कांग्रेस का ट्रंप कार्ड नजर आ रहे चन्नी को यूं ही सेल्फ गोल नहीं कहा जा रहा है!
अगर पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस (Congress) कोई कमाल करती है, तो नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu), प्रताप सिंह बाजवा, सुखजिंदर सिंह रंधावा, सुनील जाखड़ सरीखे नेता इतनी आसानी से चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) के नाम पर दोबारा राजी नहीं होंगे.
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'आई एम सॉरी, अमरिंदर' सोनिया गांधी के इन चार शब्दों ने पंजाब की पूरी राजनीति में उथल-पुथल मचाकर रखा दिया है. अपमानित होने के बाद मुख्यमंत्री की गद्दी छोड़ने को मजबूर कांग्रेस (Congress) के वरिष्ठ नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह (Amarinder Singh) के खिलाफ कांग्रेस आलकमान (राहुल गांधी-प्रियंका गांधी) का 'मिशन बगावत' अपने प्रारब्ध को प्राप्त कर चुका है. वहीं, कांग्रेस आलाकमान ने नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) जैसे तमाम बड़े नामों को किनारे रखते हुए दलित सिख नेता चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) के नाम पर मुहर लगाकर सबको चौंका दिया. हालांकि, माना जा रहा है कि अमरिंदर सिंह की ओर से नवजोत सिंह सिद्धू के खिलाफ फेंकी गई पाकिस्तान (Pakistan) वाली गुगली की वजह से सिद्धू का नाम सीएम रेस से बाहर हो गया. लेकिन, सिद्धू खेमे ने भी जवाबी कार्रवाई में देरी नहीं लगाई और अमरिंदर सिंह पर पाकिस्तानी पत्रकार अरूसा आलम के साथ रिश्तों को लेकर सवाल दाग दिए. खैर, चरणजीत सिंह चन्नी मुख्यमंत्री बन चुके हैं. चन्नी के साथ ही प्रदेश में पहली बार दो डिप्टी सीएम सुखजिंदर सिंह रंधावा (Sukhjinder Singh Randhawa) और ओपी सोनी (OP Soni) ने भी शपथ ली. दलित आबादी के लिहाज से सबसे बड़े राज्य पंजाब में पहली बार इस वर्ग का सीएम बनाकर कांग्रेस चरणजीत सिंह चन्नी को अपना ट्रंप कार्ड मान रही है.
माना जा रहा है कि कांग्रेस आलकमान ने ये फैसला कर एक तीर से कई निशाने साधे हैं. दलित सिख नेता (Dalit) चरणजीत सिंह चन्नी के पंजाब का पहला दलित मुख्यमंत्री (Dalit CM) बनने के बाद संभावना जताई जा रही है कि प्रदेश की करीब 32 फीसदी दलित आबादी (हिंदू और सिख दलित) आबादी को कांग्रेस के पाले में लाने में आसानी होगी. अकाली दल (Akali Dal) और बसपा (BSP) के गठबंधन के साथ भाजपा (BJP) की ओर से उठाए गए दलित चेहरे की मांग को समाप्त किया जा सकता है. वहीं, उपमुख्यमंत्रियों के तौर पर सुखजिंदर सिंह रंधावा और ओपी सोनी के सहारे जट सिख व हिंदू आबादी को साधने का भी प्लान जमीन पर साबित करने के लिए रख दिया है. सीएम बनते ही चरणजीत सिंह चन्नी की किसानों और गरीबों का बिल माफ करने की घोषणा के बाद माना जा रहा है कि आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) को काबू में करने का दांव भी कांग्रेस ने चल दिया है. कहा जा रहा है कि कांग्रेस ने गुजरात की तरह से पंजाब में अमरिंदर को हटाकर तुरुप का पत्ता चल दिया है. लेकिन, कांग्रेस का ट्रंप कार्ड नजर आ रहे चन्नी को यूं ही सेल्फ गोल नहीं कहा जा रहा है! आइए जानते हैं कि आखिर वो वजहें क्या हैं?
कांग्रेस ने गुजरात की तरह से पंजाब में अमरिंदर को हटाकर तुरुप का पत्ता चल दिया है.
कांग्रेस में और खुलकर सामने आएगी गुटबाजी
चरणजीत सिंह चन्नी के मुख्यमंत्री बनने के बाद माना जा रहा था कि कांग्रेस असहमतियों और असंतोष के सुर कमजोर पड़ जाएंगे. सीएम पद से हटाए गए अमरिंदर सिंह ने चन्नी को शुभकामनाएं तो भेज दीं. लेकिन, शपथ ग्रहण कार्यक्रम में शामिल होने नहीं पहुंचे. अमरिंदर सिंह की लोकप्रियता से सीधे तौर पर कांग्रेस आलाकमान को नुकसान हो रहा था, तो उनका जाना तय ही था. लेकिन, चरणजीत सिंह चन्नी के सीएम बनने के साथ ही कांग्रेस में अंदर तक बस चुकी गुटबाजी भी खुलकर सामने आ गई. पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़ (Sunil Jakhar) ने एक ट्वीट कर राज्य के प्रभारी हरीश रावत पर ही सवाल उठा दिए. सुनील जाखड़ ने हरीश रावत के नवजोत सिंह सिद्धू के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव लड़ने की बात को चरणजीत सिंह चन्नी के अधिकार को कम करने वाला बताया. साथ ही सीएम के तौर पर उनके चुनाव पर भी सवाल खड़े कर दिए.
द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, मुख्यमंत्रियों के नामों पर विधायकों के राय एकमत नहीं थी. इस रिपोर्ट के अनुसार, सुनील जाखड़ को 38 वोट मिले थे. नए डिप्टी सीएम बने सुखजिंदर सिंह रंधावा को 18 वोट मिले थे. वहीं, अमरिंदर सिंह की पत्नी और कांग्रेस सांसद परनीत कौर को 12 और पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के नाम पर पांच वोट ही मिले थे. कांग्रेस आलाकमान किसी जाट सिख को ही मुख्यमंत्री बनाना चाह रहा था. लेकिन, ऐन मौके पर सिद्धू ने रंधावा के नाम पर टांग अड़ा दी. कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ सिद्धू, रंधावा, बाजवा, चन्नी जैसे नाम एक साथ जरूर आ गए थे. लेकिन, मुख्यमंत्री पद के लिए किसी एक नाम पर सहमति नहीं बन पा रही थी. चरणजीत सिंह चन्नी का नाम जो दूर-दूर तक सीएम रेस में नहीं था, आखिर में कांग्रेस आलाकमान ने उस पर ही दांव खेलना मुनासिब समझा. वैसे, सुनील जाखड़ ने इस गुटबाजी का केवल एक चेहरा सामने किया है. अगर आगामी पंजाब विधानसभा चुनाव में नतीजे कांग्रेस के पक्ष में आते हैं, तो ये गुटबाजी आपने चरम पर पहुंच जाएगी.
दलित वोट एक कैसे होंगे?
पंजाब की करीब 32 फीसदी दलित आबादी को चरणजीत सिंह चन्नी के सहारे एकजुट कर अपने पाले में लाने की कोशिश कांग्रेस के लिए आसान नहीं दिखती है. दरअसल, पंजाब की दलित आबादी में वाल्मिकी, अधर्म मूवमेंट या रविदासी, कबीरपंथी, मजहबी सिख जैसे दर्जनों गुट हैं. इन सभी दलित गुटों के बीच दूरियों का अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि आपस में रोटी-बेटी का रिश्ता रखना भी इनके लिए किसी अपराध से कम नहीं है. पंजाब में दलित केवल जातिगत नहीं बल्कि धार्मिक और राजनीतिक आधार पर भी बंटे हुए हैं. दलित राजनीति के प्रणेता कांशीराम रामदासियां सिख थे. सालों की मेहनत के बाद भी वो पंजाब में इन गुटों को एक नहीं कर पाए थे. उन्हें भी दलित राजनीति के लिए राज्य से बाहर का रुख करना पड़ा था. चरणजीत सिंह चन्नी भी रामदसिया सिख समुदाय से आते हैं. तो, इतना माना जा सकता है कि बसपा के गढ़ कहे जाने वाले दोआबा क्षेत्र में चन्नी कुछ कमाल दिखा सकते हैं. लेकिन, चरणजीत सिंह के मुख्यमंत्री बनने का पूरी दलित आबादी पर प्रभाव होना मुश्किल नजर आता है. क्योंकि, दलित आबादी पहले से ही कांग्रेस, अकाली दल, वाम दलों और भाजपा के बीच बंटी हुई है.
कांग्रेस ने पहली बार दलित मुख्यमंत्री बनाकर इसे मास्टरस्ट्रोक साबित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है. लेकिन, पंजाब में सत्ता किसी भी पार्टी की रही हो, मुख्यमंत्री जाट सिख ही बनता आया है. तो इस बात की संभावना बढ़ जाती है कि करीब 20 फीसदी आबादी वाले जाट सिख मतदाता कांग्रेस से छिटक सकते हैं. कांग्रेस सांसद रवनीत सिंह बिट्टू ने अकाली दल द्वारा आनंदपुर साहिब और चमकौर साहिब जैसी पंथिक यानी पवित्र सीटें बसपा के लिए छोड़ने के फैसले पर सवाल उठाया था. हालांकि, उन्होंने बाद में इस विषय पर माफी मांग ली थी. लेकिन, ये उस बात को दिखाने के लिए काफी है कि सिख समुदाय में भी जाति की खाईयां बहुत गहरी हैं. अभी तक अकाल तख्त की ओर से भी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है. तो, जाट सिखों का आगे का रुख कैसा होगा, इस पर अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है.
चन्नी बिगड़े, तो कौन संभालेगा?
पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ कैंपेन चलाने वाले नवजोत सिंह सिद्धू यूं ही इस खींचतान का हिस्सा नहीं बने थे. मुखर होकर सिद्धू के आवाज उठाने की वजह स्पष्ट रूप से मुख्यमंत्री पद की कुर्सी ही थी. हालांकि, राहुल गांधी के साथ अपनी करीबी का फायदा वो पंजाब के अन्य जाट सिख नेताओं की वजह से नहीं उठा पाए. अगर पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस कोई कमाल करती है, तो मुख्यमंत्री पद के लिए फिर से खींचतान होना शुरू हो जाएगी. नवजोत सिंह सिद्धू, प्रताप सिंह बाजवा, सुखजिंदर सिंह रंधावा, सुनील जाखड़ सरीखे नेता इतनी आसानी से चरणजीत सिंह चन्नी के नाम पर दोबारा राजी नहीं होंगे. जो खींचतान अभी दिखाई दी है, वो आगे और बड़े रूप में सामने आएगी. विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की राजनीतिक कलह खुलकर सड़क पर आने की संभावना कई गुना बढ़ जाएगी. वहीं, फिलहाल 6 महीनों के लिए कुर्सी पर बैठाए गए चरणजीत सिंह चन्नी को विधानसभा चुनाव के बाद उनकी कुर्सी से हटा पाना कांग्रेस के लिए मुश्किल होगा. अगर ऐसा होता है, तो कांग्रेस की दलित विरोधी छवि बनेगी. वहीं, अगर चुनाव के बाद चन्नी बिगड़ गए, तो कांग्रेस को केवल पंजाब ही नहीं पूरे देश में नुकसान झेलना पड़ेगा. कहना गलत नहीं होगा कि कांग्रेस का ट्रंप कार्ड नजर आ रहे चन्नी उसका सेल्फ गोल ही नजर आ रहे हैं.
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