डिंपल-अखिलेश को शिवपाल के यू-टर्न पर भी भरोसा नहीं, आखिर क्यों?
सारी बातों के बावजूद न तो अखिलेश और न ही डिंपल यादव को शिवपाल की बातों पर जरा भी यकीन हो पा रहा है. कुछ तो बात ऐसी है जो अखिलेश को शिवपाल की बातों पर भरोसा करने से रोक रही है.
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कुछ मुलायम सिंह यादव के जरिये तो कुछ खुद शिवपाल यादव अपनी ओर से सरेंडर के सारे संकेत दे चुके हैं - वो समाजवादी पार्टी की सत्ता में वापसी पर अखिलेश यादव की कैबिनेट में मंत्री बनने को भी तैयार हैं और अगर कोई गलती हुई तो उसे भी मानने को भी. खुद मुलायम साफ कर चुके हैं कि शिवपाल कोई पार्टी नहीं बनाने जा रहे.
बावजूद इन सारी बातों के न तो अखिलेश और न ही डिंपल यादव को उनकी बातों पर जरा भी यकीन हो पा रहा है. कुछ तो बात ऐसी है जो अखिलेश को शिवपाल की बातों पर भरोसा करने से रोक रही है.
बस चाबी और भाभी...
इटावा, मैनपुरी, कन्नौज, औरैया - ये सब मुलायम परिवार के गढ़ माने जाते हैं. इटावा की जसवंत नगर सीट से शिवपाल यादव पांचवीं बार मैदान में हैं - और उन्हें जिताने के लिए मुलायम सिंह यादव भी लोगों के बीच जाकर अपील कर चुके हैं.
चुनाव प्रचार के दरम्यान अखिलेश यादव रैली तो मैनपुरी में कर रहे थे लेकिन जबान पर इटावा ही छाया रहा. जो लोग मान कर चल रहे थे कि मुलायम परिवार में सब कुछ ठीक-ठाक हो गया है, उन्हें भी अमूमन शांत दिखने वाले अखिलेश के तेवर देख हैरानी हुई होगी.
उन पर नजर...
अखिलेश ने साफ साफ कहा कि जिन लोगों ने उनके और उनके पिता मुलायम के बीच खाई पैदा की इटावा के लोग उसे सबक सिखाने का काम करें. अखिलेश ने ये भी कहा कि ये उनकी ईमानदारी है कि हिसाब-किताब नहीं मांग रहे. उन्होंने आगाह भी किया, 'उनके पास बूथों पर खर्च करने के लिए पैसा है. उन पर नजर रखी जाए.'
वो अब भी ऐसा क्यों महसूस कर रहे हैं, अखिलेश ने बताया भी, "कुछ लोगों ने मेरी भी साइकिल छीन ली होती, लेकिन मैंने साइकिल इतनी तेज दौड़ा दी कि वो पीछे रह गए."
डिंपल यादव रैलियों में अखिलेश सरकार की उपलब्धियां और नये घोषणा पत्र में किये गये वादों को रोचक तरीके से पेश करती हैं - लेकिन जब औरैया पहुंची तो उनके भी निशाने पर शिवपाल यादव कैंप ही रहा.
रैली में लोगों से डिंपल ने कहा, "लोगों ने साजिश तो ऐसी की थी कि आपके भैया के पास केवल चाबी और भाभी रह जाए पर ऐसा हो सकता था क्या?" फिर डिंपल ने बताया कि ऐसा इसलिए नहीं हो सका क्योंकि लोगों की दुआएं और आशीर्वाद उनके साथ थीं और उन्हीं की बदौलत अखिलेश यादव को साइकिल मिल पायी.
ऐसी कौन सी बात है जो डिंपल और अखिलेश को अब तक चुभ रही है? आखिर शिवपाल कैंप की वो कौन सी हरकत है जो इनकी आंखों में चुभ रही है?
कौन हैं 'मुलायम के लोग'?
पिछले महीने शिवपाल यादव ने नई पार्टी को लेकर जो बयान दिया वो यूं ही नहीं था. उसकी नींव पहले ही रखी जा चुकी थी. मुलायम ने नई पार्टी की बात भले ही खारिज कर दी, लेकिन उसका वजूद नहीं.
'मुलायम के लोग' - ये नाम है उस विशेष संगठन का जो अभी शिवपाल यादव के समर्थकों का सबसे बड़ा अड्डा माना जा रहा है. इस संगठन के दफ्तर इटावा और औरैया में बनाये गये हैं. खबर है कि समाजवादी पार्टी के इटावा जिला प्रमुख ने अपने करीब पांच सौ समर्थकों के साथ पिछले महीने इस संगठन को ज्वाइन किया था.
हम तो तैयार हैं...
इस संगठन के समर्थकों में कई ऐसे लोग भी हैं जिनका मायावती की तरफ झुकाव देखा गया है. समाजवादी पार्टी में झगड़े के दौरान मायावती ने कई बार अपनी प्रेस कांफ्रेंस में शिवपाल को बलि का बकरा बताया था. बदले में शिवपाल ने भी अपने लोगों के लिए चुनाव प्रचार करने की बात की थी - जो समाजवादी पार्टी छोड़ कर बीएसपी और दूसरे दलों में चले गये हैं.
शुक्रवार मैगजीन में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार 'मुलायम के लोग' बैनर तले इकट्ठा शिवपाल समर्थक समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों को हराने में जुटे हुए हैं. रिपोर्ट के अनुसार उनकी नजर इटावा और मैनपुरी की उन चार-पांच सीटों पर है जिन पर शिवपाल के चचेरे भाई राम गोपाल यादव के करीबी चुनाव लड़ रहे हैं. ये लोग बीएसपी उम्मीदवारों को जिताने की अपील कर रहे हैं. परिवार में उठापटक के दौरान राम गोपाल ने अखिलेश का पक्ष लिया था.
वैसे माना जा रहा है कि इन लोगों का ज्यादा असर तो नहीं होने वाला लेकिन जिन सीटों पर हार जीत का फैसला कम वोटों से होने वाला होगा, वहां ये कोई उलटफेर कर दें तो आश्चर्य की बात नहीं.
शिवपाल कैंप से तो अपर्णा यादव को भी जोड़ कर देखा जाता रहा, लेकिन सवाल उठने पर वो इसे बिलकुल नकार देती हैं और परिवार के एकजुट रहने की सलाह देती हैं. अपर्णा के मामले में मुलायम का रवैया तो भाई शिवपाल जैसा ही रहा, लेकिन डिंपल-अखिलेश का बदला हुआ नजर आता है.
छोटी बहू पर सब मेहरबान
पहले जब भी मुलायम के बहुओं की बात आती तो अपर्णा यादव की अलग से चर्चा हुआ करती - अक्सर उनके 'मोदी फैन' वाली इमेज को लेकर. यहां तक कि मोदी के साथ अपर्णा की एक सेल्फी भी खूब चर्चित रही. पूछिये तो अपर्णा तपाक से बोलती है - इसमें गलत क्या है? वो पूरे देश के प्रधानमंत्री हैं.
जैसी अपील मुलायम ने शिवपाल के लिए इटावा में की वैसी ही अपर्णा के लिए लखनऊ में भी की. दोनों रैलियों में एक बात और कॉमन रही - मुलायम ने एक बार भी अखिलेश का जिक्र नहीं लिया. अपर्णा यादव लखनऊ की कैंट सीट से बीजेपी की रीता बहुगुणा जोशी को चुनौती दे रही हैं. 2012 में रीता बहुगुणा इसी सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीती थीं. रीता यूपी कांग्रेस की अध्यक्ष रह चुकी हैं.
छोटी बहू खातिर...
अपर्णा के लिए मुलायम की अपील थी, "अपर्णा को भारी बहुमत से जिता देना. हमसे जुड़ा हुआ मामला है. हमारा भी सम्मान जुड़ा हुआ है. हमारे लड़के की पत्नी है. हमारी बहू है." अपर्णा यादव, मुलायम की दूसरी पत्नी साधना गुप्ता के बेटे प्रतीक यादव की पत्नी हैं. समाजवादी तकरार में साधना गुप्ता की भूमिका मानी जाती रही जिसे शिवपाल अमर सिंह के साथ मिल कर हवा दे रहे थे - और मुलायम पर दबाव बनाया जा रहा था.
दिलचस्प बात ये रही कि अपर्णा के लिए वोट तो मुलायम और डिंपल दोनों ने मांगे, लेकिन उनके कार्यक्रम अलग अलग हुए. डिंपल के बाद अखिलेश ने भी अपर्णा के लिए चुनाव प्रचार किया - और जिताने की अपील की ताकि उनकी कुर्सी सलामत रहे.
वोट देना ताकि कुर्सी...
यूपी में पिछले दो चरणों के चुनावों के अपने अलग समीकरण रहे, लेकिन तीसरे चरण में 19 फरवरी को समाजवादी पार्टी के गढ़ इटावा, मैनपुरी, कन्नौज और औरैया में वोट डाले जाने हैं. ये वो इलाके हैं जहां अब तक माना जाता रहा कि मुलायम-शिवपाल की तूती बोलती रही. आंकड़े भी इस बात का सपोर्ट करते हैं - यहां कि 69 में से 55 सीटें 2012 में समाजवादी पार्टी के खाते में गयी थीं. उस जीत के भी नायक तो अखिलेश ही रहे लेकिन सच्चाई ये भी थी कि उन पर मुलायम और शिवपाल का वरद हस्त भी रहा - जो अब बस बाहर से मार्गदर्शन कर रहा है.
अखिलेश को चुनाव आयोग से तो साइकिल चलाने का लाइसेंस मिल चुका है अब लोगों की मंजूरी की दरकार है. ये तो नतीजे ही बताएंगे कि कांग्रेस के हाथ लग जाने से साइकिल की रफ्तार बढ़ी या नहीं.
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