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Updated: 03 मई, 2021 08:59 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी को लगातार तीसरी बार जीत का स्वाद चखने को मिल गया है. 'डबल सेंचुरी' के साथ मिले इस प्रचंड बहुमत का मजा ममता बनर्जी की नंदीग्राम विधानसभा सीट से हुई हार ने थोड़ा खराब भी कर दिया है. लेकिन, यहां 'दीदी' के लिए अंग्रेजी वाली कहावत 'ऑल्स वेल दैट एंड्स वेल' ज्यादा सटीक बैठती है. आखिरकार पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने भाजपा को सत्ता से दूर रखने में कामयाबी पा ही ली. चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर का भाजपा के दहाई के आंकड़े में सिमटने को लेकर किया गया दावा भी सच साबित हो गया. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि भाजपा के जबरदस्त चुनावी प्रबंधन, आक्रामक प्रचार, स्टार प्रचारकों की फौज वगैरह के बावजूद उसे हार का सामना क्यों करना पड़ा? आखिर वो क्या वजहें हैं, जिनकी कारण पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने जीत हासिल की?

शुभेंदु अधिकारी ने ममता बनर्जी को नंदीग्राम में मात जरूर दी, लेकिन वह उनके कद के आगे नहीं टिके.शुभेंदु अधिकारी ने ममता बनर्जी को नंदीग्राम में मात जरूर दी, लेकिन वह उनके कद के आगे नहीं टिके.

ममता बनर्जी के खिलाफ बीजेपी के पास ताकतवर चेहरा न होना

लोकसभा चुनाव 2019 में मिली अभूतपूर्व सफलता के बाद भाजपा के कई बड़े नेताओं ने पश्चिम बंगाल में अपना डेरा जमा लिया था. चुनाव प्रचार में भी टीएमसी मुखिया के सामने भाजपा के स्टार प्रचारकों की फौज शामिल रही. विधानसभा चुनाव से पहले तृणमूल कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने पाला बदल कर भाजपा का दामन थाम लिया. लेकिन, इनमें से कोई भी नेता ममता बनर्जी के 'कद' को चुनौती देने लायक नहीं बन पाया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर बंगाल भाजपा के अध्यक्ष दिलीप घोष तक राज्य की जनता से वादा करते रहे कि कोई बंगाली चेहरा ही मुख्यमंत्री बनेगा, लेकिन भाजपा के पास ताकतवर चेहरों की कमी ही रही. बाबुल सुप्रियो सरीखे नेता भी ममता की आंधी के आगे नहीं टिक सके. शुभेंदु अधिकारी ने ममता बनर्जी को नंदीग्राम में मात जरूर दी, लेकिन वह भी पश्चिम बंगाल में टीएमसी मुखिया के सामने उनके पूर्व सिपेहसालार ही साबित हुए. भाजपा का पूरा चुनाव प्रचार नरेंद्र मोदी के चेहरे पर टिका रहा, जिसे बंगाल की जनता ने नकार दिया.

भाजपा के एजेंडे का सबसे बड़ा तीर ध्रुवीकरण, पश्चिम बंगाल में पूरी तरह से फेल हो गया.भाजपा के एजेंडे का सबसे बड़ा तीर ध्रुवीकरण, पश्चिम बंगाल में पूरी तरह से फेल हो गया.

मुसलमानों का ममता के पक्ष में एकजुट हो जाना, मुस्लिम वोटों में बिखराव न होना

भाजपा के एजेंडे का सबसे बड़ा तीर ध्रुवीकरण, पश्चिम बंगाल में पूरी तरह से फेल हो गया. भाजपा ने हिंदुत्व और बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा जोर-शोर से उठाया. इसकी वजह से पश्चिम बंगाल का 30 फीसदी मुस्लिम वोट सीधे तौर पर ममता बनर्जी के साथ चला गया. मुस्लिम वोटबैंक हमेशा से ही एकतरफा रहता है और इसमें बिखराव की उम्मीद बहुत कम ही होती है. 'दीदी' के करीबी रहे फुरफुरा शरीफ दरगाह के पीरजादा अब्बास सिद्धीकी और एआईएमआईएम के चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने मुसलमानों को अपने पक्ष में लाने की भरपूर कोशिश की, लेकिन कामयाब नहीं हो सके. पश्चिम बंगाल की करीब 100 विधानसभा सीटों पर प्रत्यक्ष औऱ अप्रत्यक्ष रूप से अपना प्रभाव रखने वाला मुस्लिम वोटबैंक तृणमूल कांग्रेस के पक्ष में लामबंद हो गया.

लेफ्ट-कांग्रेस गठबंधन का आखिरी समय में पीछे हट जाना

कांग्रेस-वामदलों के गठबंधन के साथ अब्बास सिद्दीकी के जुड़ने के बाद से ही कयास लगाए जा रहे थे कि मुस्लिम वोट ममता बनर्जी का साथ छोड़ इनके खाते में आ सकता है. लेकिन, कांग्रेस-वामदलों का गठबंधन पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में कही नजर ही नहीं आया. कांग्रेस के स्टार प्रचारक राहुल गांधी शुरुआती चुनाव प्रचार से नदारद रहे और मतदान के आखिरी के चरणों में बंगाल पहुंचे. कुछ रैलियों के बाद ही उन्होंने कोरोना महामारी के फैलाव का हवाला देते हुए सबसे पहले अपनी रैलियां बंद कर दीं. वामदलों-कांग्रेस के गठबंधन को अब्बास सिद्दीकी का साथ मिला और कोलकाता के ब्रिगेड मैदान में इस गठबंधन ने ऐतिहासिक रैली की. लेकिन, वामदलों ने ममता बनर्जी को नंदीग्राम सीट से वॉकओवर देते हुए एक नई छात्र नेता को टिकट दिया. कांग्रेस-वामदलों के गठबंधन ने आखिरी के मतदान चरणों के पहले समझ लिया था कि पश्चिम बंगाल में भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच ही चुनावी लड़ाई हो रही है. जिसकी वजह से गठबंधन आखिरी समय में विधानसभा चुनाव में पूरी तरह से पीछे हट गया.

'दीदी' ने चोट लगने पर इसे भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा किया गया हमला कहकर प्रचारित किया.'दीदी' ने चोट लगने पर इसे भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा किया गया हमला कहकर प्रचारित किया.

ममता बनर्जी को व्हीलचेअर पर मिली सहानुभूति

ममता बनर्जी नंदीग्राम में चुनाव प्रचार के दौरान चोटिल हो गई थीं. उनके पैर में प्लास्टर बांधा गया और पूरे चुनाव के दौरान वह व्हीलचेयर पर ही रहीं. 'दीदी' ने चोट लगने पर इसे भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा किया गया हमला कहकर प्रचारित किया. व्हीलचेयर पर बैठकर ममता बनर्जी ने अपने पक्ष में भरपूर सहानुभूति जुटाई. हालांकि, व्हीलेचेयर से सहानुभूति मिलने पर संशय जताया जा रहा था, लेकिन पश्चिम बंगाल के चुनाव नतीजों ने इस पर विराम लगा दिया. भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने नेताओं को ताकीद की थी कि ममता बनर्जी की 'चोट' पर किसी भी तरह की बयानबाजी न की जाए. इसके बावजूद बंगाल भाजपा के अध्यक्ष दिलीप घोष समेत कई नेताओं ने 'दीदी' की चोट का मजाक उड़ाया, जिसका खामियाजा भाजपा को चुनाव नतीजों में भुगतना पड़ा.

'दीदी' की महिला केंद्रित योजनाएं

पश्चिम बंगाल की 'आधी आबादी' यानी 3.7 करोड़ महिला मतदाताओं को साधने के लिए भाजपा और तृणमूल कांग्रेस ने पूरा जोर लगाया था. 'साइलेंट वोटर' कहे जाने वाले इस वोटबैंक ने ममता बनर्जी की महिला केंद्रित योजनाओं पर अपना भरोसा जताया. कटमनी, तोलाबाजी जैसे आरोपों के बावजूद ममता बनर्जी ने अपनी इन योजनाओं का भरपूर प्रचार किया. ममता सरकार की महिला केंद्रित योजनाओं के प्रचार के लिए तृणमूल कांग्रेस ने एक गैर राजनीतिक मोर्चा 'बोंगो जननी' बनाया. यह मोर्चा पूरे चुनाव प्रचार में काफी ज्यादा एक्टिव रहा. ममता बनर्जी ने स्वास्थ्य साथी, कन्याश्री, रूपाश्री, मातृत्व/शिशु देखभाल योजना, विधवा पेंशन, शिक्षा ऋण के साथ नकद सहायता की सैकड़ों छोटी-बड़ी महिला केंद्रित योजनाओं को चलाया. इसका फायदा 'दीदी' को मिला. भाजपा ने आयुष्मान, उज्जवला, महिलाओं को मुफ्त यात्रा जैसे वादे किए थे, लेकिन वह महिला मतदाताओं को लुभाने में नाकामयाब रही. कोलकाता में किराये के मकान में रहने वाली महिला की तस्वीर प्रधानमंत्री आवास योजना के विज्ञापन में छापने से भी भाजपा को भारी नुकसान हुआ.

कोरोना महामारी की वजह से आखिरी के तीन चरणों में नरेंद्र मोदी और अमित शाह समेत भाजपा के कई स्टार प्रचारकों को रैलियां रद्द करनी पड़ीं.कोरोना महामारी की वजह से आखिरी के तीन चरणों में नरेंद्र मोदी और अमित शाह समेत भाजपा के कई स्टार प्रचारकों को रैलियां रद्द करनी पड़ीं.

आखिरी के चरणों में कोरोना के कारण भाजपा हुई डिफेंसिव

देशभर में अप्रैल महीने की शुरुआत में ही कोरोना के मामलों में बढ़ोत्तरी चालू हो गई थी. इसके बावजूद भी भाजपा और तृणमूल कांग्रेस की रैलियां जारी रहीं. कोरोना महामारी की वजह से आखिरी के तीन चरणों में नरेंद्र मोदी और अमित शाह समेत भाजपा के कई स्टार प्रचारकों को रैलियां रद्द करनी पड़ीं. चुनाव आयोग ने भी आखिरी के मतदान चरणों से पहले रैलियों पर रोक लगा दी. वहीं, ममता बनर्जी ने कोरोना संक्रमण के मामलों को लेकर सीधे तौर पर भाजपा को दोषी साबित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. कोरोना संक्रमण की वजह से देश में हो रही मौतों और ऑक्सीजन संकट को ममता बनर्जी ने अपने भाषणों में शामिल करना शुरू कर दिया था. जिसकी वजह से भाजपा आखिरी के चरणों में न चाहते हुए भी डिफेंसिव मोड में चली गई.

बंगाल के 'भद्रलोक' से दूर रह गई भाजपा

पश्चिम बंगाल के 'भद्रलोक' में जगह बनाने के लिए भाजपा ने कई एलीट, बुद्धिजीवी लोगों को अपने साथ जोड़ा. इन लोगों को बड़ी संख्या में चुनाव में भी उतारा, लेकिन भाजपा बंगाल के भद्रलोक में अपने लिए जगह नहीं बना पाई. भद्रलोक के वोटर्स को वामपंथ का समर्थन करने वाला माना जाता है, लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी भाजपा इन्हें अपने पक्ष में नही ला सकी. शहरी सीटों पर भाजपा का प्रदर्शन ममता के मुकाबले कहीं भी टिकता नजर नहीं आया. बंगाली अस्मिता और संस्कृति के सहारे ममता बनर्जी ने 'भद्रलोक' को अपने साथ बनाए रखा.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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