दिल्ली विधानसभा में टीपू सुल्तान की तस्वीर: बवाल कहां तक सही, कहां तक गलत?
दिल्ली विधानसभा में टीपू सुल्तान की तस्वीर लगाने के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल विपक्ष की आलोचनाओं का शिकार हो रहे हैं. ऐसे में प्रश्न ये उठता है कि आखिर ये आलोचना कहां तक सही है.
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बीते दिनों दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा में तात्या टोपे, नानाराव पेशवा, लक्ष्मीबाई और बिरसा मुंडा जैसी महान शख्सियतों की तस्वीरें लगवाई थीं. जिसके बाद भाजपा के विधायक ओपी शर्मा ने टीपू सुल्तान की तस्वीर को विधानसभा में लगाने को जनता की भावना को आहत करने वाला कदम बताया था. जिसकी आम आदमी पार्टी ने भी कड़ी आलोचना की. विधानसभा अध्यक्ष रामनिवास गोयल ने टीपू सुल्तान की तस्वीर को लगाना गर्व की बात बताते हुए कहा था कि “टीपू सुल्तान ने अंग्रेजों से जमकर लोहा लिया था. इस मुद्दे पर चारों ओर से प्रतिक्रियाएं आईं और सवाल भी उठाए गए.
बीते दिनों टीपू सुल्तान को लेकर दिल्ली विधानसभा में भारी हंगामा हुआ था
बहरहाल, टीपू सुल्तान के कार्यकाल और भारतीय इतिहास पर नजर डालें तो मिलता है कि, ब्रिटिश सरकार भारत पर कब्जा करने से पहले अगर किसी चीज से डरती थी तो उसकी एक अहम वजह और कोई नहीं बल्कि टीपू और उनकी सेना थी. तब टीपू सुल्तान की सेना को भारत की एक बड़ी ताकत के रूप में देखा जाता था. ध्यान रहे कि पूर्व राष्ट्रपति और अंतरिक्ष वैज्ञानिक अब्दुल कलाम के जीवन परिचय अग्नि की उड़ान में भी इस इतिहास का जिक्र है. जिसके अनुसार टीपू सुल्तान की सेना में 700 से ज्यादा रॉकेट थे. यही नहीं, टीपू की सेना में 27 ब्रिगेड थीं जिन्हें “कुशून कहा जाता था. इसके अलावा ब्रिगेड में एक रॉकेट कंपनी भी थी जो “जर्क्स” के नाम से मशहूर थी. रॉकेट हथियारों की ताकत भारत की क्षमता कई गुना बढ़ा रही थी.
लेकिन टीपू सुल्तानब्रिटिश सेना से 1799 के युद्ध में हार गया और अंग्रेजों द्वारा उसकी रॉकेट प्रणालियों को कब्जे में ले लिया गया. करीब 900 रॉकेट उप प्राणालियां जब्त कर ब्रिटिश सेना ने अपने पास रख लीं. ब्रिटेन का लेफ्टिनेंट जनरल विलियम कांग्रेव इन रॉकेटों को इंग्लैंड ले गया. उस समय कोई पेंटेंट कानून अस्तित्व में न होने की वजह से रॉकेट तकनीक ब्रिटेन के हाथों में चली गई थी. जिसके बाद भारत के पास उसे वापस पाने का कोई अधिकार भी नहीं रह गया था.
इस इतिहास के आधार पर अगर कहा जाए कि टीपू सुल्तान युद्ध में पराजित नहीं होता तो देश के पास रॉकेट तकनीक बहुत पहले आ चुकी होती और अंग्रेजी सेना की हुकूमत भी ज्यादा समय तक नहीं टिक पाती. टीपू सुल्तान की मौत के बाद भारत करीब 150 साल तक रॉकेट तकनीक को पाने में पीछे हो गया था.
टीपू सुल्तान के कार्यकाल को रॉकेट विज्ञान के बीजारोपण का काल भी कहा जाता है. इसी तकनीक से प्रेरणा लेकर सन 1903 में वैज्ञानिक कोंस्तेंतिन तिसिओलसेवस्की ने अपने यहां रूस में, सन 1914 में रॉबर्ट गॉडर्ड ने अमेरिका में, और सन 1923 में हर्मन ओबर्थ ने जर्मनी में रॉकेट विज्ञान को विकसित करने की दिशा की ओर कदम बढ़ाए थे. अगर ब्रिटिश उपनिवेशवाद के कड़वे इतिहास को भुला सकते हैं तो टीपू सुल्तान की तस्वीर पर इतना बड़ा विवाद या प्रश्न उठाना क्या वाकई जायज है?
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