन्होंने एक घंटे बाद ट्वीट किया, इस बार यह कहते हुए कि उनकी पार्टी की विचारधारा में कट्टर राष्ट्रवाद सबसे ऊपर है और 'हम देश के लिए मरने के लिए तैयार हैं'.
आम आदमी पार्टी की विचारधारा के तीन स्तंभ हैं -1. कट्टर देशप्रेम2. कट्टर ईमानदारी3. इंसानियतदिल दिया है, जाँ भी देंगे,ए वतन तेरे लिए
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) March 29, 2022
मेरे लिए मेरा भारत सबसे ऊपर है और अपने देश को बेहतर बनाने के लिए अपनी आख़िरी साँस तक मेहनत करता रहूँगा। दिल्ली विधानसभा में सम्बोधन | LIVE https://t.co/ameJEQxzOa
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) March 29, 2022
अरविंद केजरीवाल ने जम्मू और कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटाए जाने का समर्थन किया था. साथ ही क्षेत्र की 'शांति और विकास' के लिए तत्कालीन राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांटने पर इसे 'राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा' बताते हुए मोदी सरकार की 'हां में हां' मिलाई थी. दरअसल, अनुच्छेद 370 के हटाए जाने के प्रस्ताव का अरविंद केजरीवाल द्वारा समर्थन किए जाने की भी एक कहानी है. तीन साल पहले पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में भारत की सर्जिकल स्ट्राइक पर केजरीवाल के सवालों ने उन्हें राष्ट्रवाद की बहस में गलत पक्ष के साथ खड़ा कर दिया था. इसकी वजह से आम आदमी पार्टी को टीवी स्टूडियो में बहुत कुछ समझाने की जरूरत पड़ी थी. जबकि, भाजपा उन्हें 'एंटी नेशनल' के रंग में रंगती जा रही थी. ये वह समय था, जब अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी खुद को खुलेआम किसी भी धर्म से जोड़ने में कतराती थी. उदाहरण के तौर पर आम आदमी पार्टी ने तत्कालीन विधानसभा चुनाव में दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम का समर्थन लेने से इनकार कर दिया था. हालांकि, आम आदमी पार्टी के मुखिया केजरीवाल हिंदू धर्म के लिए समर्पित नजर आने वाले अपने व्यक्तित्व को प्रदर्शित करने से कभी नहीं हिचकिचाए.
'राष्ट्रवाद' की बात करते और 'सॉफ्ट हिंदुत्व' को धता बताते अरविंद केजरीवाल निश्चित तौर से भाजपा के नैरेटिव से मुकाबला कर रहे हैं. लेकिन, यह दांव केजरीवाल की राजनीति के खिलाफ भी काम कर सकता है. और, सीधे तौर पर उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पूरा करने के रास्ते का कांटा बन सकता है. वैसे, केजरीवाल बहुत सावधानी से खुद को राष्ट्रीय राजनीति में एक गैर-हिंदू-विरोधी और गैर-मुस्लिम-समर्थक विकल्प के रूप में पेश कर रहे हैं. लेकिन, द कश्मीर फाइल्स पर अरविंद केजरीवाल की टिप्पणी ने उन्हें एक बार फिर से बहस में गलत पक्ष के साथ खड़ा कर दिया है. केजरीवाल की राजनीति में यही वह अंतर्विरोध है, जिसने उन्हें बांध के रखा हुआ है. जब आपने फिल्म नहीं देखी है, तो उसकी समीक्षा क्यों कर रहे हैं?
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