भारत अपने ही घर में पटाखा फैक्ट्री खोलने को बेताब क्यों है?
क्यों भारत सरकार अमेरिकी कंपनियों को भारत में परमाणु बिजली के क्षेत्र में लाने के लिए बेताब है. क्यों मोदी देश की मान मर्यादा छोड़कर एक देश से दूसरे देश भाग रहे हैं? घर में खतरनाक फैक्ट्री लगाने से क्या हमारा जीवन खतरे में नहीं होगा?
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मान लीजिए घर का कोई ज़िम्मेदार आदमी बम और पटाखे बनाने वाली फैक्ट्री घर में खोलने के लिए बाहर के किसी व्यक्ति से वादा कर आए. घर में किसी की न सुने और कहे कि घर में फैक्ट्री लग जाने से न सिर्फ लोगों को काम मिलेंगे बल्कि पटाखे भी मिल जाएंगे.
इसके बाद फैक्ट्री वाला कहे की बम फटने से परिवार के लोग अगर मर जाएं तो हमारी जिम्मेदारी नहीं होगी. उसके बाद परिवार का मुखिया उससे कहे कि घर वाले नाराज़ हो सकते हैं और मरने वालों को आधा मुआवजा देने को तैयार हो जाए. इसके बाद वो फैक्ट्री वाला कहे कि आप लायसेंस बनवा लीजिए वरना बारूद नहीं मिल पाएगा. चूंकि फैक्ट्री आपके घर में बननी है इसलिए आपको ही लायसेंस बनवाना होगा.
उसके बाद घर का जिम्मेदार आदमी कहना शुरू कर दे कि अगर लायसेंस नहीं मिला तो घर की इज्जत जाती रहेगी. वो पड़ोसियों से एनओसी लेने के लिए एक के बाद एक दरवाजा खटखटाए. न मिले तो घर की बेइजज्ती बताने लगे.
- इस कहानी में बारूद की फैक्टरी वाला है अमेरिका और उसके मल्टी नेशनल
- घर में बारूद की फैक्ट्री लगाने को बेताव दिख रहे घर के सदस्य हैं मनमोहन सिंह और मोदी (भूलना मत कि ये काम मनमोहन सिंह ने शुरू किया था)
- लायसेंस देने वाली संस्था है NSG.
- पड़ोसी हैं NSG के सदस्य चीन जैसे देश.
- जिनके जान खतरे में हैं वो बेकसूर परिवार के लोग यानी हम भारत के नागरिक.
कुछ सवाल हैं जो इस बारे में तस्वीर पूरी तरह साफ कर सकते हैं.
1. क्या भारत को परमाणु बिजली बनाना चाहिए?
उत्तर- जर्मनी जापान के फूकोशिमा हादसे के बाद परमाणु संयंत्र बंद करने का फैसला कर चुका है.
2. क्या भारत आज परमाणु बिजली बनाने में सक्षम नहीं है?
उत्तर- पहले ही भारत में 21 परमाणु बिजली संयंत्र काम कर रहे हैं. जिन जगहों पर ये सयंत्र काम कर रहे हैं उनमें कैगा, खडगपुर, कुंडनकुलम, कल्पक्कम, नरोरा, रावतभाटा, और तारापुर शामिल है
3. क्या भारत और बिजलीघर बना सकता है?
उत्तर- जी. भारत में 9 जगह नए बिजली घर बनाने का काम चल रहा है. ये हैं गोरखपुर, चुटका, माही बांसवाड़ा, कैगा, मद्रास, कुडनकुलम, जैतापुर, कोव्वाडा, और मीठी विरादी.
4. क्या भारत के पास इन बिजली घरों के लिए परमाणु ईंधन उपलब्ध है?
उत्तर- जी कोई कमी नहीं है. यहां तक कि भारत को बाकायदा इसके लिए इजाजत मिली हुई है.
अगर हालात ये है तो फिर मनमोहन सिंह और मोदी परमाणु बिजली के लिए इतने बेताव क्यों है?
इस सवाल का जवाब जानने से पहले ये जान लें कि बीजेपी और कांग्रेस दोनों परमाणु मामले पर आपस में मिले हुए हैं. आपको विकीलीक्स याद होगा. अमेरिका के केबल संदेश में बीजेपी नेताओं का एक आश्वासन भी दर्ज हुआ था. इस संदेश में अमेरिकन दूतावास अपने देश एक संदेश भेजता है . इस संदेश में वो कहता है कि बीजेपी के नेताओं ने आकर आश्वासन दिया है कि वो मनमोहन सिंह की परमाणु नीति का लोगों को दिखाने के लिए ही विरोध कर रहे हैं. लेकिन आखिर में उसे पास कर देंगे.
ये बाद में सही भी साबित हुआ. अब जवाब पर आते हैं... मनमोहन सिंह वो वित्तमंत्री हैं जो अमेरिका के हित में अपने पूरे कार्यकाल में काम करते रहे. राजनीति का ज़ीरो अनुभव होने के बावजूद उन्हें देश के वित्तमंत्री का पद दे दिया गया. जानकारों का कहना है कि विश्व बैंक और अमेरिका की अगुवाई में पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं ने मनमोहन सिंह को भारत में प्लांट किया. मनमोहन सिंह को राज्यसभा में भी बैकडोर एंट्री दे दी गई.
पीएम नरेन्द्र मोदी का भी रिकॉर्ड अमेरिका के मामले में उसके पिट्ठू जैसा ही है. मोदी की अमेरिका से नज़दीकियां हमेशा से संदिग्ध रही हैं. खुद अमेरिकन कांग्रेस में अपने भाषण में मोदी ने गुजरात में सीएम बनने से पहले अपनी अनगिनत यात्राओं का जिक्र किया. ये सवाल भी बार बार पूछा गया कि मोदी इतना अमेरिका क्यों जाते रहे?
एनएसजी के लिए इतना बेताब क्यों है भारत? |
आम चुनाव और दूसरे मौकों पर अमेरिका से मोदी को व्यक्तिगत रूप से मिली मदद को भी भुलाया नहीं जा सकता. अमेरिकी लॉबिंग फर्म 'एप्को' ने भारत आकर मोदी की छवि बनाने और उन्हें चुनाव लड़ाने में जो भूमिका निभाई वो भी किसी से छुपी नहीं है. मोदी के पैतृक संगठन RSS पर भी अमेरिकी संस्था सीआईए से संबंधों के आरोप लग चुके हैं.
अब सबसे बड़ा सवाल - क्यों भारत सरकार अमेरिकी कंपनियों को भारत में परमाणु बिजली के क्षेत्र में लाने के लिए बेताब है. क्यों मोदी उस कंपनी के लिए देश की मान मर्यादा छोड़कर एक देश से दूसरे देश भाग रहे हैं. घर में खतरनाक फैक्ट्री लगाने से क्या हमारा जीवन खतरे में नहीं है.
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