जानिए, पार्लियामेंट अटैक के बाद वाजपेयी ने क्यों नहीं किया था पाकिस्तान पर हमला
पंडित जसराज ने तब अटल बिहारी वाजपेयी से पूछा था हम पाकिस्तान को मुंह तोड़ जवाब क्यों नहीं दे रहे. इस पर वाजपेयी ने जो जवाब दिया था, उसे भारत की राजनीतिक इच्छा-शक्ति का आइना माना जा सकता है.
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जाने-माने शास्त्रीय गायक पंडित जसराज से बातचीत तो किसी और विषय पर हो रही थी, लेकिन कब यह उरी हमले से होते हुए भारत-पाक संबंध और अटल बिहारी वाजपेयी तक चली गई, समझ ही नहीं आया.
बात ही बात में पंडित जसराज ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ हुई अपनी एक मुलाकात की जिक्र किया. यह मुलाकात संसद हमले के कुछ ही दिन बाद हुई थी.
पंडित जसराज ने तब अटलजी से सवाल किया था, कि देश में बड़ा गुस्सा है. क्या जंग होगी? इस पर वे बोले, पंडित जी! पाकिस्तान को तो तीस मिनट में दुनिया के नक्शे से हटा सकते हैं. बिल्कुल साफ. लेकिन इस सब में देश तीस साल पीछे ऐसे चला जाएगा कि हम आप तब के हालात के बारे में सोच भी नहीं सकते. युद्ध के बगैर शत्रु को हराने के उपाय भी हैं.
13 दिसंबर 2001 के दिन संसद पर हमले के बाद देश में यही कहा जा रहा था कि आखिर हम किस दिन की राह देख रहे हैं. पाकिस्तान को नेस्तनाबूद क्यों नहीं कर रहे.
संसद पर हमले के बाद क्यों नहीं किया भारत ने पाकिस्तान पर हमला.. |
पंडित जसराज जी को आज भी याद है 2002 के मार्च की वो शाम. तब अटल बिहारी वाजपेयी जी से रेसकोर्स रोड पर हुई कई मुलाकातों में से वो शाम कुछ खास थी. पंडित जी बताते हैं कि तब वाजपेयी जी और मैं ही कमरे में थे कोई सिक्योरिटी भी नहीं. मैंने वाजपेयी जी से पूछा था- हुजूर..हम क्यों इंतजार कर रहे हैं. अब तो हमारी संसद पर भी नापाक पाकिस्तानियों ने हमला कर दिया. हम पाकिस्तान को मुंह तोड़ जवाब क्यों नहीं दे रहे.
इस पर वाजपेयी का तपाक से जवाब आया, 'पंडित जी....युद्ध से जवाब देना बहुत आसान है. भारत सिर्फ तीस मिनट में पाकिस्तान को दुनिया के नक्शे से हटा सकता है. लेकिन उस तीस मिनट के युद्ध के बाद हमारा देश जो तीस साल पीछे जाएगा उसकी कल्पना भी हम और आप नहीं कर सकते. सोच भी नहीं सकते कि नई नस्लें कैसे उसकी विभीषिका झेलेंगी.'
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तब पंडित जी को लगा था कि भारत अब भी पंचशील जैसे सिद्धांतों का पुजारी है. और वाजपेयी जी की उम्र भी हो गई है. शायद ऐसी सोच उम्र के असर से हो. तब वाजपेयी की बात का असली मर्म समझ में नहीं आया था. लेकिन इतने साल बाद दुनिया के अनुभव हासिल हुए तो आज पता चलता है कि वाजपेयी जी की सोच कितनी आगे की थी. इराक और अफगानिस्तान से दो दो हाथ करने वाले अमेरिका की दशा देखकर सब कुछ समझ में आ जाता है. अब पता चलता है कि उस विराट सोच का. जब इराक और अफगानिस्तान के युद्ध के इतने साल बाद भी अमेरिका को देखते हैं.
अटल जी और पंडित जसराज की एक मुलाकात. |
अमेरिका ने इराक और अफगानिस्तान में युद्ध तो लड़ा और अपने मन की कर भी ली. लेकिन उन दो सैन्य कार्रवाइयों में अमेरिका जैसी मजबूत अर्थव्यवस्था को कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है, इसकी असलियत अमेरिकी जनता और शासन के अलावा जान पाना बेहद मुश्किल है.
अब लगता है कि युद्ध तो 2001 या 2002 में भी लड़कर पाकिस्तान को करारा सबक सिखाया जा सकता था. लेकिन हीरोशिमा और नागासाकी की तस्वीर जेहन के आगे आते ही आत्मा कांप जाती है. हम पाक पर हमला कर देते. जीत भी जाते. लेकिन पाकिस्तान चुप तो बैठता नहीं. हमारा थोड़ा ही सही लेकिन नुकसान तो होता. वो थोड़ा भी जहर जब हमारी नस्लों तक रिसता रहता तो उसे देखकर देखकर ज्यादा तकलीफ होती.
आज भी युद्ध तमाम समस्याओं का हल नहीं है. उसके बगैर भी उससे पहले भी उपाय हैं. पहले तो कार्रवाई का रोडमैप तैयार करें फिर उन पर शिद्दत से अमल हो. इसमें सूझबूझ और सख्त इरादे बेहद जरूरी हैं. तभी पाकिस्तान जैसे ढीठ औऱ मक्कार को सबक सिखाया जा सकता है. कूटनीतिक उपायों से आतंकवाद के जनक और पालक पाकिस्तान को पहले अलग थलग किया जाय फिर चारों ओर से घेर कर मजा चखाया जाय.
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सीधा युद्ध किसी के भी हित में नहीं होगा. क्योंकि इससे नुकसान मानवता का है... सरहदें और सियासतें तो बिगड़ कर फिर बन सकती हैं लेकिन मानवता का क्या होगा... बड़ा सवाल अब भी यही है और तब भी यही होगा....
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