जेटली के गले की फांस बने DDCA 'घोटाले' का सच क्या है?
केजरीवाल सरकार ने डीडीसीए में हुईं कथित वित्तीय अनियमितताओं के मामलों को अरुण जेटली से जोड़कर विवाद खड़ा कर दिया है, सवाल ये है कि आखिर क्या है डीडीसीए के कथित घोटालों का सच?
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राजनीति में आपके अतीत का भूत कब आपके वर्तमान को डसने के लिए आकर खड़ा हो जाए कहना मुश्किल है. ऐसा ही कुछ वित्त मंत्री और डीडीसीए के पूर्व चेयरमैन रहे अरुण जेटली के साथ हो रहा है. केजरीवाल सरकार ने दिल्ली ऐंड डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट असोसिशएन (डीडीसीए) में कथित वित्तीय अनियमितताओं का मुद्दा उठाते हुए इसे 1999 से 2013 तक इसके चेयरमैन रहे और अब मोदी सरकार में वित्त मंत्री अरुण जेटली से जोड़कर बड़ा राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया. ऐसे में सवाल ये है कि डीडीसीए में हुए कथित घोटालों में अरुण जेटली की संलिप्तता की बात कितनी सच है और आखिर क्या है डीडीसीए के घोटालों का सच.
पहले भी विवादों में रहा है डीडीसीएः
3 दिसंबर को भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच चौथे टेस्ट मैच के आयोजक के तौर पर जब दिल्ली के फिरोजशाह कोटला पर आशंका के बादल मंडराये तो डीडीसीए की अनियमितता की चर्चा जोरों से उठी. हालांकि हाई कोर्ट के हस्ताक्षेप से मैच की मेजबानी तो डीडीसीए को मिल गई लेकिन इससे ये बातें भी सामने आईं कि कैसे वर्षों से डीडीसीए वित्तीय अनियमितताओं की पनाहगाह बन गया है. दरअसल डीडीसीए ने 2013 से ही बीसीसीआई के पास अपना वित्तीय लेखाजोखा पेश ही नहीं किया है.
इसकी वजह डीडीसीए में कथित तौर पर हुए घपले हैं. इतना ही नहीं डीडीसीए पर 2008 से लेकर 2012 तक का एंटरटेंमेंट टैक्स भी बकाया है. इन्हीं वजहों से बीसीसीआई ने चौथे टेस्ट की मेजबानी से पहले डीडीसीए को अल्टीमेटम देते हुए कहा था कि वह या तो सबकुछ दुरुस्त करे या फिर मेजबानी छीने जाने के लिए तैयार रहे. बाद में हाई कोर्ट ने जस्टिस मुद्ग्ल की कमिटी की देखरेख में इस टेस्ट का आयोजन कोटला में कराया. कई जानेमाने क्रिकेटर पहले भी डीडीसीए की शिकायत अरविंद केजरीवाल से कर चुके हैं, जिनमें बिशन सिंह बेदी से लेकर कीर्ति आजाद और दिल्ली रणजी टीम के कप्तान गौतम गंभीर तक शामिल हैं. तब दिल्ली सरकार ने मामले की जांच की घोषणा की थी और अब उसी जांच के नतीजों के आधार पर वह जेटली को निशाना बना रही है.
2009 में फिरोजशाह कोटला में आयोजित भारत-श्रीलंका के एक मैच को इसलिए रदद् कर देना पड़ा था क्योंकि मेहमान टीम ने पिच की खतरनाक स्थिति को लेकर शिकायत की थी. डीडीसीए को यह शर्मिंदगी तब झेलनी पड़ी जबकि 2000 से 2007 तक के दौरान फिरोजशाह कोटला मैदान का पुनरुद्धार करने में 114 करोड़ रुपये खर्च कर दिए गए थे. पुनरुद्धार का भारी-भरकम खर्च भी अब सवालों के घेरे में हैं क्योंकि इस कार्य के लिए प्रारंभिक बजट महज 24 करोड़ रुपये था लेकिन लगे उससे 90 करोड़ रुपये ज्यादा. अब डीडीसीए से इन 90 करोड़ रुपयों का हिसाब मांगा जा रहा है.
अरुण जेटली की भूमिका पर क्यों उठ रहे हैं सवाल?
दरअसल पिछले एक दशक के दौरान डीडीसीए में हुईं ज्यादातर कथित वित्तीय अनियमितताएं अरुण जेटली के चेयरमैन रहने के दौरान (1999-2013) ही हुईं. हालांकि अरुण जेटली को कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय द्वारा डीडीसीए की गंभीर वित्तीय अनियमितताओं के लिए गठित पैनल ने क्लीन चिट दे दी है और कहा कि जेटली डीडीसीए के गैर-कार्यकारी चेयरमैन थे और उनका डीडीसीए के रोजमर्रा के कामकाज से कोई लेनादेना नहीं था. लेकिन अगर यह मान भी लिया जाए कि इन अनियमितताओं में जेटली की सीधे तौर पर कोई भूमिका नहीं थी तब भी कैसे वह इतने बड़े घपलों के प्रति आंख मूदें रहे. क्या उनकी खामोशी यूपीए-2 के शासनकाल में हुए घोटालों के प्रति मनमोहन सिंह जैसी नहीं हो जाती है? कई पूर्व क्रिकेटरों द्वारा बार-बार जेटली को इस मामले में लिखे गए खतों के बावजूद क्यों जेटली ने कभी इन अनियमितताओं के खिलाफ जांच कराने या उन्हें रोकने की कोशिश नहीं की?
दरअसल अरुण जेटली से लेकर शरद पवार और ज्योतिरादित्य सिंधिया से लेकर लालू प्रसाद यादव और फारुख अब्दुल्ला तक देश के कई बड़े राजनेता बीसीसीआई और देश के तमाम क्रिकेट बोर्डों के प्रशासन पर वर्षों से कब्जा जमाए बैठे हैं. इस विवाद से इन राजनीतिज्ञों को खेल सिस्टम से दूर किए जाने की पुरानी मांग भी सामने आई है. क्रिकेट इस देश का सबसे लोकप्रिय खेल है और उससे भारी कमाई जुड़ी हुई है, शायद यही वजह है कि आसानी से मिलने वाली लोकप्रियता और पैसा ही नेताओं को इस खेल की ओर खींच लाता है. देखना यही है कि क्या डीडीसीए विवाद से क्रिकेट में जड़ें जमाए बैठे भ्रष्टाचार के सफाई अभियान की शुरुआत होती है या महज कुछ दिन मीडिया की सुर्खियां बनने के बाद यह विवाद भी ठंडे बस्ते में चला जाता है!
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