हिंदू मंदिरों को भी वक्फ एक्ट की तरह सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने की क्यों हो रही है मांग?
तमिलनाडु में 1500 साल पुराने एक मंदिर पर वक्फ बोर्ड के अपना दावा ठोक देने के बाद से ही वक्फ एक्ट सुर्खियों में है. और, अब हिंदू मंदिरों को भी सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने की मांग की जाने लगी है. आइए जानते हैं कि क्या है हिंदू धर्म दान एक्ट (Hindu Religious and Charitable Endowments Act), जो मंदिरों पर सरकारों को नियंत्रण की देता है खुली छूट...
-
Total Shares
भारत के अधिकांश मंदिरों पर सरकारों का नियंत्रण है. लेकिन, इसी देश में वक्फ एक्ट के तहत वक्फ बोर्ड को इतनी असीमित ताकतें दी गई हैं कि वो तमिलनाडु के तिरुचेंथुरई में स्थित एक 1500 साल पुराने मंदिर समेत पूरे गांव पर ही दावा ठोक सकता है. इस मामले के सामने आने के बाद से ही वक्फ एक्ट लगातार चर्चा में बना हुआ है. और, अब सोशल मीडिया पर हिंदू मंदिरों को सरकारों के नियंत्रण से मुक्त कराने की मांग ने भी जोर पकड़ लिया है. दरअसल, वक्फ बोर्ड एक अलग निकाय है, जिसका संपत्तियों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है.
यही कारण है कि हिंदू मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण को मजबूत करने वाले हिंदू धर्म दान एक्ट, 1951 को खत्म करने की मांग तेजी पकड़ रही है. जो सरकारों को हिंदू मंदिरों की संपत्ति पर अपना दावा ठोकने का अधिकार देता है. बता दें कि इससे पहले कोरोना महामारी के दौरान कांग्रेस नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने मंदिरों के सोने को अधिग्रहीत करने की बात कही थी. दरअसल, वामपंथी विचारधारा वाले स्वघोषित बुद्धिजीवियों की ओर से हिंदू मंदिरों के खिलाफ इस तरह के अभियान चलाए जाते रहे हैं. क्योंकि, एक अनुमान के अनुसार, भारत के मंदिरों में एक ट्रिलियन डॉलर का सोना है.
वैसे, चौंकना नहीं चाहिए कि इस तरह के अभियान चलाने वालों में ईश्वर और हिंदू धर्म में आस्था न रखने वाले लोग बहुतायत में शामिल हैं. आसान शब्दों में कहें, तो जिनका हिंदू धर्म और उसकी परंपराओं से दूर-दूर तक लेना-देना नहीं है, वो भी धर्म के खिलाफ भरपूर आग उगलते हैं. वैसे, हिंदू धर्म दान एक्ट, 1951 को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर पर एक 23 ट्वीट्स का थ्रेड शेयर किया गया है. इस ट्विटर थ्रेड में हिंदू मंदिरों पर सरकारों के नियंत्रण और हिंदू धर्म दान एक्ट को आसान शब्दों में समझाया गया है. हमनें इस थ्रेड का अनुवाद किया है. और, इसके शब्दों में किसी तरह का कोई बदलाव नहीं किया गया है. आइए इस ट्विटर थ्रेड पर डालते हैं एक नजर...
कोरोना महामारी के दौरान कांग्रेस नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने मंदिरों के सोने को अधिग्रहीत करने की बात कही थी.
क्या कहता है हिंदू धर्म दान एक्ट?
- @starboy2079 नाम के इस यूजर ने पहले ट्वीट में लिखा है कि हिंदू रिलीजियस एंड चैरिटेबल एंडाउमेंट एक्ट, 1951. इस थ्रेड में आप जानेंगे- हिंदुओं के लिए सबसे कठोर कानून कौन सा है? भारत में चर्च और मस्जिद क्यों स्वतंत्र हैं, लेकिन मंदिर नहीं? मंदिरों की दान पेटी में आने वाला पैसा कहां जाता है? जहां मुगल और अंग्रेज हार गए, लेकिन कांग्रेस क्यों जीत गई?
- यह थ्रेड बताता है कि कैसे उन्होंने हिंदू मंदिरों को आपसे छीन लिया? मंदिर हमेशा से ही हिंदू सभ्यता और संस्कृति के केंद्र रहे थे. हमारी सभ्यता इन्हीं मंदिरों की वजह से फलती-फूलती रही.
- मंदिर केवल पूजा का स्थान नहीं थे. बल्कि, हिंदू दर्शन, कला और संस्कृति को सीखने का केंद्र थे. सभी राजाओं ने अपने समय में मंदिरों का निर्माण किया. और, ये मंदिर ही मुगल और अंग्रेजों के समय विरोध का भी केंद्र बने. मुगलों ने मंदिरों को तोड़ने की कोशिशें की. लेकिन, उस पर नियंत्रण नहीं कर सके.
- समय-समय पर ईस्ट इंडिया कंपनी और अंग्रेजों ने भी ऐसा ही करना चाहा. लेकिन, वो नाकाम रहे. 1863 में अंग्रेजों ने एक एक्ट लाकर हिंदू मंदिरों को स्वतंत्र कर दिया. जिसके चलते मंदिर स्वतंत्रता सेनानियों की बैठकों की जगह बन गए. 1925 में अंग्रेजों ने हिंदुओं के सोच में तीन तरह के जहर का बीज बोया.
- वो जहर थे- जाति और सामाजिक न्याय: ऊंची जातियों का नीची जातियों पर अत्याचार की कहानियां. आर्य-द्रविड़: उत्तर भारतीय भारत में मध्य यूरोप से आए, दक्षिण भारतीय ही देश के मूल निवासी हैं. ब्राह्मणवादी पितृसत्ता: ब्राह्मण आर्य हैं. वे बहुत खराब थे. उन्होंने नीची जातियों के मंदिर में प्रवेश पर रोक लगाई.
- 1925 में इसका फायदा उठाते हुए अंग्रेज मद्रास रिलीजियस एंड चैरिटेबल एंडाउमेंट एक्ट लाए. और, सभी धर्मों के सभी धार्मिक स्थानों पर अपना नियंत्रण कर लिया. जब मुस्लिमों और ईसाईयों ने इस पर आपत्ति जताई. तो, उन्होंने चर्च और मस्जिदों को छोड़ दिया. लेकिन, मंदिरों को नहीं. महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू ने कभी इसका विरोध नहीं किया. और, हिंदू सोते रहे.
- 1947 में भारत आजाद हुआ. और, 1950 में हमें संविधान मिला. जिसमें आर्टिकल 26 के तहत हमें अधिकार मिला कि सरकार किसी भी धर्म की धार्मिक परंपरा में हस्तक्षेप नहीं कर सकती है. और, हिंदुओं को अपने मंदिर वापस मिल गए. लेकिन, कांग्रेस यहीं पर नहीं रुकी. वे हिंदू दान धर्म एक्ट, 1951 ले आए.
- ये एक्ट क्या कहता है: राज्य सरकारें कानून बनाकर मंदिरों पर अपना नियंत्रण स्थापित कर सकती हैं (मस्जिद और चर्च पर नहीं). वे कोई भी एडमिनिस्ट्रेटर नियुक्त कर सकती है, जो मंदिर का मैनेजर या चेयरमैन होगा और किसी भी धर्म का हो सकता है. वे मंदिरों से धन ले सकते हैं. और, उसका इस्तेमाल किसी भी काम के लिए कर सकते हैं.
- वो (सरकारें) मंदिरों की जमीनों के बेच सकती हैं. और, उस धन का इस्तेमाल किसी काम के लिए किया जा सकता है. वो मंदिर की परंपराएं में हस्तक्षेप कर सकती हैं. कांग्रेस शासित तमिलनाडु ने इस एक्ट का इस्तेमाल किया और अपना हिंदू दान धर्म एक्ट 1959 ले आई. जिसके सहारे राज्य के 35000 मंदिरों पर नियंत्रण स्थापित कर लिया.
- इसके बाद आंध्र प्रदेश, राजस्थान और कई अन्य राज्यों ने भी ऐसे ही एक्ट लाकर राज्य के मंदिरों और उसकी वित्तीय चीजों पर अधिकार कर लिया. आज 15 राज्यों ने भारत के 4 लाख मंदिरों पर अपना नियंत्रण कर लिया है. भारत में 9 लाख मंदिर हैं.
- जब आप मंदिर जाकर दान पेटी में अपनी श्रद्धा से 11 से लेकर जितने भी रुपये देते हैं, तो ये कहां जाता है? ये सरकार के जेब में जाता है. हर साल हिंदू करीब 1 लाख करोड़ रुपये मंदिरों में धर्म के लिए दान देते हैं. लेकिन, ये सरकार की जेबों में जाता है. और, सरकार इसका इस्तेमाल कहां करती है?
- सरकार इन पैसों का इस्तेमाल मदरसे, चर्च के रखरखाव और अन्य कामों में करती है. करीब 10 से 15 फीसदी पैसा हिंदू धर्म के लिए इस्तेमाल होता है. बाकी दूसरे कामों के लिए जाता है. एक साल में कर्नाटक सरकार को मंदिरों से 79 करोड़ रुपये मिले. उन्होंने 7 करोड़ रुपये मंदिर के ऊपर खर्च किए, 59 करोड़ रुपये मस्जिद-मदरसों पर और 5 करोड़ रुपये चर्च पर खर्च किए.
- आंध्र प्रदेश की सरकार को हर साल तिरुपति मंदिर से 3100 करोड़ रुपये मिलते हैं. इसका 18 फीसदी मंदिर के लिए इस्तेमाल होता है. और, बाकी का पैसा चर्च के लिए जो आगे धर्म परिवर्तन के लिए इस्तेमाल होता है. आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी, जो खुद ईसाई हैं, ने अपने चाचा को तिरुपति बोर्ड का चेयरमैन नियुक्त किया है.
- उन्होंने 10 मंदिरों को तुड़वाकर उस जमीन का इस्तेमाल गोल्फ कोर्स बनवाने के लिए किया था. भारत में चर्च हजारों स्कूल चला रहे हैं. लेकिन, मंदिर कोई स्कूल नहीं चला सकता है. क्योंकि, मंदिरों का वित्तीय तंत्र मंदिरों के पास नहीं है. मंदिर अब सभ्यता के केंद्र नहीं रह गए, जो 1925 से पहले हुआ करते थे.
- जब से सरकारों ने मंदिरों को केवल पूजा के स्थान के तौर पर सीमित कर दिया है. हिंदू सभ्यता का फलना-फूलना रुक गया. हमारे पूर्वजों ने इन मंदिरों में बहुत सा खजाना छोड़ा था. उन्होंने सोचा था कि ये धन खराब समय में हमारे काम आएगा. लेकिन, संभवत: ये अब तक लूटा जा चुका है.
- पुरी मंदिर के रत्न भंडार के साथ क्या हुआ? हमारे मंदिरों की प्राचीन मूर्तियों की तस्करी हुई. उन्हें नकली मूर्तियों से बदल दिया गया. संभवत: यही कारण है कि कांग्रस ने केवल मंदिरों का ही नियंत्रण किया. चारों खंभे इस धर्मनिरपेक्ष लूट में बराबर तरीके से शामिल हैं.
- विधायिका ने असंवैधानिक कानून बनाए और मंदिर लूटा. संविधान की रक्षक न्यायपालिका ने मूर्खतापूर्ण तर्क देकर इसे होने दिया. मीडिया ने इस पर अपनी आंखें मूंद लीं. और, हमें मंदिरों की इस लूट के बारे में कभी नहीं बताया गया. कार्यपालिका ने इस लूट को अंजाम दिया.
- हमारा संविधान धर्मनिरपेक्ष है. तो, सरकार के स्वामित्व वाली सभी चीजें अपने आप ही धर्मनिरपेक्ष हो जाती हैं. जैसे ही सरकार ने मंदिरों पर नियंत्रण किया, वे धार्मिक स्थान नहीं रह गए. और, धर्मनिरपेक्ष स्थान बन गए. और, सुप्रीम कोर्ट इसमें हस्तक्षेप कर सकता है. सबरीमाला इसका बेहतरीन उदाहरण है.
- भारत में चर्च और मस्जिद स्वतंत्र हैं. वे सरकार को कोई धन नहीं देते हैं. लेकिन, सरकार से उन्हें पैसा मिलता है. कई सरकारें मौलवियों को सैलरी देती हैं. लेकिन, ये सरकारें 1 लाख करोड़ हिंदू मंदिरों से लेती है. और, उन्हें कुछ भी नहीं देती हैं.
In India church n mosque r free, they don’t give any money to govt but they receive money from govt. many govt give salary to maulavi but they take Rs 1 lac crore every year from hindu temple, n don’t give anything to them.See this table pic.twitter.com/bsRhJnuOhV
— Agenda Buster (@Starboy2079) September 18, 2022
- 1947 के बाद से हिंदुओं को जिन अत्याचारों का सामना करना पड़ रहा है. उतने औरंगजेब के समय में भी नहीं झेलने पड़े थे. और, इसके बारे में उन्हें जानकारी भी नहीं थी. जल्द ही वो सभी मंदिरों को खत्म कर देंगे, जैसे तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में हो रहा है. वे मुस्लिम को पुजारी नियुक्त करेंगे. वे परंपराओं को बदल देंगे.
- कुछ धर्मनिरपेक्ष लोग लॉजिक देते हैं कि अगर मंदिरों को स्वतंत्रता मिल गई, तो ट्रस्ट मंदिर को नहीं चला सकेगी. और, वहां भ्रष्टाचार होगा. ये मत भूलिए कि हमारा संप्रदाय 10000 सालों से मंदिरों की देख-रेख ही करता आ रहा है. और, वो इन आईएएस ऑफिसर्स और नेताओं से कम ही भ्रष्ट रहेंगे.
- मंदिर गए, तो हिंदू सभ्यता भी चली जाएगी. हमारे राजाओं ने भी मंदिरों पर नियंत्रण किया था. लेकिन, कभी मंदिरों से कोई धन नहीं लिया. लेकिन, ये धर्मनिरेपक्ष नेता..... देर होने से पहले इसे रोक दो. केवल हिंदुओं के साथ ये भेदभाव क्यों?
यहां पढ़े पूरा ट्विटर थ्रेड...
Hindu religious and charitable endowments Act 1951 (Thread)In this thread u will know--Which is the most draconian act for Hindus-Why Church n Mosque r free in India but Temples r not?-Where does your money go that u offer in daan peti of temple?1/22 pic.twitter.com/ai9YtXiumA
— Agenda Buster (@Starboy2079) September 18, 2022
आपकी राय