चीनियों को भूल जाने की बीमारी है, या वे नाटक करते हैं ??
चीन संधि और समझौते तो करता है, परंतु उसका क्रियान्वयन तो दूर मान्यता भी प्रदान नहीं करता. इससे चीन की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जिम्मेदार राष्ट्र की छवि भी धूमिल हो रही है.
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2012 का समझौता क्यों भूल गया चीन??
चीन बार-बार यह आरोप लगा रहा है कि भारत, भूटान के मामलों में हस्तक्षेप क्यों कर रहा है? चीन के अनुसार वह भूटान के साथ मामलों को स्वयं सुलझा लेगा. अर्थात् चीन यह दिखाने की कोशिश कर रहा है कि उसके और भूटान के बीच का विवाद है, जिसमें भारत की कोई भूमिका नहीं है. वर्ष 2012 का समझौता स्पष्ट रूप से कहता है कि ट्राई जंक्शन पर कोई भी निर्माण कार्य अन्य देश की सहमति के बिना नहीं होगा.
इस तरह भारत का हस्तक्षेप 2012 के समझौते के अनुरूप ही है. चीन ने डोकलाम मामले पर 15 पेज का डॉजियर जारी किया है, जिसे वह फैक्ट फाइल कहता है, मूलतः फ्रॉड फाइल ही प्रतिबिंबित होता है. हां इसमें चीन ने पहली बार यह तो स्वीकार किया है कि डोकलाम को लेकर उसका भूटान के साथ विवाद है.
1988 और 1998 के समझौतों को भी भूलता चीन
चीन एक ओर 1890 की संधि की गलत व्याख्य करता है, वहीं 1988 और 1998 के समझौतों को भी भूल रहा है. 1988 और 1998 में चीन ने ही भूटान के साथ समझौते किए हैं. इन दोनों समझौतों में स्वयं चीन ने इस डोकलाम के भूभाग को भूटान का ही अभिन्न अंग माना है. यदि चीन इन समझौतों को मानता तो आज डोकलाम संकट का उद्भव ही नहीं होता.
इससे यह भी स्पष्ट है कि चीन संधि और समझौते तो करता है, परंतु उसका क्रियान्वयन तो दूर मान्यता भी प्रदान नहीं करता. इससे चीन की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जिम्मेदार राष्ट्र की छवि भी धूमिल हो रही है.
1890 के संधि पर चीनी झूठ
चीन लगातार कह रहा है कि ब्रिटिश शासित भारत ने भूटान और तिब्बत की सीमा तय करने को लेकर चीन के साथ 1890 में समझौता किया था. उसके आधार पर डोकलाम पर वह दावा कर रहा है. भारतीय विदेश मंत्री ने गुरुवार को अपने भाषण में चीन के इस दावे को पूरी तरह खंडित कर दिया. भारत और चीन के बीच सीमा विवाद सुलझाने के लिए गठित विशेष प्रतिनिधियों की वर्ष 2006 में हुई बैठक में चीन ने खुद माना था कि ब्रिटिश भारत के साथ किया गया समझौता अंतिम नहीं था.
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