चीन क्यों गए थे पीएम नरेंद्र मोदी?
पीएम नरेंद्र मोदी की चीन यात्रा पूरी हो चुकी है. मीडिया हो या आम लोग, सबसे ज्यादा फोकस इसी बात पर रहा कि दोनों देशों के बीच चल रहे बॉर्डर के झगड़े का क्या होगा.
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पीएम नरेंद्र मोदी की चीन यात्रा पूरी हो चुकी है. मीडिया हो या आम लोग, सबसे ज्यादा फोकस इसी बात पर रहा कि दोनों देशों के बीच चल रहे बॉर्डर के झगड़े का क्या होगा. दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों की सेल्फी ने भी खूब सुर्खियां बटोरीं. लेकिन इस बात को उतनी तवज्जो नहीं मिली कि चीन की कंपनियों के साथ भारत ने 22 अरब डॉलर के समझौते किए हैं. 22 अरब डॉलर मतलब करीब 1.4 लाख करोड़ रुपये. ये सारी डील आखिरी दिन शंघाई में चीन की कंपनियों के साथ पीएम की बैठक में हुईं.
एक बार में नहीं आएंगे 22 अरब डॉलर
ऐसा नहीं है कि पूरे के पूरे 22 अरब डॉलर अगले कुछ महीनों में भारत आ जाएंगे. जो डील हुई हैं वो दरअसल निवेश का इरादा हैं, जिसे तकनीकी टर्म में एक्सप्रेशन ऑफ इंटेंट कहते हैं. अभी पक्के तौर पर ये नहीं कहा जा सकता कि ये निवेश भारत में आने वाला है. ये सरकार की जिम्मेदारी है कि वो इन कंपनियों के लिए ऐसा माहौल पैदा करे कि उन्हें अपने इरादे पर अमल में कोई दिक्कत न हो. शायद यही वजह है कि कंपनियों के साथ बैठक में पीएम मोदी ने ये कहने में कोई झिझक नहीं दिखाई कि उनके प्रोजेक्ट्स की सीधी निगरानी वो खुद करेंगे. कुल 21 समझौते हुए जिनमें से सबसे ज्यादा 8 कंपनियां पावर सेक्टर की हैं. ये समझौते जब कभी भी अमल में आएंगे, देश की बिजली समस्या को हल करने में इनसे काफी मदद मिलने की उम्मीद की जा सकती है. बिजली के बाद सबसे ज्यादा 4 समझौते आईटी सेक्टर में और 3 समझौते मैनुफैक्चरिंग में हुए हैं.
बिजली संकट पर है फोकस
पीएम मोदी की तीन देशों की विदेश यात्रा का असली फोकस दरअसल बिजली संकट ही है. चीन से ही नहीं, मंगोलिया और दक्षिण कोरिया से होने वाली बातचीत में भी कहीं न कहीं ये फोकस झलकता है. मंगोलिया के पास यूरेनियम के भंडार हैं और भारत की नजर उस पर है. इसी तरह दक्षिण कोरिया से रिन्यूएबल एनर्जी के क्षेत्र में भारत काफी मदद ले सकता है. खासतौर पर सोलर एनर्जी और पनबिजली में साउथ कोरिया ने हाल के दिनों में काफी तरक्की की है और वहां की कंपनियां भारत में इन्वेस्ट करने को तैयार बैठी हैं. अच्छे दिन के वादे के साथ आई मोदी सरकार का सबसे बड़ा एसिड टेस्ट बिजली सेक्टर में उसके काम को लेकर ही होगा. उद्योग हों या खेती, बिजली होगी तभी इनमें तरक्की होगी. यही वजह है कि पीएम मोदी को इस प्राथमिकता का बखूबी अहसास है. अब देखने वाली बात यही होगी कि इन 1.4 लाख करोड़ रुपयों के वादों में से कितने पर वो अमल करवा पाते हैं.
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